सरोज स्मृति एक शोक गीति है, जो कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने अपनी पुत्री सरोज की मृत्यु के बाद लिखी थी।
काव्यांश
देखा विवाह आमूल नवल,
तुझ पर शुभ पड़ा कलश का जल।
शब्दार्थ
आमूल: पूरी तरह, जड़ से
नवल: नया
मंद: धीमा
स्पंद:
सरोज स्मृति एक शोक गीति है, जो कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने अपनी पुत्री सरोज की मृत्यु के बाद लिखी थी।
देखा विवाह आमूल नवल,
तुझ पर शुभ पड़ा कलश का जल।
आमूल: पूरी तरह, जड़ से
नवल: नया
मंद: धीमा
स्पंद:
‘मुझ भाग्यहीन की तु संबल’..।
‘दुःख ही जीवन की कथा रही,क्या कहा आज जो नहीं कही’।
ये कान्यकुब्ज़ कुलकुलांगार खाकर पत्तल में करे छेद।
प्रश्न 1: सरोज के नव-वधू रूप का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 2: कवि को अपनी स्वर्गीया पत्नी की याद क्यों आई?
उत्तर:
प्रश्न 3: ‘आकाश बदल कर बना मही’ में ‘आकाश’ और ‘मही’ शब्द किनकी ओर संकेत करते हैं?
उत्तर:
प्रश्न 4: सरोज का विवाह अन्य विवाहों से किस प्रकार भिन्न था?
उत्तर:
प्रश्न 5. ‘वह लता वहीं की, जहां कली तू खिली’ पंक्ति के द्वारा किस प्रसंग को उद्घाटित किया गया है?
उत्तर:
प्रश्न 6: ‘मुझ भाग्यहीन की तू संबल’ निराला की यह पंक्ति क्या ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ जैसे कार्यक्रम की मांग करती है।
उत्तर-
प्रश्न 7. निम्नलिखित पंक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए-
(क) नत नयनों से आलोक उतर
उत्तर:
(ख) श्रृंगार रहा जो निराकार
उत्तर:
(ग) पर पाठ अन्य यह, अन्य कला
उत्तर:
(घ) यदि धर्म, रहे नत सदा माथ
उत्तर:
सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हिन्दी कविता के छायावादी युग के प्रमुख कवियों में से थे। हिन्दी साहित्य के सर्वाधिक चर्चित साहित्यकारों मे से एक सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म सन् 1896 ई० में पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल नामक रियासत में हुआ था। निश्चित तिथि के अभाव में इनका जन्मदिवस माघ मास में वसन्त पंचमी के दिन मनाया जाता है। निराला जी का जन्म रविवार को हुआ था इसलिए सुर्जकुमार कहलाए।
उनका मूल निवास उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले का गढ़कोला नामक गाँव था। हाई स्कूल तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद स्वाध्याय द्वारा उन्होंने हिन्दी, संस्कृत और बांग्ला का अध्यन किया।
1916 में ‘जूही की कली’ कविता लिखी, जिस कारण उन्हें ‘मुक्त छंद’ का प्रवर्तक भी माना जाता है। 1922 से संपादन, स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य। 1922 से 23 के दौरान कोलकाता से प्रकाशित ‘समन्वय’ का संपादन किया। 1923 से ‘मतवाला’ के संपादक मंडल में। 1942 से मृत्यु पर्यन्त इलाहाबाद में रह कर स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य। निराला की काव्यभाषा अत्यंत सशक्त है। उनकी ‘राम की शक्तिपूजा’ और ‘तुलसीदास’ जैसी कविताओं में तत्समप्रधान शब्दावली मिलती है, जबकि ‘भिक्षुक’ जैसी कविताओं में आम बोलचाल की भाषा का सौन्दर्य। उन्होंने हिंदी में ग़ज़लों की भी रचना की।
वे सुमित्रानंदन पंत, जयशंकर प्रसाद और महादेवी वर्मा के साथ छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं।15 अक्तूबर 1961 को इलाहाबाद में उनका निधन हुआ।
प्रमुख कृतियाँ:
काव्यसंग्रह: परिमल, गीतिका, अनामिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, बेला, नये पत्ते, अर्चना, आराधना, गीत कुंज, सांध्य काकली
उपन्यास: अलका, अप्सरा, निरुपमा, चतुरी चमार, बिल्लेसुर बकरिहा