प्रेमचंद ने तोल्स्तोय की कई कहानियों का भारतीयकरण किया है. इन्हें अनुवाद कहने की जगह भावानुवाद कहना ज्यादा सही होगा. प्रस्तुत है ऐसी ही एक कहानी Two Old Men का भावानुवाद एक गांव में अर्जुन और मोहन नाम के दो किसान रहते थे. अर्जुन धनी था, मोहन साधारण पुरुष था. उन्होंने चिरकाल से बद्रीनारायण की […]
बड़ी देर के वाद – विवाद के बाद यह तय हुआ कि सचमुच नौकरों को निकाल दिया जाए. आखिर, ये मोटे-मोटे किस काम के हैं! हिलकर पानी नहीं पीते. इन्हें अपना काम खुद करने की आदत होनी चाहिए. कामचोर कहीं के. “तुम लोग कुछ नहीं! इतने सारे हो और सारा दिन ऊधम मचाने के […]
“माँ जी!…हाय!माँ जी!…हाय!” एक बार,दो बार,पर तीसरी बार,”हाय हाय!” की करुण पुकार सावित्री सहन न कर सकी।कार्बन पेपर और डिजाइन की कॉपी वहीं कुर्सी पर पटककर शीघ्र ही उसने बाथरूम के दरवाजे से बाहर खड़े कमल को गोद में उठा लिया और पुचकारते हुए कहा,”बच्चे सवेरे-सवेरे नहीं रोते।” “तो निर्मला मेरा गाना क्यों गाती है,और […]
यह मैंने आज ही जाना कि जिस सड़क पर एक फुट धूल की परत चढ़ी हो, वह फिर भी पक्की सड़क कहला सकती है. पर मेरे दोस्त झूठ तो बोलेंगे नहीं. उन्होंने कहा था कि पक्की सड़क है, साइकिल उठाना, आराम से चले आना. धूल भी ऐसी-वैसी नहीं. मैदे की तरह बारीक होने के […]
लगभग 35 साल का एक खान आंगन में आकर रुक गया । हमेशा की तरह उसकी आवाज सुनाई दी – ”अम्मा… हींग लोगी?” पीठ पर बँधे हुए पीपे को खोलकर उसने, नीचे रख दिया और मौलसिरी के नीचे बने हुए चबूतरे पर बैठ गया । भीतर बरामदे से नौ – दस वर्ष के एक बालक ने […]
पंडित शादीराम ने ठंडी साँस भरी और सोचने लगे-क्या यह ऋण कभी सिर से न उतरेगा? वे निर्धन थे,परंतु दिल के बुरे न थे।वे चाहते थे कि चाहे जिस भी प्रकार हो,अपने यजमान लाला सदानंद का रुपया अदा कर दें।उनके लिए एक-एक पैसा मोहर के बराबर था।अपना पेट काटकर बचाते थे,परंतु जब चार पैसे इकट्ठे […]
एक बात मैं शुरु में ही कह दूँ. इस घटना का वर्णन करने से मेरी इच्छा यह हरगिज़ नहीं है कि इससे चचा छक्कन के स्वभाव के जिस अंग पर प्रकाश पड़ता है, उसके संबंध में आप कोई स्थाई राय निर्धारित कर लें. सच तो यह है कि चचा छक्कन से संबंधित इस प्रकार की […]
गजाधर बाबू ने कमरे में जमा सामान पर एक नज़र दौड़ाई – दो बक्स, डोलची, बाल्टी। ”यह डिब्बा कैसा है, गनेशी?” उन्होंने पूछा। गनेशी बिस्तर बाँधता हुआ, कुछ गर्व, कुछ दु:ख, कुछ लज्जा से बोला, ”घरवाली ने साथ में कुछ बेसन के लड्डू रख दिए हैं। कहा, बाबूजी को पसन्द थे, अब कहाँ हम गरीब […]
सब पर मानो बुआजी का व्यक्तित्व हावी है। सारा काम वहाँ इतनी व्यवस्था से होता जैसे सब मशीनें हों, जो कायदे में बँधीं, बिना रुकावट अपना काम किए चली जा रही हैं। ठीक पाँच बजे सब लोग उठ जाते, फिर एक घंटा बाहर मैदान में टहलना होता, उसके बाद चाय-दूध होता।उसके बाद अन्नू को पढने […]