सूरज की आंखों में
ढीठ बनकर देखते
मुद्राओं की गर्मी पर
बाजरे की रोटी सेकते
हम चाह लेते तो
दोनों पलड़े बराबर कर
तुम्हारी अनंत चाहतों से
अपने सारे हक तौलते
सिले हुए होंठ और
कटी ज़ुबान से बोलते
हम चाह लेते तो
पोखरे के गंदले पानी में
आसमानी सितारे घोलते!
Subscribe
Login
0 Comments
Oldest