अंतराल

प्रोफेसर को वो साढ़े तीन शब्द अपने कानों में मिश्री की तरह घुलते महसूस हुए। उसने नाक पर थोड़ा नीचे ढुलक आए चश्में को ठीक किया और गर्दन उठाकर सामने देखा। एक अल्हड़ युवती, शालीनता की प्रतिमूर्ति बनी उसके सामने हाथ जोड़कर खड़ी थी।