ईश्वरी एक बड़े जमींदार का लड़का था और मैं एक गरीब क्लर्क का, जिसके पास मेहनत-मजूरी के सिवा और कोई जायदाद न थी। हम दोनों में परस्पर बहसें होती रहती थीं। मैं जमींदारी की बुराई करता, उन्हें हिंसक पशु और खून चूसने वाली जोंक और वृक्षों की चोटी पर फूलने वाला बंझा कहता। वह जमींदारों […]
लाला शंकरदयाल अपने शहर के प्रसिद्ध वकील थे। उनकी पत्नी ब्रजेश्वरी की मृत्यु प्रायः चार मास पहले हुई थी। तब से वकील साहब के मन की दशा शोचनीय हो उठी थी। वह सब समय चिंताग्रस्त दिखाई देते थे और लोगों से मिलना-जुलना उन्होंने प्रायः छोड़ दिया था। जो कोई भी मुवक्किल उनके पास आता था, […]
पहली झाँकी जासूसी जान पहचान भी एक निराले ही ढंग की होती है। हैदर चिराग अली नाम के एक धनी मुसलमान सौदागर का बेटा था। उससे जासूस की गहरी मिताई थी। उमर में जासूस से हैदर चार पाँच बरस कम ही होगा, लेकिन शरीर से दोनों एक ही उमर के दीखते थे। मुसलमान होने पर […]
गाँव के बाहर, एक छोटे-से बंजर में कंजरों का दल पड़ा था। उस परिवार में टट्टू, भैंसे और कुत्तों को मिलाकर इक्कीस प्राणी थे। उसका सरदार मैकू, लम्बी-चौड़ी हड्डियोंवाला एक अधेड़ पुरुष था। दया-माया उसके पास फटकने नहीं पाती थी। उसकी घनी दाढ़ी और मूँछों के भीतर प्रसन्नता की हँसी छिपी ही रह जाती। गाँव […]
कार्निवल के मैदान में बिजली जगमगा रही थी। हँसी और विनोद का कलनाद गूँज रहा था। मैं खड़ा था। उस छोटे फुहारे के पास, जहाँ एक लडक़ा चुपचाप शराब पीनेवालों को देख रहा था। उसके गले में फटे कुरते के ऊपर से एक मोटी-सी सूत की रस्सी पड़ी थी और जेब में कुछ ताश के […]
लफ़्टंट पिगसन की डायरी का एक अंश इतने दिनों तक भारतवर्ष में रहने के पश्चात् मुझे यह ज्ञात हो गया कि सेना विभाग में काम बहुत ही कम है। खूब भोजन करना, घुड़सवारी करना, चाँदमारी करना, परेड करा देना, यही हम लोगों का काम था और सप्ताह में तीन-चार दिन सिनेमा देखना। मैंने अपने ऊपर […]
कायँ! कायँ !! कायँ !!! शाम का समय था। चचा छक्कन शेख साहब के साथ हमेशा की तरह शतरंज खेल रहे थे। मिर्जा साहब हुक्का पीते जाते थे और कभी-कभी किसी अच्छी चाल पर खुश होकर दोनों की तारीफ भी करते जाते थे, कि इतने में शेख साहब बोले-“देखिए, जरा सँभल कर चलिए, उठा […]
आज डुमराँव स्टेशन से राजप्रासाद तक बड़ी धूम है. ट्राफिक सुपरिटेंडेंट के दफ्तर से तार-पर-तार चल रहा है. दीनापुर से डुमराँव तक सिग्नेलरों का नाकोंदम है. एक खबर (मेसेज) फारवर्ड होते देर नहीं कि दूसरे के लिए तारबाबू टेलीग्राफ-इंस्ट्रूमेंट पर रोल करते हैं. डी.टी.एस. के ऑफिस से एक को मंसूख करनेवाला, दूसरा फिर उसको कैंसल […]
मिस रस्तोगी थोड़ी देर सोफ़े पर अधलेटी-सी पड़ी टेलीफोन की ओर देखती रही। लग रहा था कि अब भी बोल रहा है-“पहचाना? मैं प्रकाश बोल रहा हूँ—प्रकाश खन्ना—“ “कब आए? किस ट्रेन से? तार कर दिया होता। कहाँ हो? स्टेशन पर?” एक ही साँस में एकाएक मिस रस्तोगी पचासों सवाल पूछ बैठी थी। […]