एक कम – विष्णु खरे
1947 के बाद से इतने लोगों को इतने तरीक़ों से आत्म निर्भर, मालामाल और गतिशील होते देखा है कि अब जब आगे कोई हाथ फैलाता है पच्चीस पैसे एक चाय या दो रोटी के लिए तो जान लेता हूँ मेरे सामने एक ईमानदार आदमी, औरत या बच्चा खड़ा है मानता […]