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हिन्दी साहित्य का इतिहास -प्रारम्भ

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राहुल सांकृत्यायन ने अपनी पुस्तक ‘काव्यधारा’ में 7वीं सदी के अपभ्रंश के कवि सरहपा को हिन्दी का पहला कवि माना है. डॉ रामकुमार वर्मा हिन्दी साहित्य का प्रारम्भ संवत् 750 से मानते हैं. जॉर्ज ग्रियर्सन के अनुसार, हिन्दी साहित्य की शुरुआत संवत् 700 (643 ई) से होती है. स्पष्टतया, अधिकांश विद्वान अपभ्रंश के उस दौर से प्रारम्भिक हिन्दी की शुरुआत मानते हैं, जहाँ सहायक क्रियाओं और परसर्गों का विकास साफ़ परिलक्षित होने लगता है.
हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखने की पहली कोशिश फ्रांस के गार्सा द तासी ने की. तासी रचित ‘इस्त्वार द ल लितरेत्यूर ऐन्दूई ऐन्दूस्तानी’ का प्रथम भाग 1839 में और द्वितीय भाग 1847 में प्रकाशित हुआ. 1883 ई में शिवसिंह सेंगर का शिवसिंह सरोज प्रकाशित हुआ. इसमें लगभग एक हज़ार कवियों की रचनाओं और उनके जीवन का संक्षिप्त परिचय मिलता है. इस लिहाज़ से यह पुस्तक साहित्येतिहास से ज्यादा कविवृत्तसंग्रह है. इसी पुस्तक को आधार बनाकर जॉर्ज ग्रियर्सन ने 1888 में अपना इतिहासग्रंथ ‘द मॉडर्न वर्नाकुलर लिटरेचर ऑफ़ नॉर्दन हिंदुस्तान’ लिखा. 1913 ई में मिश्रबंधुओं (गणेश बिहारी, श्याम बिहारी और शुकदेव बिहारी) ने अपना इतिहास ग्रंथ मिश्रबंधु विनोद के नाम से लिखा, जिसमे लगभग पांच हजार साहित्यकारों का परिचय मिलता है.
               वस्तुतः 1929 में प्रकाशित आचार्य रामचंद्र शुक्ल के ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ के पूर्व प्रकाशित पुस्तकों को साहित्य इतिहास कहने की बजाय कविवृत संग्रह या इतिहास लेखन के प्रयत्न कहना ज्यादा सही होगा. सही अर्थों में आचार्य शुक्ल को ही हिन्दी साहित्य का पहला इतिहासकार कहना चाहिए. शुक्लजी ने इसे पहले हिन्दी शब्दसागर की भूमिका के रूप में लिखा था, जिसे बाद में स्वतंत्र और परिवर्धित रूप में 1929 में प्रकाशित किया गया.
अपनी पुस्तक में आचार्य शुक्ल साहित्य के इतिहास की परिभाषा देते हुए कहते हैं- “जबकि प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चितवृत्ति का संचित प्रतिबिंब होता है तब यह निश्चित है कि चित्तवृत्ति में परिवर्तन की परंपरा के साथ-साथ साहित्य के स्वरूप में परिवर्तन होता चलता है. आदि से अंत तक चित्तवृत्तियों की परंपरा को परखते हुए साहित्य परंपरा के साथ उसका सामंजस्य दिखाना ही साहित्य का इतिहास कहलाता है.”
आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य का प्रारंभ संवत् 1050 से मानते हुए उसे चार भागों में विभाजित किया है –
कालक्रम के आधार पर               प्रवृत्ति के आधार पर               काल सीमा (संवत् में)
आदि काल                             वीरगाथा काल                    1050-1375
पूर्व मध्यकाल                           भक्तिकाल                       1375-1700
उत्तर मध्यकाल                          रीति काल                       1700-1900
आधुनिक काल                          गद्य काल                       1900 से आगे

 

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