उस रोज सुबह से पानी बरस रहा था। साँझ तक वह पहाड़ी बस्ती एक अपार और पीले धुँधलके में डूब-सी गयी थी। छिपे हुए सुनसान रास्ते, बदनुमा खेत, छोटे-छोटे एकरस मकान – सब उस पीली धुन्ध के साथ मिलकर जैसे एकाकार हो गए थे। औरतें घरों के दरवाजे बन्द किए सूत सुलझा रही थीं। आदमी […]
स्मृति की धुँधली और गम्भीर छाया में आज वह छोटी-सी घटना उतनी प्रखर और उत्तेजित नहीं प्रतीत होती। आज जब इस प्रकाश ह्रास और अच्छाई के संसार से भागकर उस कुरूप अन्धकार में, उस उन्माद, उस उफान के साथ नयन खोलना चाहता हूँ, तब दम घुटने लगता है। आज का अर्थ है – मेरी सफलता, […]
श्यामा पात्र अमरनाथ पुरी : आयु 30 वर्ष श्यामा : मिसेज पुरी अप्पी : मिस्टर पुरी का सहायक मनोज : 19 वर्ष का लड़का हीरा : अधेड़ बेयरा ( जॉर्ज टाउन में मिस्टर पुरी के भव्य बँगले का एक सुसज्जित कमरा। कमरे के दाहिनी ओर दीवार में एक द्वार है, जिस पर लाल साटिन का […]
पात्र: महिला अनाउंसर, रिक्शेवाला, थका अफसर, एक परेशान रमणी, एक मसरूफ पति, कुछ लड़के, पागल आया (यह नाटक ड्राइंगरूम के लिए ही है।) एक दीवार से जरा हटाकर काला स्क्रीन खड़ा किया गया है। जिसके बराबर अनाउंसर (जिसे स्त्री ही होना चाहिए) खड़ी है। अनाउंसर के कपड़े रंग-बिरंगे होते हैं। एक फूलदार ड्रेसिंग गाऊन, रेशमी […]
इस ‘आज’, ‘कल’, ‘अब’, ‘जब’, ‘तब’ से सम्पूर्ण असहयोग कर यदि कोई सोचे क्या, खीज उठे कि इतना सब कुछ निगलकर – सहन कर इस हास्यास्पद बालि ने काल को क्यों बाँधा। इस ‘भूत’, ‘भविष्य’, ‘वर्तमान’ का कार्ड – हाउस क्यों खड़ा किया, हाँ, यदि सोचे क्या, खीज उठे कि कछुए के समान सब कुछ […]
भेड़िया क्या है’, खारू बंजारे ने कहा, ‘मैं अकेला पनेठी से एक भेड़िया मार सकता हूँ.’ मैंने उसका विश्वास कर लिया. खारू किसी चीज से नहीं डर सकता और हालाँकि 70 के आस-पास होने और एक उम्र की गरीबी के सबब से वह बुझा-बुझा सा दिखाई पड़ता था; पर तब भी उसकी ऐसी बातों का […]