आपने सुना होगा कि कुछ लोग भाड़ झोंकने दिल्ली जाते हैं, कोयला ढोने कलकत्ता जाते हैं और बीड़ी बेचने बम्बई जाते हैं. मैं अपनी हजामत बनवाने लखनऊ गया था. लखनऊ पहले सिर्फ अवध की राजधानी थी, अब महात्मा बटलर की कृपा से सारे संयुक्त प्रान्त की राजधानी है. कई सुविधाओं का खयाल करते हुए यह […]
यह मैंने आज ही जाना कि जिस सड़क पर एक फुट धूल की परत चढ़ी हो, वह फिर भी पक्की सड़क कहला सकती है. पर मेरे दोस्त झूठ तो बोलेंगे नहीं. उन्होंने कहा था कि पक्की सड़क है, साइकिल उठाना, आराम से चले आना. धूल भी ऐसी-वैसी नहीं. मैदे की तरह बारीक होने के […]
लाला झाऊलाल को खाने-पीने की कमी नहीं थी। काशी के ठठेरी बाजार में मकान था। नीचे की दुकानों से 100 रुपया मासिक के करीब किराया उतर आता था। कच्चे-बच्चे अभी थे नहीं, सिर्फ दो प्राणी का खर्च था। अच्छा खाते थे, अच्छा पहनते थे। पर ढाई सौ रुपए तो एक साथ कभी आंख सेंकने के […]