रावायण : मिथकों के पुनर्मूल्यांकन की अनोखी दास्तान
हर इंसान के अंदर भगवान और शैतान, दोनों, किसी न किसी रूप में मौजूद होते हैं। जब हम कोई सत्कार्य कर रहे हों तो उसे अपने अंदर मौजूद ईश्वरीय अंश का कृत्य मानते हैं, जबकि हर दुष्कृत्य के लिए अपने अंदर मौजूद शैतानीय अंश को उत्तरदायी मानते हैं। हमारे अंदर मौजूद ये दोनो ही अंश एक दूसरे को रोकने और आगे बढ़ कर मनुष्य के निर्णय लेने तक को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। ऐसे में इंसान के नाम, जाति, धर्म, क्षेत्र आदि मायने नहीं रखते, लेकिन फिर भी हम पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर एक सोच विकसित कर लेते हैं।
कहा जाता है कि रावण ने अपनी अंतिम सांस लेने से पूर्व राम का नाम लिया था। उसके अंदर के ईश्वरीय अंश ने अंतिम समय में उसके अंदर के बुरे तत्वों पर विजय पा लिया था। ऐसे में किसी इंसान का नाम महत्व नहीं रखता कि क्या है। वर्तमान परिवेश में ऐसे कई उदाहरण आपको देखने को मिलेंगे, जिनके नाम ईश्वरीय नामों के संयोजन से बने, लेकिन उनके व्याभिचार ने मानवता को शर्मसार किया।
क्या किसी का नाम, उसके किरदार को, उसके चरित्र को, उसके व्यवहार को, उसके दिल एवं दिमाग को प्रतिबिंबित कर सकता है? आज माता-पिता, बच्चों के आदर्श नाम रखते हैं और उम्मीद करते हैं कि उस आदर्श नाम के अनुरूप ही उनके बच्चे दुनिया को नई दिशा प्रदान करेंगे। लेकिन क्या यह सौ फीसदी सही होता है? नहीं होता। उसी तरह किसी का नाम ‘रावण’ होना, उसको बुरे व्यक्ति के रूप में प्रतिबिंबित कर लेना भी उस व्यक्ति के साथ नाइंसाफी है, जिसका खामियाजा आगे भुगतना पड़ता है।
जब भी दादी माँ, रामायण एवं महाभारत की कहानियां सुनाती थी, तो अंत में इन कहानियों के खलनायक के संबंध में यही कहती थी कि ये लोग इतने बुरे और पापी थे, इतने बुरे कर्म इन्होंने किये थे, कि लोग इनके नाम पर अपने बच्चों का नाम भी नहीं रखते। सही बात थी, बाल्यावस्था तक तो वैसा नाम किसी का नहीं सुना।
मेरी कॉलोनी में एक लड़के का नाम ‘रावण’ था। हम उसके साथ क्रिकेट खेला करते थे। मैं सोचा करता था कि उसके माता-पिता ने ऐसा नाम रखा क्यों? अगर नहीं रखा तो लोग उसे ‘रावण’ कहते क्यों हैं? क्या उसने कोई ऐसा बुरा कृत्य किया है, जिसके कारण उसका नाम रावण पड़ा। खैर, मुझे कभी भी इन सवालों का जवाब नहीं मिल पाया, क्योंकि इससे भी महत्वपूर्ण सवाल उस वक़्त हमारी किताबों में हुआ करते थे।
फिर एक बार आचार्य चतुरसेन द्वारा रचित ‘वयं रक्षामः’ पढ़ने का मौका मिला, जिसने ‘रावण’ जैसे किरदार के प्रति मेरी सोच में बदलाव किया। क्या और कितना किया, इसे बेहतर तरीके से समझने के लिए आपको यह पुस्तक पढ़नी चाहिए।
रामायण के ‘रावण’ और वयं रक्षामः के ‘रावण’ के किरदार एक दूसरे काल से हैं, जबकि ‘रावायण’ का ‘रावण’ किरदार वर्तमान समाज का हिस्सा है, जिसे समझने के लिए आपको यह कहानी पढ़नी पड़ेगी।
‘रावायण’ की कहानी ऐसे ही कई पूर्वाग्रहों को तोड़ते हुए, हमें अपने उस समाज का आईना दिखाती है, जिसमें हम रहते हैं, नाज करते हैं, जीते हैं। ‘रावायण’ किसी एक किरदार या दसियों किरदारों की कहानी नहीं, बल्कि मानवीय एवं सामाजिक मूल्यों के जन्म लेने और उनके टूटने की कहानी है। जिस तरह से कई मिथकीय कहानियां आपको आदर्शवाद का पाठ पढ़ाती है, वैसी ही यह कहानी आदर्शवाद का असली पाठ पढ़ाती है। कहानी के किरदार, जीतू, उर्मी, अजय, रामेंद्र, कपि, हिमानी आदि हमें अपने चारों तरफ नज़र आ जाएंगे। लेकिन इनकी असली पहचान उनके साथ घटी घटनाओं पर निर्भर करती है।
खालिस दिल्ली की भाषाशैली लिए हुए यह कहानी सरल रूप से पठनीय है, जिसकी भाषाशैली दोनों लेखकों ने आम बोलचाल जैसी ही रखी है। अतः ‘नई वाली हिंदी’ की किताबों की श्रृंखला में यह एक नई आमद है। दोनों ही लेखकों से उम्मीद रहेगी कि भविष्य में वे हमें और इसी प्रकार के पढ़ने योग्य कथ्य परोसेंगे।
कहानी की एडिटिंग बेहतरीन है, जिसके लिए एडिटर साहिबा निःसंदेह तारीफ की हकदार हैं। हालांकि कहानी पहले पन्ने से इतनी मनोरंजक हो जाती है कि कहानी के लूपहोल्स को खोजना मुश्किल हो जाता है, लेकिन अगर कोई छिन्द्रान्वेषण करे तो शायद कोई लूपहोल खोज निकाले ;लेकिन तब वह कहानी का रसपान नहीं कर पायेगा। प्रूफरीडिंग के बारे में इतना ही कहूंगा कि अपनी तरफ से 100% देकर छोड़ दीजिए क्योंकि प्रूफरीडिंग के बाद भी कई बार खामियां रह ही जाती है, जो पाठकों की पकड़ में ही आती है।
अब बात करूँ इस किताब के मूल्य की, जो मेरे लिए तो ज्यादा नहीं, लेकिन जब कंटेंट और मूल्य के अनुपात को देखा जाएगा तो निःसंदेह अधिक नज़र आता है। लेकिन इसमें लेखकों की शायद कोई गलती नहीं, क्योंकि अमेज़न किंडल ने अपने नियमों में बदलाव किया है, जिसके अनुसार कोई भी पुस्तक प्रथमतः किंडल पर 49 रुपये से कम में प्रकाशित नहीं हो सकती। यह समस्या है या समाधान, समझ नहीं आता, क्योंकि भविष्य में, मुझे भी इससे दो चार होना है। लेकिन अगर आप इस पुस्तक को खरीद कर पढ़ते हैं, पढ़कर दो शब्द इस कहानी के बारे में लिखते हैं, भले ही वह आलोचनात्मक हो या प्रशंसात्मक, तो ऐसा हो सकता है कि भविष्य में लेखक आपको निरंतर पठनीय कंटेंट देता रहे।
ऐसे समय में जब फेसबुक पर विश्व का सबसे घृणित हथियार सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है, जो हथियार जन्म से मृत्यु तक मनुष्य का पीछा नहीं छोड़ता, ऐसे समय में, रामायण जैसी कहानी से एक ऐसे किरदार को उठाकर वर्तमान की कहानी का रूप देना, फिर उसे वर्ल्डवाइड रिलीज करना, एक साहस का काम है, जिसे युवा लेखकों ने बखूबी अंजाम दिया है। दोनों को, किताब के रूप में आई, उनकी पहली रचना के लिए साधुवाद एवं हार्दिक शुभकामनाएं।
तो अगर आप अब भी इंतज़ार में हैं कि इस कहानी को कैसे और कहां से पढ़ी जाए तो इंतज़ार छोड़िए और इस पुस्तक को निम्न लिंक के जरिये खरीद कर पढ़िए । आपको सिंपली यह करना है कि अपने मोबाइल (एंड्राइड) पर Amazon Kindle एप्प डाउनलोड करना है। फिर उसके स्टोर सेक्शन (बॉटम साइड) में जाकर हिंदी में ‘रावायण’ या अंग्रेजी में ‘Leela of Rawan’ लिखें। आपको किताब नज़र आ जायेगी, जिसे आप क्रेडिट कार्ड या डेबिट कार्ड से पेमेंट करके खरीद सकते हैं। अमेज़न पे बैलेंस का इस्तेमाल करके भी किताब खरीदी जा सकती है ।
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July 9, 2018 @ 3:36 pm
बहुत बहुत बगत सटीक समीक्षा। इस तरह से तो लेखक भी न सोच पाए होंगे जैसा आपने लिख दिया। बेहतरीन।