शाम को जब दीनानाथ ने घर आकर गौरी से कहा, कि मुझे एक कार्यालय में पचास रुपये की नौकरी मिल गई है, तो गौरी खिल उठी. देवताओं में उसकी आस्था और भी दृढ़ हो गयी. इधर एक साल से बुरा हाल था. न कोई रोजी न रोजगार. घर में जो थोड़े-बहुत गहने थे, वह बिक […]
प्रेमचंद ने तोल्स्तोय की कई कहानियों का भारतीयकरण किया है. इन्हें अनुवाद कहने की जगह भावानुवाद कहना ज्यादा सही होगा. प्रस्तुत है ऐसी ही एक कहानी Two Old Men का भावानुवाद एक गांव में अर्जुन और मोहन नाम के दो किसान रहते थे. अर्जुन धनी था, मोहन साधारण पुरुष था. उन्होंने चिरकाल से बद्रीनारायण की […]
बाबू ब्रजनाथ क़ानून पढ़ने में मग्न थे, और उनके दोनों बच्चे लड़ाई करने में.श्यामा चिल्लाती, कि मुन्नू मेरी गुड़िया नहीं देता.मुन्नू रोता था कि श्यामा ने मेरी मिठाई खा ली. ब्रजनाथ ने क्रुद्ध हो कर भामा से कहा-तुम इन दुष्टों को यहाँ से हटाती हो कि नहीं ? नहीं तो मैं एक-एक की खबर लेता हूँ. […]
लखनऊ नेशनल बैंक के दफ्तर में लाला साईंदास आराम कुर्सी पर लेटे हुए शेयरो का भाव देख रहे थे और सोच रहे थे कि इस बार हिस्सेदारों को मुनाफ़ा कहां से दिया जायगा. चाय, कोयला या जूट के हिस्से खरीदने, चांदी, सोने या रूई का सट्टा करने का इरादा करते; लेकिन नुकसान के भय से […]
मेरे भाई साहब मुझसे पाँच साल बडे थे, लेकिन तीन दरजे आगे। उन्होने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैने शुरू किया; लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दीबाजी से काम लेना पसंद न करते थे। इस भवन की बुनियाद खूब मजबूत डालना चाहते थे जिस पर आलीशान महल बन […]
जीवन का बड़ा भाग इसी घर में गुजर गया, पर कभी आराम न नसीब हुआ. मेरे पति संसार की दृष्टि में बड़े सज्जन, बड़े शिष्ट, बड़े उदार, बड़े सौम्य होंगे; लेकिन जिस पर गुजरती है वही जानता है. संसार को उन लोगों की प्रशंसा करने में आनंद आता है, जो अपने घर को भाड़ में […]
उन दिनों संयोग से हाकिम-जिला एक रसिक सज्जन थे. इतिहास और पुराने सिक्कों की खोज में उन्होंने अच्छी ख्याति प्राप्त कर ली थी. ईश्वर जाने दफ्तर के सूखे कामों से उन्हें ऐतिहासिक छान-बीन के लिए कैसे समय मिल जाता था. वहाँ तो जब किसी अफसर से पूछिए, तो वह यही कहता है ‘मारे काम के […]
अँधेरी रात के सन्नाटे में धसान नदी चट्टानों से टकराती हुई ऐसी सुहावनी मालूम होती थी जैसे घुमुर-घुमुर करती हुई चक्कियाँ। नदी के दाहिने तट पर एक टीला है। उस पर एक पुराना दुर्ग बना हुआ है जिसको जंगली वृक्षों ने घेर रखा है। टीले के पूर्व की ओर छोटा-सा गाँव है। यह गढ़ी और […]
यों तो मेरी समझ में दुनिया की एक हज़ार एक बातें नहीं आती—जैसे लोग प्रात:काल उठते ही बालों पर छुरा क्यों चलाते हैं ? क्या अब पुरुषों में भी इतनी नजाकत आ गयी है कि बालों का बोझ उनसे नहीं सँभलता ? एक साथ ही सभी पढ़े-लिखे आदमियों की आँखें क्यों इतनी कमज़ोर हो […]