बचपन में जो मेलोडीज़ गुनगुनाते थे, साहित्यिक अभिरुचि जागने के बाद पता चला किन्हीं गोपाल दास ‘नीरज’ नाम के कवि ने उन्हें रचा है। साहित्य का विद्यार्थी होने पर तो नीरज जैसे मन में समा गए। लोकप्रिय साहित्य बनाम गंभीर साहित्य के विमर्श को आधुनिक कवियों में नीरज से ही सबसे ज्यादा चुनौती मिली। न […]
सिंदबाद ने हिंदबाद और बाकी लोगों से कि आप लोग स्वयं ही सोच सकते हैं कि मुझ पर कैसी मुसीबतें पड़ीं और साथ ही मुझे कितना धन प्राप्त हुआ। मुझे स्वयं इस पर आश्चर्य होता था। एक वर्ष बाद मुझ पर फिर यात्रा का उन्माद चढ़ा। मेरे सगे-संबंधियों ने मुझे बहुत रोका किंतु मैं न […]
अगले दिन सब लोग फिर एकत्र हुए और भोजन के बाद सिंदबाद ने अपनी पाँचवीं यात्रा का वर्णन शुरू किया। सिंदबाद ने कहा कि मेरी विचित्र दशा थी। चाहे जितनी मुसीबत पड़े मैं कुछ दिनों के आनंद के बाद उसे भूल जाता था और नई यात्रा के लिए मेरे तलवे खुजाने लगते थे। इस बार […]
अगले दिन निश्चित समय पर सब लोग आए और भोजन के बाद सिंदबाद ने कहना शुरू किया. सिंदबाद ने कहा, कुछ दिन आराम से रहने के बाद मैं पिछले कष्ट और दुख भूल गया था और फिर यह सूझी कि और धन कमाया जाए तथा संसार की विचित्रताएँ और देखी जाएँ. मैंने चौथी यात्रा की […]
कोई छींकता तक नहीं इस डर से कि मगध की शांति भंग न हो जाए, मगध को बनाए रखना है, तो, मगध में शांति रहनी ही चाहिए मगध है, तो शांति है कोई चीखता तक नहीं इस डर से कि मगध की व्यवस्था में दखल न पड़ जाए मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए मगध […]
तीसरे दिन नियत समय पर हिंदबाद तथा अन्य मित्रगण सिंदबाद के घर आए। दोपहर का भोजन समाप्त होने पर सिंदबाद ने कहा, दोस्तो, अब मेरी तीसरी यात्रा की कहानी सुनो जो पहली दो यात्राओं से कम विचित्र नहीं है। सिंदबाद ने कहा कि घर आकर मैं सुखपूर्वक रहने लगा। कुछ ही दिनों में जैसे पिछली […]
दोस्तो, अब मैं तुम लोगों को अपनी दूसरी सागर यात्रा की कहानी सुनाता हूँ, यह पहली यात्रा से कम विचित्र नहीं है। सब लोग ध्यान से सुनने लगे और सिंदबाद ने कहना शुरू किया। मित्रो, पहली यात्रा में मुझ पर जो विपत्तियाँ पड़ी थीं उनके कारण मैंने निश्चय कर लिया था कि अब व्यापार यात्रा […]
खलीफा हारूँ रशीद के शासन काल में एक गरीब मजदूर रहता था जिसका नाम हिंदबाद था। एक दिन जब बहुत गर्मी पड़ रही थी वह एक भारी बोझा उठा कर शहर के एक भाग से दूसरे भाग में जा रहा था। रास्ते में थक कर उसने एक गली में, जिसमें गुलाब जल का छिड़काव किया […]
जाड़ों की सूनी द्वाभा में झूल रही निशि छाया गहरी, डूब रहे निष्प्रभ विषाद में खेत, बाग़, गृह, तरु, तट, लहरी। बिरहा गाते गाड़ी वाले, भूँक भूँक कर लड़ते कूकर,