डर गईं अमराइयां भी आम बौराए नहीं,
ख़ूब सींचा बाग हमने फूल मुस्काए नहीं।
यार को है प्यार केवल जंग से, हथियार से,
मुहब्बत के रंग मेरे यार को भाए नहीं।
मंज़िलों के वास्ते खुदगर्जियाँ हैं इस कदर ,
हमसफ़र को गिराने में दोस्त शर्माए नहीं ।
रोज सिमटी जा रही हैं उल्फतों की चादरें ,
हसरतों ने आज अपने पांव फैलाए नहीं।
वह फकीरों की अदा में रहजनी करता रहा,
अदाकारी की हकीकत हम समझ पाए नहीं।
कुछ दीए उम्मीद के ‘प्रवीण’अब भी जल रहे,
सामने तूफान के ये कभी घबराए नहीं।
बहुत खूब
बहुत ही सुंदर
??❤❤❤