कायँ! कायँ !! कायँ !!! शाम का समय था। चचा छक्कन शेख साहब के साथ हमेशा की तरह शतरंज खेल रहे थे। मिर्जा साहब हुक्का पीते जाते थे और कभी-कभी किसी अच्छी चाल पर खुश होकर दोनों की तारीफ भी करते जाते थे, कि इतने में शेख साहब बोले-“देखिए, जरा सँभल कर चलिए, उठा […]
चचा छक्कन कभी-कभार कोई काम अपने ज़िम्मे क्या ले लेते हैं, घर भर को तिगनी का नाच नचा देते हैं . ‘आ बे लौंडे, जा बे लौंडे, ये कीजो, वो दीजो’, घर बाज़ार एक हो जाता है. दूर क्यों जाओ, परसों की ही बात है, दुकान से तस्वीर का चौखटा लग कर आया. उस वक़्त […]
एक बात मैं शुरु में ही कह दूँ. इस घटना का वर्णन करने से मेरी इच्छा यह हरगिज़ नहीं है कि इससे चचा छक्कन के स्वभाव के जिस अंग पर प्रकाश पड़ता है, उसके संबंध में आप कोई स्थाई राय निर्धारित कर लें. सच तो यह है कि चचा छक्कन से संबंधित इस प्रकार की […]