आंचलिक कहानी
पहलवान की ढोलक – फणीश्वरनाथ रेणु
जाड़े का दिन . अमावस्या की रात – ठंढी और काली . मलेरिया और हैजे से पीड़ित गाँव भयार्त शिशु की तरह थर-थर कांप रहा था. पुरानी और उजड़ी बांस-फूस की झोंपड़ियों में अंधकार और सन्नाटे का सम्मिलित साम्राज्य ! अँधेरा और निस्तब्धता ! अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा […]
रसप्रिया
धूल में पड़े कीमती पत्थर को देख कर जौहरी की आँखों में एक नई झलक झिलमिला गई – अपरूप-रूप! चरवाहा मोहना छौंड़ा को देखते ही पँचकौड़ी मिरदंगिया की मुँह से निकल पड़ा – अपरुप-रुप! …खेतों, मैदानों, बाग-बगीचों और गाय-बैलों के बीच चरवाहा मोहना की सुंदरता! मिरदंगिया की क्षीण-ज्योति आँखें सजल […]
लाल पान की बेगम – फणीश्वरनाथ रेणु
‘क्यों बिरजू की माँ, नाच देखने नहीं जाएगी क्या?’ बिरजू की माँ शकरकंद उबाल कर बैठी मन-ही-मन कुढ़ रही थी अपने आँगन में। सात साल का लड़का बिरजू शकरकंद के बदले तमाचे खा कर आँगन में लोट-पोट कर सारी देह में मिट्टी मल रहा था। चंपिया के सिर भी चुड़ैल […]
नैना जोगिन — फणीश्वरनाथ रेणु
रतनी ने मुझे देखा तो घुटने से ऊपर खोंसी हुई साड़ी को ‘कोंचा’ की जल्दी से नीचे गिरा लिया। सदा साइरेन की तरह गूँजनेवाली उसकी आवाज कंठनली में ही अटक गई। साड़ी की कोंचा नीचे गिराने की हड़बड़ी में उसका ‘आँचर’ भी उड़ गया। उस सँकरी पगडंडी पर, जिसके दोनों […]