Skip to content

सभ्यता का कवच

5 1 vote
Article Rating

सभ्यता के दूसरे छोर पर
अपने पैरों से एक गोरा
दबाए बैठा है
एक काले की गर्दन
और काला चिल्ला रहा है-
‘आई कांट ब्रीद-आई कांट ब्रीद’
सभ्यता के इस छोर पर
जन्मना स्वघोषित श्रेष्ठ
कुछ इस तरह से बुने बैठे हैं मायाजाल
जिसमें फंसा है अधिकतर का गला
बोला भी नहीं जाता उनसे
बोलें तो सुना नहीं जाते किसी से
बस गूंज रहा है गान-
‘अहम् ब्रह्मास्मि-अहं ब्रह्मास्मि’
सभ्यता के ऊपरी सिरे पर
पूँजीपति करता है अट्टहास
नीचे सिर्फ़ गूंज रहा है
मजदूरों का मौन पदचाप
पिसता है उनका शरीर
निचुड़ती है आत्मा
उससे टपकता है अमृत
पर नीचे को नहीं सीधे ऊपर को
पहुँचता है पूँजीपति के कंठ में
पूँजीपति डकारता है
और दुहराता है- ‘कर्मफल-कर्मफल’
सभ्यता के भीतरी हिस्सों में
पुरुष सिर्फ पुरुष हैं
पर स्त्री है ‘सेकेंड सेक्स’
और बाकी हैं ‘थर्ड जेंडर’
यह क्रम ही इस भीतर का बाहर भी है
यहाँ एक चौथा भी है
जो वैसे तो कहलाता ईश्वर है
पर है वह पुरुष ही
और कहता है-
‘सब मैंने बनाया है’
सभ्यता के निचले हिस्से में
है गहन अंधकार
वहाँ अभी नहीं पहुंची है कोई रोशनी
उन अंधेरों से निरंतर आती है चित्कार
जिसे सुने जाने की है दरकार
पर अभी सब मुँह फेरे खड़े हैं उससे
वह चित्कार भेद न दे सभ्यता का कवच
आओ इसलिए सब मिलकर गाओ-
‘ओम शांति-ओम शांति’

5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
1 Comment
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
सभी टिप्पणियाँ देखें
विक्की

भगवान वाला पैरा बहुत बेहतरीन ❤❤