हवा हूँ, हवा मैं बसंती हवा हूँ। सुनो बात मेरी – अनोखी हवा हूँ। बड़ी बावली हूँ, बड़ी मस्तमौला। नहीं कुछ फिकर है, बड़ी ही निडर हूँ। जिधर चाहती हूँ, उधर घूमती हूँ, मुसाफिर अजब हूँ। न घर-बार मेरा, न उद्देश्य मेरा, न इच्छा किसी की, न आशा किसी की, न प्रेमी न दुश्मन, […]
सतपुड़ा के घने जंगल। नींद मे डूबे हुए से ऊँघते अनमने जंगल। झाड ऊँचे और नीचे, चुप खड़े हैं आँख मीचे, घास चुप है, कास चुप है मूक शाल, पलाश चुप है। बन सके तो धँसो इनमें, धँस न पाती हवा जिनमें, सतपुड़ा के घने जंगल ऊँघते अनमने जंगल। सड़े पत्ते, गले पत्ते, हरे पत्ते, […]
आज कवि त्रिलोचन का जन्मदिन है. हिंदी प्रगतिशील काव्यधारा को स्थापित करने वाले कवियों में त्रिलोचन का नाम महत्वपूर्ण है . यूं ही कुछ मुस्काकर तुमनेपरिचय की वो गांठ लगा दी! था पथ पर मैं भूला भूला फूल उपेक्षित कोई फूला जाने कौन लहर ती उस दिन तुमने अपनी याद जगा दी। कभी कभी यूं हो जाता है गीत […]
एक थे नव्वाब, फ़ारस से मंगाए थे गुलाब। बड़ी बाड़ी में लगाए देशी पौधे भी उगाए रखे माली, कई नौकर गजनवी का बाग मनहर लग रहा था। एक सपना जग रहा था सांस पर तहजबी की, गोद पर तरतीब की। क्यारियां सुन्दर बनी चमन में फैली घनी। फूलों के पौधे वहाँ लग रहे थे खुशनुमा। […]
पन्त जी की भारतमाता ग्रामवासिनी की स्मृति में लिखी गयी कविता धरती का आँचल है मैला फीका-फीका रस है फैला हमको दुर्लभ दाना-पानी वह तो महलों की विलासिनी भारत पुत्री नगरवासिनी विकट व्यूह, अति कुटिल नीति है उच्चवर्ग से परम प्रीति है घूम रही है वोट माँगती कामराज कटुहास हासिनी भारत पुत्री नगरवासिनी खीझे चाहे […]
भारत माता ग्रामवासिनी। खेतों में फैला है श्यामल, धूल भरा मैला सा आँचल, गंगा यमुना में आँसू जल, मिट्टी कि प्रतिमा उदासिनी। दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन, अधरों में चिर नीरव रोदन, युग युग के तम से विषण्ण मन, वह अपने घर में प्रवासिनी। तीस कोटि संतान नग्न तन, अर्ध क्षुधित, शोषित, निरस्त्र जन, मूढ़, […]
बीस साल बाद मेरे चेहरे में वे आंखें वापस लौट आई हैं जिनसे मैंने पहली बार जंगल देखा है : हरे रंग का एक ठोस सैलाब जिसमें सभी पेड डूब गए हैं। और जहां हर चेतावनी खतरे को टालने के बाद एक हरी आंख बनकर रह गई है। बीस साल बाद मैं अपने आप से […]