शुरू करता हूँ गणपति गणेश उर्फ़ अपने अल्ला मियाँ के नाम से, जिसने बनाया एक नन्हा सा शहर बरेली और उसमें फिट कर दिया मिर्ज़ा चोया को. हमें बचपन के मिर्ज़ा चोया और होली की मिली-जुली याद आती है तो हंसी छूट जाती है. उन दिनों हमारा भरपूर बचपन था और मिर्ज़ा चोया की जवानी. […]
आँख मुलमुल…गाल…गुलगुल…बदन थुलथुल, मगर आवाज बुलबुल ! वे मात्र वन पीस तहमद में लिपटे, स्टूल पर उकडूं बैठे, बीड़ी का टोटा सार्थक कर रहे थे ! रह-रह कर अंगुलियों पर कुछ गिन लेते और बीड़ी का सूंटा फेफड़ों तक खींच डालते थे! जहां वे बैठे थे वहाँ कच्ची पीली ईंट का टीन से ढका भैंसों […]