मैं तुमसे प्रेम करता हूँ
इसका सबूत इससे बढ़कर क्या होगा कि
अब फूलों को बस निहारता हूँ
तोड़ता नहीं
मुझे बगिया अब तुम्हारे ही बालों का जूड़ा लगती है
मैं प्राची में उगते सूर्य को देख
भर जाता हूँ असीम ऊर्जा से
और पश्चिम में तुम्हारे घर की ओर
अस्त होने की कामना से
चल पड़ता हूँ दिन की सड़क पर
मुझे दिशाएं इतनी खुली कभी नहीं लगीं कि
अब से पहले मतवाला बन
इतनी दूर-दूर तक नाच आता
आज ये मेरे मन की चौहद्दी बन गईं हैं
मैं देख रहा हूँ फूट रहे हर एक अंकुर को
और रीझ रहा हूँ
इनमें मुझे प्रेम दिख रहा है
उगते, बढ़ते और महकते हुए
लगता है मेरे प्रेम की हरियाली ढाँप लेगी
धरती का सारा खुरदुरापन
सुनो, तुम जो नहीं हो अभी मेरे पास
तो भी मैं अपनी उदासी जाहिर नहीं कर रहा
मुझे पता है प्रेम में जुदाई बरसों की हो सकती है
पर प्रेम बचा रहता है
प्रेम की तरह ही ।
लेखक की किताबें मैं सीखता हूँ बच्चों से जीवन की भाषा
Bahut khub ???