आँगन में वह बास की कुर्सी पर पाँव उठाए बैठा था। अगर कुर्ता-पाजामा न पहले होता तो सामने से आदिम नजर आता। चूँकि शाम हो गयी थी और धुँधलका उतर आया था, उसकी नजर बार-बार आसमान पर जा रही थी। शायद उसे असुविधा हो रही थी। उसने पाँव कुर्सी से नीचे उतार लिये और एक […]
कुछ लोग दार्शनिक होते हैं, कुछ लोग दार्शनिक दिखते हैं। यह जरूरी नहीं कि जो दार्शनिक हो वह दार्शनिक न दिखे, या जो दार्शनिक दिखे वह दार्शनिक न हो, लेकिन आमतौर से होता यही है कि जो दार्शनिक होता है, वह दार्शनिक दिखता नहीं है, और जो दार्शनिक दिखता है वह दार्शनिक होता नहीं है। […]
और एक दिन वह सब काम-धन्धे छोड़ कर घर से निकल पड़ी। कोई निश्चित प्रोग्राम नहीं था, कोई सम्बन्धी बीमार नहीं था, किसी का लड़का पास नहीं हुआ था, किसी परिचित का देहान्त नहीं हुआ था, किसी की लड़की की सगाई नहीं हुई थी, कहीं कोई सन्त-महात्मा नहीं आया था, कोई त्योहार नहीं था — […]
सिमरौली गाँव के लिए उस दिन दुनिया की सबसे बड़ी खबर यह थी कि संझा बेला जंडैल साब आएँगे। सिमरौली में जंडैल साहब की ससुराल है। वहाँ के हर जोड़ीदार ब्राह्मण किसान को सुखराम मिसिर के सिर चढ़ती चौगुनी माया देख-देखकर अपनी छाती में साँप लोटता नजर आता था। बेटी के बाप तो कई धनी-धोरी […]
मैं लपका चला जा रहा था। इसी समय एक ओर से आवाज आयी, “पण्डितजी !” मैंने घूमकर देखा- एक परिचित नवयुवक मेरी ओर आता दिखाई पड़ा। उसका नाम श्यामनारायण था और बी. ए. का विद्यार्थी था। मुझे उसने प्रणाम किया। मैंने मुस्कराते हुए प्रणाम का उत्तर देकर पूछा, “कहो, क्या हालचाल है; परीक्षा हो गई?” […]
आज स्कूल का वार्षिक फंक्शन है, सुबह सात बजे से मैं यहीं हूं… सारी तैयारियां अपने चरम पर हैं। रिहर्सल जितनी होती थी, हो चुकी। पिछले महीने तो मैंने पांच-पांच, छ:-छ: घंटे रिहर्सल करवायी है, जब तक बच्चे थककर चूर नहीं हो जाते। सुबह सात से शाम छ: बजे तक…। आज तो बस बारी-बारी तैयार […]
अभी-अभी लाउडस्पीकर पर बताया गया है कि गाड़ी लगभग दो घंटे लेट हो जाएगी। पास ही खड़े एक सैनिक अफसर ने बताया कि रास्ते में बड़े-बड़े स्टेशनों पर जनता इन लोगों के स्वागत के लिए इकट्ठा हो गई है। इसलिए यहाँ पहुँचते-पहुँचते इतनी देर हो जाना तो नेचुरल है। उसे इस बात से कोई परेशानी […]
1 विद्यालयों में विनोद की जितनी लीलाएँ होती रहती हैं, वे यदि एकत्र की जा सकें, तो मनोरंजन की बड़ी उत्तम सामग्री हाथ आये। वहाँ अधिकांश छात्र- जीवन की चिंताओं से मुक्त रहते हैं। कितने ही तो परीक्षाओं की चिंता से भी बरी रहते हैं। वहाँ मटरगश्त करने, गप्पें उड़ाने और हँसी-मजाक करने के सिवा […]
‘नवरस’ के संपादक पं. चोखेलाल शर्मा की धर्मपत्नी का जब से देहांत हुआ है, आपको स्त्रियों से विशेष अनुराग हो गया है और रसिकता की मात्रा भी कुछ बढ़ गयी है। पुरुषों के अच्छे-अच्छे लेख रद्दी में डाल दिये जाते हैं; पर देवियों के लेख कैसे भी हों, तुरंत स्वीकार कर लिये जाते हैं और […]