मिथिला के लोक में गोनू झा वैसे ही प्रसिद्ध हैं, जैसे अकबर के दरबार में बीरबल और कृष्णदेव राय के दरबार में तेनालीराम . गोनू झा की हाजिरजवाबी और तीक्ष्ण बुद्धि बड़ी से बड़ी समस्याओं का हल सहज ही निकाल लेती है. बिहार की लोककथाओं से पढ़िए गोनू झा की चतुराई का यह किस्सा.
गोनू झा की हाजिरजवाबी से खुश होकर राजा उन्हें अक्सर इनाम देते रहते थे. इस कारण लोगों को लगता था कि गोनू झा ने खूब सारे पैसे जमा कर रखे हैं. यही कारण है कि चोर भी गोनू झा के घर चोरी करने की ताक में रहा करते थे.
एक रात चोरों ने गोनू झा के घर में सेंध लगा ही दी. चोर अंदर पहुँचे तो देखा कि घर के लोग जगे हुए हैं. चोरों ने गोनू झा के सोने के कमरे में रखे मिट्टी के भांडों के पीछे छिपने का ठिकाना ढूँढा और घर के लोगों के सोने का इंतज़ार करने लगे. गोनू झा जब सोने के लिए कमरे में पहुँचे तो उन्हें कुछ आहट सुनाई पड़ी. ध्यान से देखा तो भांडों के पीछे छिपे चोर भी दिखाई दे गए. चोरों को देखकर गोनू झा भयभीत हो गए. चार-पाँच चोर कमरे के अंदर और वे सिर्फ पति और पत्नी. शोर मचाने में भी जान का खतरा दिख रहा था. किसी तरह अपने मन को संभाला और बिस्तर पर लेट गए. पत्नी को बताना भी उचित नहीं था. कहीं वह भय से चिल्ला देती तो लेने के देने पड़ जाते. क्या किया जाय, यह समझ में नहीं आ रहा था.
लेटे-लेटे अचानक उन्होंने पत्नी से कहा- “तुम्हें पता है, माँ ने जो गहने दिए थे, वो मैंने कहाँ छिपाए हैं ?”
पत्नी चौंक कर बोली – “तुम्हारी माँ ने गहने कब दिए ? और तुमने मुझे बताया क्यों नहीं?”
गोनू झा बोले- “पिछले हफ्ते ही उसने गहनों का थैला दिया था. मैं इतना व्यस्त था कि तुम्हें बताना भूल गया. लेकिन तुम चिंता न करो, मैंने उन गहनों को सुरक्षित जगह पर छिपा दिया है.”
उनकी पत्नी के गुस्से का ठिकाना न रहा. बिस्तर पर उठ कर बैठ गईं – “तुम्हें शर्म नहीं आती ? मुझे दिखाए बिना तुमने गहनों को कहीं छिपा दिया? कहीं चोरी हो गई तो?”
गोनू झा पत्नी को बिस्तर पर लिटाते हुए बोले- “नाराज क्यों होती हो? बताया तो कि भूल गया था. लेकिन चिंता मत करो. मैंने उन गहनों को ऐसी जगह छिपाया है कि चोरों को सूंघ तक नहीं लगेगी.”
पत्नी- “लेकिन छिपाया कहाँ है? कुछ मुझे भी तो पता चले.”
गोनू झा- “बताता हूँ. कान इधर लाओ. आजकल दीवारों के भी कान होते हैं.” यह कह कर गोनू झा पत्नी के कान में कुछ खुसर-फुसर करने लगे, लेकिन पत्नी को कुछ समझ नहीं आया.
पत्नी- “ये क्या फुसफुसा रहे हो? थोड़ा तेज क्यों नहीं बोलते? यहाँ कमरे में कौन है सुनने वाला मेरे सिवा?”
गोनू झा- “अच्छा सुनो! मैंने गहनों के थैले को घर के पीछे वाले अमरुद के पेड़ पर लटका दिया है. वहाँ किसी को शक नहीं होगा गहनों के होने का.”
“क्या !” पत्नी चिल्लाई –“ तुम पागल तो नहीं हो गए हो गए हो? घर के बाहर पेड़ पर कोई गहने टांगता है? अभी जाकर गहने अंदर ले आओ.”
गोनू झा- “अरे, अब इतनी रात में अँधेरे में कैसे लाऊं? साँप-बिच्छू भी हो सकते हैं. तुम कह रही हो तो
सुबह-सवेरे उतारकर तुम्हें दे दूँगा. जहाँ मर्जी हो, वहाँ रखना. अब सो जाओ. रात काफी हो गई.”
जल्दी ही गोनू झा के खर्राटे गूँजने लगे. पत्नी कुछ देर तो भुनभुनाती रही, फिर थक-हारकर सो गईं. चोरों ने जब से अमरुद के पेड़ पर गहनों की थैली टंगी होने की बात सुनी थी, वो बेचैनी से दोनों के सो जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे. जैसे ही दोनों के खर्राटों की आवाज सुनी, वे चुपके से अपने छिपने की जगह से निकले और सेंध वाली जगह से बाहर आ गए. घर के पिछवाड़े अमरुद का एक ही पेड़ था, जो उन्हें आसानी से मिल गया. चाँद की रोशनी में भी चोरों को अमरुद के पेड़ पर लटका थैला दिखाई दे गया. तत्क्षण दो चोर पेड़ पर चढ़ गए, जबकि बाकी दो पेड़ के नीचे खड़े हो गए. उधर पेड़ पर चढ़कर चोरों ने जैसे ही थैले को उतारना चाहा, जैसे पहाड़ टूट पड़ा. अँधेरे में चोरों ने जिसे गहनों का थैला समझा था, वो दरअसल मधुमक्खियों का छत्ता था. चोरों के हाथ लगाते ही मधुमक्खियों ने उन पर आक्रमण कर दिया. चोरों ने बचने की खूब कोशिश की, लेकिन मधुमक्खियों ने उन्हें काट-काटकर उनका अंग-प्रत्यंग सुजा दिया. बचकर भागने की कोशिश में चोर गोबर इकट्ठा करने के लिए बनाए गए गड्ढे में गिर पड़े. गोबर से निकलने की तमाम कोशिशों के बावजूद चारों चोर उस दलदल से निकलने में कामयाब नहीं हो सके.
सुबह जब गोनू झा की नींद टूटी, तो सबसे पहले उठ कर अमरुद के पेड़ के पास पहुँचे. देखा तो चारों चोर गोबर में लिपटे पड़े थे.
गोनू झा हँसकर बोले – “कहो दोस्तो, गहनों की थैली मिली या नहीं?”
चोर बेचारे क्या बोलते? बोलने की हालत में कहाँ थे? गोनू झा ने पड़ोसियों को भी आवाज लगाकर बुला लिया. पहले तो सबने मिलकर चोरों की खूब पिटाई की और फिर उन्हें राजा के सिपाहियों के हवाले कर दिया. गोनू झा चोरों को सिपाहियों के हवाले कर घर लौटे, जहाँ उनकी पत्नी गहनों के थैले का इंतजार कर रही थी. अब पिटाई की बारी गोनू झा की थी.
सुन्दर
Bahut khoob. Mushkil halaat me dhairya aur samajhdari se kaam lena chahiye .Gonu jha ki har kahani koi na koi sandesh liye hoti hai. Unka aacharan aaj bhi prasangik hai.Hamaara bachpan unki kahaniya sunte gujra hai.