मिस पाल -मोहन राकेश
वह दूर से दिखाई देती आकृति मिस पाल ही हो सकती थी। फिर भी विश्वास करने के लिए मैंने अपना चश्मा ठीक किया। निःसन्देह, वह मिस पाल ही थी। यह तो खैर मुझे पता था कि वह उन दिनों कुल्लू में रहती हैं, पर इस तरह अचानक उनसे भेंट हो […]
वह दूर से दिखाई देती आकृति मिस पाल ही हो सकती थी। फिर भी विश्वास करने के लिए मैंने अपना चश्मा ठीक किया। निःसन्देह, वह मिस पाल ही थी। यह तो खैर मुझे पता था कि वह उन दिनों कुल्लू में रहती हैं, पर इस तरह अचानक उनसे भेंट हो […]
चाहे धूल-भरा अन्धड़ हो, चाहे ताज़ा-ताज़ा, साफ़ आसमान, गांव की तरफ़ नज़र उठती, तो वह ज़रूर उस बूढ़े पीपल से टकराती, जो दक्खिन को जानेवाले छोर पर खड़ा जाने कब से आसमान को निहार रहा है। हां, जब आसमान घिरा होता, ऊदे-ऊदे बादल झुककर गांव की बंसवारियों को दुलराने लगते, […]
भुवाली की एक छोटी सी कॉटेज में लेटा-लेटा मैं सामने के पहाड़ देखता हूँ। पानी भरे, सूखे-सूखे बादलों के घेरे देखता हूँ। बिना आँखों के भटक-भटक जाती धुन्ध के निष्फल प्रयास देखता हूँ। और फिर लेटे-लेटे अपने तन का पतझार देखता हूँ। सामने पहाड़ के रूखे हरियाले में रामगढ़ जाती […]
मैं चुपचाप खडा सब देख रहा हूँ और अब न जाने क्यों मुझे मन में लग रहा है कि दीवानचंद की शवयात्रा में कम से कम मुझे तो शामिल हो ही जाना चाहिए था। उनके लडके से मेरी खासी जान-पहचान है और ऐसे मौके पर तो दुश्मन का साथ भी […]
बीच की तीन पगडंडियों को पार कर बानो आती थी। आते ही पूछती थी, “कुछ पता चला?” मेरा मन झूठ बोलने के लिए मचल उठता। सोचता, कह दूँ-“हाँ, पता चल गया..हम दिल्ली जा रहे हैं।“ लेकिन बानो झूठ ताड़ जाएगी, इसलिए आँखें मूँदे रहता। बानो मेरे माथे पर हाथ […]