शहीदों की चिताओं पर- जगदम्बा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’
उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्तां होगा |
रिहा सैय्याद के हाथों से अपना आशियां होगा ||
चखाएंगे मजा बर्बादिये गुलशन का गुलचीं को |
बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बागबां होगा ||
ये आए दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ खंजरे क़ातिल |
पता कब फैसला उनके हमारे दरम्यां होगा ||
जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हर्गिज़ |
न जाने बाद मुर्दन मैं कहाँ और तू कहाँ होगा ||
वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है |
सुना है आज मकतल में हमारा इम्तहां होगा ||
शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले |
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा ||
कभी वह भी दिन आएगा जब अपना राज देखेंगे|
जब अपनी ही जमीं होगी और अपना आसमां होगा ||