मैं जब भी व्यक्त हुआ
आधा ही हुआ
उसमें भी अधूरा ही समझा गया
उस अधूरे में भी
कुछ ऐसा होता रहा शामिल
जिसमें मैं नहीं दूसरे थे
जब उतरा समझ में
तो वह बिल्कुल वह नहीं था
जो मैंने किया था व्यक्त
इस तरह मैं अब तक
रहा हूँ अव्यक्त।
लेखक की किताबें मैं सीखता हूँ बच्चों से जीवन की भाषा
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