किसी देश की संसद में एक दिन बड़ी हलचल मची. हलचल का कारण कोई राजनीतिक समस्या नहीं थी, बल्कि यह था कि एक मंत्री का अचानक मुंडन हो गया था. कल तक उनके सिर पर लंबे घुँघराले बाल थे, मगर रात में उनका अचानक मुंडन हो गया था. सदस्यों में कानाफूसी हो रही थी कि […]
धर्मराज लाखों वर्षो से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफारिश के आधार पर स्वर्ग और नरक में निवास-स्थान अलाट करते आ रहे थे.पर ऐसा कभी नहीं हुआ था. सामने बैठे चित्रगुप्त बार-बार चश्मा पोंछ, बार-बार थूक से पन्ने पलट, रजिस्टर देख रहे थे.गलती पकड में ही नहीं आ रही थी. आखिर उन्होंने खीझकर रजिस्टर इतनी […]
नानी बिल्कुल अनपढ़। अस्सी के ऊपर आयु होगी, लेकिन अँग्रेजी के कुछ शब्द उसे आते हैं—जैसे कि रिफ्यूजी, जिसे वह रफूजी बोलती है। कुछ शब्द इतिहास की उपज होते हैं, जो प्रतिदिन की जिन्दगी का हिस्सा बन जाते हैं। ये शब्द राजा अथवा रानी की देन होते हैं। अँग्रेज़ जाते-जाते बँटवारा करा गये और विरासत […]
खद्दर की चादर ओढ़े, हाथ में माला लिए शाहनी जब दरिया के किनारे पहुंची तो पौ फट रही थी. दूर-दूर आसमान के परदे पर लालिमा फैलती जा रही थी. शाहनी ने कपड़े उतारकर एक ओर रक्खे और ‘श्रीराम, श्रीराम’ करती पानी में हो ली. अंजलि भरकर सूर्य देवता को नमस्कार किया, अपनी उनीदी आंखों पर […]
अच्छाई-बुराई की बात मैं नहीं जानता। कम-से-कम इतनी नहीं जानता कि सबके, और खासकर अपने, बारे में यह फैसला कर सकूँ कि हम अच्छे हैं कि बुरे। लेकिन उसके बिना जी न सकें, चल न सकें, चाह न सकें, ऐसा तो नहीं है! उसके लिए जानता हूँ कि वह अच्छी है। और यह भी जानता […]
वाजिदा तबस्सुम उर्दू की मशहूर अफसानानिगार रही हैं. 1975 में लिखी उतरन उनकी सर्वाधिक चर्चित कहानी है. अंग्रेजी में ‘Cast-Offs’ या ‘Hand-Me Downs के नाम से अनूदित इस कहानी का कई भारतीय भाषाओं में भी अनुवाद हुआ. टेलीविजन पर इसी नाम के धारावाहिक के अतिरिक्त मीरा नायर की चर्चित फिल्म ‘Kama Sutra: A Tale of […]
प्रख्यात कथाकार विजयदान देथा की कहानी दुविधा पर हिन्दी में दो फ़िल्में बनी हैं. 1973 में मणि कौल ने दुविधा के नाम से ही पहली फिल्म बनाई ,जिसे वर्ष 1974 का Filmfare Critics Award for Best Movie भी प्राप्त हुआ. मणि कौल को इस फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशन का राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्राप्त हुआ. […]
गजाधर बाबू ने कमरे में जमा सामान पर एक नज़र दौड़ाई – दो बक्स, डोलची, बाल्टी। ”यह डिब्बा कैसा है, गनेशी?” उन्होंने पूछा। गनेशी बिस्तर बाँधता हुआ, कुछ गर्व, कुछ दु:ख, कुछ लज्जा से बोला, ”घरवाली ने साथ में कुछ बेसन के लड्डू रख दिए हैं। कहा, बाबूजी को पसन्द थे, अब कहाँ हम गरीब […]
सब पर मानो बुआजी का व्यक्तित्व हावी है। सारा काम वहाँ इतनी व्यवस्था से होता जैसे सब मशीनें हों, जो कायदे में बँधीं, बिना रुकावट अपना काम किए चली जा रही हैं। ठीक पाँच बजे सब लोग उठ जाते, फिर एक घंटा बाहर मैदान में टहलना होता, उसके बाद चाय-दूध होता।उसके बाद अन्नू को पढने […]