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भोजपुर की ठगी : अध्याय 19 : मोदी की दुकान

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अध्याय 19 : मोदी की दुकान

सरेंजा के पास पहुँचकर डाकू एक मोदी की दुकान  में जा रुके। उन्होंने देखा कि मोदी कुटकी, तिलवा, चावल, दाल, सत्तू आदि चीजों से भरी हाँडी  पतुकी चंगेली के बीच में गम्भीर भाव से बैठा है। और एक दूसरा आदमी उसके पास खड़ा होकर  गाँजे का दम लगाते हुए बातें बना रहा है। वह जैसा ही काला है वैसा ही लम्बा-चौड़ा है। उसके सिर के बाल बहुत बढे हुए हैं। ओंठ के ऊपर बड़ी बड़ी मूँछें हैं और आँखें पकी करजनी की तरह लाल हैं। गरज यह कि उसको राक्षस कहने में कुछ दोष नहीं है। वक्ता  ने मुसाफिरों को एक चटाई दिखाकर कहा -“सलाम साहब! बैठिये।”
पाँडे और राय चटाई पर जा बैठे, तीसरा डाकू और एक जगह। मोदी ने चकमक पत्थर से आग जलाते हुए कहा-“भई, दलीप सिंह! यह तो बड़े अचरच की बात है। लोग सबेरे उठकर उसका नाम लेते हैं वही हीरासिंह ऐसा आदमी है?”
दलीप-“अबकी धर्मात्मा जी की सब विद्या-बुद्धि देखी जायेगी। अबके उन्होंने भले घर बायन दिया है।”
मोदी ने तमाखू चढ़ाकर चिलम फूँकते-फूँकते कहा- “मुंशीजी में गजब हिम्मत है।”
दलीप – “सिर्फ हिम्मत नहीं? इतना बल कितने आदमियों में है?”
भोला – “हाँ, हमने भी सुना है हीरासिंह भी बहुत जबरदस्त आदमी है।”
मोदी ने “तमाखू पीजिये” कहकर रायजी को चिलम दिया और कहा-“हीरासिंह के बल की क्या कहते हैं, बहुत लोग उनको देवता समझते  हैं।”
भोला- “हीरासिंह से मुंशीजी की रार का असल कारण क्या है?”
मोदी-“वह कहानी बड़ी लम्बी है। तो हाँ सिंह जी! दारोगा जी दलबल समेत उसी कोठरी में कैद हुए, इसके बाद क्या हुआ?”
दलीप – “इसके बाद उनको अच्छी तरह खिला-पिलाकर कर कल श्याम को आरे चालान कर दिया। मुंशीजी ने चिट्ठी में सारा हाल खुलासा लिख दिया है। अब के हीरासिंह बचके नही जायेंगे।”
मोदी – “यह बात अभी नहीं कह सकते। भाई साहब, अब सब हीरासिंह के हाथ में है, खासकर मुंशीजी पर जो जुर्म लगाया है उससे जान पड़ता है कि मुंशी जी ही फँसेंगे।”
दलीप – “अरे वह साबित कैसे होगा? कहा है कि रेशम की नाव लूट ली है; लेकिन माल कहाँ है?”
यह कहकर वह फिर गाँजा पीने लगा। भोला ने मन ही मन कहा- वह प्रण आसानी से पूरा हो जाएगा। दूसरा प्रण है मुंशी जी के जेवर का सन्दूक या बतौर उसकी कीमत दस हजार रूपये जबरदस्ती लेना। यह प्रण पूरा होते ही मेरा पाप-कर्म पूरा हो जाएगा। परन्तु यह पापी कौन है? फिर प्रकट में बोला-“”भैया जबरदस्त दुष्ट आदमी क्या नहीं कर सकता! हीरासिंह ने मुंशीजी पर जो जुर्म लगाया है, तुम देख लेना, वह बात की बात में साबित हो जायगा।”
दलीपसिंह ने चिलम जमीन पर रखकर कहा – “मुमकिन है कि सबूत हो गया। हमलोग गरीब आदमी बड़े आदमियों की बात क्या समझेंगे! (मोदी से ) भई! अब वर्षा होने लगी मैं जाता हूँ। हाँजी आज वहाँ नाच होगा, देखने चलोगे?”
मोदी-“गुलशन का नाच होगा देखेंगे नहीं! तुम मुझे पुकार लोगे न? कब आओगे?”
दलीप – “आधीरात को। लेकिन भई! आज बेफ़िक्र होकर नाच देखने नहीं पाऊँगा। बीच-बीच में आ-आकर मकान पर पहरा देना होगा? साले कब आ जायँ, कुछ ठिकाना नहीं। अब चलता हूँ।”
दलीप के चले जाने पर भोला ने मोदी से पूछा – “यह कौन आदमी है, किसके घर डाका पड़ने की बात कहता था?”
मोदी-“इसका नाम दलीप सिंह है, यह मुंशी हरप्रकाशलाल का प्यादा है। भोलापंछी का नाम आपने सुना है।? उसके जैसा डाकू इस दुनिया में नहीं है। सुनते हैं वही कह गया है कि आज रात को मुंशी जी के घर पर डाका डालूँगा।”
भोला -“तब तो बड़ी आफत है। यह देश बेराजा का हो गया। अच्छा भैया, हम लोग चलते हैं।”
मोदी ने उनलोगों को प्रणाम करके विदा किया।
भोलाराय दोनों साथियों सहित कुछ दूर चलकर शूद्र डाकू से बोला, सुनो जी दुःखी! तुम अभी मुरार जाओ। नंगे पैर जाओगे तो देर होगी। उस बेंत की झाडी में दो जोड़ी खड़ाऊँ  रक्खी है। जो जोड़ी लम्बी है उसी पर चढ़कर हवा की तरह जाओ। हीरा सिंह से मेरा नाम लेकर कहना कि उन्होंने 25 गाँठ रेशम माँगा है। उसे अपने साथ लाना और पचीसों गाँठ लाकर मुंशी जी की गोशाला में छिपा देना। देखना खूब सावधानी से काम करना। काम हो जाय तो खूब जोर से तीन बार “सियाराम” “सियाराम” कहना। तब मैं समझ जाऊँगा कि काम निर्विघ्न हो गया। अगर कुछ विघ्न पड़े तो दो बार “गुरूजी पार लगाओ, गुरूजी पार लगाओ” कहना। समझ गये न। अब जाओ, अभी जाओ। जो कुछ कहा है वह सब याद रहेगा?”
दुःखी-“याद तो रहेगा मगर काम सीधा नहीं है।”
दुःखी के चले जाने पर भोला ने सागर पाँडे से कहा-“सुनो पाँडे जी ! तुमको भी एक काम करना होगा।”
पाँडे – “क्या? कहो।”
भोला-“यह जो आदमी गाँजा पीकर गया है उसको खूब पहचान लिया है न?”
पाँडे – “हाँ।”
भोला – “वह मुंशी जी का प्यादा है। आज आधीरात को वह मोदी के साथ नाच देखने जायेगा। तुम अभी से उस दुकान में कुछ खाकर सो रहो। जन वह नाच देखने जाय तब तुम भी उसके साथ जाना। उसको अपनी निगाह में रखना। वह उठे तो तुम भी उठना लेकिन खबरदार वह न देखने पावे। वह मुंशी जी के मकान के पास आये तो तुम दूर से कोई गीत गाना। बस, इससे ज्यादा तुमको कुछ नहीं करना पड़ेगा।”
पाँडे – “बस इतना ही? इतना तो मैं मज़े में कर लूँगा।”
भोला – “तब तुम दुकान  पर लौट जाओ।”
भोला राय सागर पाँडे के हाथ में खाने के लिए चार पैसे देकर चलता बना।
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