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सरोज स्मृति  एक शोक गीति है, जो कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने अपनी पुत्री सरोज की मृत्यु के बाद लिखी थी।

काव्यांश

देखा विवाह आमूल नवल,
तुझ पर शुभ पड़ा कलश का जल।

देखती मुझे तू, हँसी मंद,
होठों में बिजली फँसी, स्पंद
उर में भर झूली छबि सुंदर,
प्रिय की अशब्द शृंगार-मुखर
तू खुली एक उच्छ्वास-संग,
विश्वास-स्तब्ध बंध अंग-अंग,
नत नयनों से आलोक उतर
काँपा अधरों पर थर-थर-थर।
देखा मैंने, वह मूर्ति-धीति
मेरे वसंत की प्रथम गीति—

शब्दार्थ

आमूल: पूरी तरह, जड़ से
नवल: नया
मंद: धीमा
स्पंद: 

व्याख्या

काव्यांश

                            शृंगार, रहा जो निराकार
                            रस कविता में उच्छ्वसित-धार
                            गाया स्वर्गीया-प्रिया-संग
                            भरता प्राणों में राग-रंग
                            रति-रूप प्राप्त कर रहा वही,
                            आकाश बदलकर बना मही।
                            हो गया ब्याह, आत्मीय स्वजन
                            कोई थे नहीं, न आमंत्रण था
                            भेजा गया, विवाह-राग
                            भर रहा न घर निशि-दिवस-जाग;
                            प्रिय मौन एक संगीत भरा
                            नव जीवन के स्वर पर उतरा।

शब्दार्थ

व्याख्या

काव्यांश

 माँ की कुल शिक्षा मैंने दी,
 पुष्प-सेज तेरी स्वयं रची,
 सोचा मन में—”वह शकुंतला,
 पर पाठ अन्य यह, अन्य कला।”
 कुछ दिन रह गृह, तू फिर समोद,
 बैठी नानी की स्नेह-गोद।
 मामा-मामी का रहा प्यार,
 भर जलद धरा को ज्यों अपार;
 वे ही सुख-दु:ख में रहे न्यस्त,
 तेरे हित सदा समस्त, व्यस्त;
 वह लता वहीं की, जहाँ कली तू खिली,
 स्नेह से हिली, पली;
 अंत भी उसी गोद में शरण
 ली, मूँदे दृग वर महामरण!

शब्दार्थ

व्याख्या

काव्यांश

                                  मुझ भाग्यहीन की तू संबल
                                  युग वर्ष बाद जब हुई विकल,
                                  दु:ख ही जीवन की कथा रही,
                                  क्या कहूँ आज, जो नहीं कही!
                                  हो इसी कर्म पर वज्रपात
                                  यदि धर्म, रहे नत सदा माथ
                                  इस पथ पर, मेरे कार्य सकल
                                  हों भ्रष्ट शीत के-से शतदल!
                                  कन्ये, गत कर्मों का अर्पण
                                  कर, करता मैं तेरा तर्पण!

शब्दार्थ

व्याख्या

सरोज स्मृति -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला : सारांश

सरोज स्मृति एक शोकगीति है, जो निराला ने अपनी पुत्री सरोज की मृत्यु के पश्चात लिखी थी। पुत्री सरोज कवि के जीवन का एकमात्र सहारा थी-
‘मुझ भाग्यहीन की तु संबल’..।
उसी पुत्री की मृत्यु ने कवि को पूरी तरह तोड़ डाला। यहाँ वह पुत्री के बहाने दुःख भरे अपने पूरे जीवन को याद कर रहा है –
‘दुःख ही जीवन की कथा रही,क्या कहा आज जो नहीं कही’।
धीरे-धीरे बात सिर्फ पुत्री और कवि के जीवन की नहीं रह जाती बल्कि तत्कालीन सामाजिक परिवेश की हो जाती है-
ये कान्यकुब्ज़ कुलकुलांगार खाकर पत्तल में करे छेद।
पूरी कविता में पिता और कवि का द्वन्द्व चलता रहता है। जब कविता पर पिता हावी होता है, तो पुत्री को खोने और दुःख ही के जीवन की कथा रहने की वेदना परत दर परत खुल कर सामने आती है।
दूसरी ओर, कवि निराला पूरी घटना का तटस्थ और निर्लिप्त विश्लेषण करते हैं और इस क्रम में निराला ही नहीं, बल्कि उन जैसे कई साहित्य सेवियों का दुःख पाठक के सामने आता है।
पिता के विलाप में कवि को कभी शकुंतला की याद आती है और कभी अपनी स्वर्गीया पत्नी की। बेटी के सौंदर्य में कवि को पत्नी का सौंदर्य दिखाई पड़ता है। भाग्यहीन पिता के विलाप में समाज से उसके संबंध, पुत्री के लिये कुछ न कर पाने का अकर्मण्यता बोध और जीवन  संघर्ष में अपनी विफलता की व्यथा भी व्यक्त हुई है।

सरोज स्मृति -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला : प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1: सरोज के नव-वधू रूप का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

उत्तर:

प्रश्न 2: कवि को अपनी स्वर्गीया पत्नी की याद क्यों आई?

उत्तर:

प्रश्न 3: ‘आकाश बदल कर बना मही’ में ‘आकाश’ और ‘मही’ शब्द किनकी ओर संकेत करते हैं?

उत्तर:

प्रश्न 4: सरोज का विवाह अन्य विवाहों से किस प्रकार भिन्न था?

उत्तर:

प्रश्न 5. ‘वह लता वहीं की, जहां कली तू खिली’ पंक्ति के द्वारा किस प्रसंग को उद्घाटित किया गया है?

उत्तर:

प्रश्न 6: ‘मुझ भाग्यहीन की तू संबल’ निराला की यह पंक्ति क्या ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ जैसे कार्यक्रम की मांग करती है।

उत्तर-

प्रश्न 7. निम्नलिखित पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए-

(क) नत नयनों से आलोक उतर

उत्तर:

(ख) श्रृंगार रहा जो निराकार

उत्तर:

(ग) पर पाठ अन्य यह, अन्य कला

उत्तर:

(घ) यदि धर्म, रहे नत सदा माथ

उत्तर:

कवि/लेखक परिचय

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हिन्दी कविता के छायावादी युग के प्रमुख कवियों में से थे। हिन्दी साहित्य के सर्वाधिक चर्चित साहित्यकारों मे से एक सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म सन् 1896 ई० में पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल नामक रियासत में हुआ था। निश्चित तिथि के अभाव में इनका जन्मदिवस माघ मास में वसन्त पंचमी के दिन मनाया जाता है। निराला जी का जन्म रविवार को हुआ था इसलिए सुर्जकुमार कहलाए।

उनका मूल निवास उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले का गढ़कोला नामक गाँव था। हाई स्कूल तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद स्वाध्याय द्वारा उन्होंने हिन्दी, संस्कृत और बांग्ला का अध्यन किया।

1916 में ‘जूही की कली’ कविता लिखी, जिस कारण उन्हें ‘मुक्त छंद’ का प्रवर्तक भी माना जाता है। 1922 से संपादन, स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य। 1922 से 23 के दौरान कोलकाता से प्रकाशित ‘समन्वय’ का संपादन किया। 1923 से ‘मतवाला’ के संपादक मंडल में। 1942 से मृत्यु पर्यन्त इलाहाबाद में रह कर स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य। निराला की काव्यभाषा अत्यंत सशक्त है। उनकी ‘राम की शक्तिपूजा’ और ‘तुलसीदास’ जैसी कविताओं में तत्समप्रधान शब्दावली मिलती है, जबकि ‘भिक्षुक’ जैसी कविताओं में आम बोलचाल की भाषा का सौन्दर्य। उन्होंने हिंदी में ग़ज़लों की भी रचना की।

वे सुमित्रानंदन पंत, जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा के साथ छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं।15 अक्तूबर 1961 को इलाहाबाद में उनका निधन हुआ।

प्रमुख कृतियाँ:

काव्यसंग्रह: परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, बेला, नये पत्ते, अर्चना, आराधना, गीत कुंज, सांध्य काकली

उपन्यास: अलका, अप्सरा, निरुपमा, चतुरी चमार, बिल्लेसुर बकरिहा

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