खूनी औरत का सात खून – पंद्रहवाँ परिच्छेद
खून की रात ! “समागते भये धीरो धैर्येणैवात्मना नरः। आत्मानं सततं रक्षेदुपायैर्बुद्धिकल्पितैः॥” (व्यासः) वे सब तो उधर गए और इधर मैं उस कोठरी की देख-भाल करने लगी। मैंने क्या देखा कि, “उस बड़ी सी छप्परदार कोठरी में आठ खाट बराबर-बराबर बिछ रही हैं, डोरी की ‘अरगनी’ पर कपड़े-लत्ते […]