(1) बूढ़ा मनोहरसिंह विनीत भाव से बोला — “सरकार, अभी तो मेरे पास रुपए हैं नहीं, होते, तो दे देता। ऋण का पाप तो देने ही से कटेगा। फिर, आपके रुपए को कोई जोखिम नहीं। मेरा नीम का पेड़ गिरवी धरा हुआ है। वह पेड़ कुछ न होगा, तो पचीस-तीस रुपए का होगा। इतना पुराना […]
मैं लपका चला जा रहा था। इसी समय एक ओर से आवाज आयी, “पण्डितजी !” मैंने घूमकर देखा- एक परिचित नवयुवक मेरी ओर आता दिखाई पड़ा। उसका नाम श्यामनारायण था और बी. ए. का विद्यार्थी था। मुझे उसने प्रणाम किया। मैंने मुस्कराते हुए प्रणाम का उत्तर देकर पूछा, “कहो, क्या हालचाल है; परीक्षा हो गई?” […]
स्मृति-वह मर्म-स्पर्शी स्मृति, जो हृदय-पृष्ठ पर करुणोत्पादक भावों की उस पक्की और गहरी स्याही से अंकित की गई है, जिसका मिटना इस जन्म में कठिन ही नहीं, प्रत्युत असंभव है। आह! वह स्मृति कष्ट-दायिनी होने पर भी कितनी मधुर और प्रिय है! उस स्मृति से हृदय जला जाता है, तन-मन राख हुआ जाता है, फिर […]
”ताऊजी, हमें लेलगाड़ी (रेलगाड़ी) ला दोगे?” कहता हुआ एक पंचवर्षीय बालक बाबू रामजीदास की ओर दौड़ा। बाबू साहब ने दोंनो बाँहें फैलाकर कहा- ”हाँ बेटा,ला देंगे।” उनके इतना कहते-कहते बालक उनके निकट आ गया। उन्होंने बालक को गोद में उठा लिया और उसका मुख चूमकर बोले- ”क्या करेगा रेलगाड़ी?” बालक बोला- ”उसमें बैठकर बली दूल […]
मास्को से लगभग दो सौ मील पश्चिम की ओर वियाज्मा के निकट – जंगल में घने वृक्षों के मध्य एक बड़ी-सी झोंपड़ी बनी थी। इस झोंपड़ी में एक छोटा-सा रूसी परिवार रहता था। इस परिवार में केवल तीन प्राणी थे। एक प्रौढ़ वयस्क पुरुष, जिसकी वयस पैंतालीस वर्ष के लगभग थी। शरीर का हृष्ट-पुष्ट तथा […]