‘एल्प्स’ के सामने कारीडोर में अंग्रेजी-अमरीकी पत्रिकाओं की दुकान है। सीढ़ियों के नीचे जो बित्ते-भर की जगह खाली रहती है, वहीं पर आमने-सामने दो बेंचें बिछी हैं। इन बेंचों पर सेकंड हैंड किताबें, पॉकेट-बुक, उपन्यास और क्रिसमस कार्ड पड़े हैं। दिसंबर… पुराने साल के चंद आखिरी दिन। नीला आकाश… कँपकँपाती, करारी हवा। कत्थई रंग का […]
बीच की तीन पगडंडियों को पार कर बानो आती थी। आते ही पूछती थी, “कुछ पता चला?” मेरा मन झूठ बोलने के लिए मचल उठता। सोचता, कह दूँ-“हाँ, पता चल गया..हम दिल्ली जा रहे हैं।“ लेकिन बानो झूठ ताड़ जाएगी, इसलिए आँखें मूँदे रहता। बानो मेरे माथे पर हाथ रखती। जब उसका हाथ ठंडा […]
हर शहर के दो चेहरे (या शायद ज्यादा? ) होते हैं, एक वह जो किसी ‘पिक्चर पोस्टकार्ड’ या ‘गाइड बुक’ में देखा जा सकता है –एक स्टैण्डर्ड चेहरा, जो सबके लिए एक सा है; दूसरा उसका अपना निजी, जो दुलहिन के चेहरे-सा घूंघट के पीछे छिपा रहता है. उसका सुख, उसका अवसाद, उसके अलग-अलग मूड, […]
उसने अपना सूटकेस दरवाजे के आगे रख दिया। घंटी का बटन दबाया और प्रतीक्षा करने लगा। मकान चुप था। कोई हलचल नहीं – एक क्षण के लिये भ्रम हुआ कि घर में कोई नहीं है और वह खाली मकान के आगे खडा है। उसने रुमाल निकाल कर पसीना पौंछा, अपना एयर बैग सूटकेस पर रख दिया। दोबारा बटन दबाया और दरवाजे […]