चित्रकार की सी सुरुचि से,
जो गुड़हल के दो फूल मेरे
स्याह बालों में टांक देता है,
प्रेम की सुबह में ये कोमल से
सुंदर मनमोहक भाव
जीवन की दोपहरी में
जलते तपते सूरज से
किस तरह लड़ते हैं..
आश्चर्य !!
गुड़हल का
शिरीष हो जाना,
कलाकार का
सिपाही हो जाना,
प्रेमी का पिता हो जाना.
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