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दर्द दिया जो तूने

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दर्द दिया जो तूने कितना अच्छा लगता है,
आँखों का  खारा पानी भी मीठा लगता है ।
धब्बों  वाला चाँद नहीं, तेरा  सुन्दर मुखड़ा,
सुबह सुबह का सूरज घर में उतरा लगता है।
यह  जो  नीला अम्बर  है,  तेरे  शर्माने  से,
कहीं  गुलाबी ना हो जाए  ऐसा लगता  है ।
तू  गुलशन  में  पहुँचेगी   तो  भौंरे  बोलेंगे,
यह गुलाब गुलशन में सबसे ताजा लगता है।
तुझे देखने वालों का भी  पागलपन देखा,
जलसा तेरा कोई  पागलखाना लगता  है।
खुशबू लाता है ‘ प्रवीण ‘  के अशआरों में जो,
वो तेरी मीठी यादों  का  झोंका  लगता है।

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