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कार्नेलिया का गीत (अरुण यह मधुमय देश हमारा) जयशंकर प्रसाद के नाटक चन्द्रगुप्त से लिया गया है।

काव्यांश

अरुण यह मधुमय देश हमारा!

 जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।
 सरस तामरस गर्भ विभा पर नाच रही तरुशिखा मनोहर।
 छिटका जीवन हरियाली पर मंगल कुंकुम सारा!

शब्दार्थ

अरुण: सुबह का सूर्य, लाल रंग, प्रातः कालीन आकाश में छाई लाली
मधुमय: मिठास से भरा हुआ
क्षितिज: जहाँ धरती और आकाश मिलते प्रतीत होते हैं
सरस: रस से भरा हुआ
तामरस: तांबे की तरह लाल, खनिज से भरी पृथ्वी, कमल
विभा: प्रकाश, चमक
तरुशिखा: पेड़ों की फुनगियाँ
मनोहर: मन को हरने वाला, सुंदर, आकर्षक

व्याख्या

सिकंदर के सेनापति सिल्यूकस (सेल्यूकस) की पुत्री कार्नेलिया को भारतीय संस्कृति से प्यार है। वह सिंधु नदी के किनारे ग्रीक शिविर में बैठी भारतीय संगीत का अभ्यास करते हुए यह गीत गाती है। कवि ने कार्नेलिया द्वारा भारत को अपना देश मानते दिखाया है।

कार्नेलिया कहती है कि सूर्योदय के समय चारों ओर लालिमा लिए यह मिठास से भरा देश हमारा भारत है। सूर्य रोशनी और ज्ञान का प्रतीक है। यहाँ सूर्य (अरुण) को संबोधित करके यह बताने की कोशिश की गयी है कि भारत की धरती पर ही सबसे पहले ज्ञान का प्रकाश फैला, जिससे सारा विश्व प्रकाशित हुआ। कार्नेलिया भारत के लोगों की दया भावना, उनकी करुणा और त्याग जैसे गुणों से प्रभावित है। भारतीयों के मन में दूसरों के प्रति अपनेपन की भावना भारतीय संस्कृति को मिठास से भर देती है। इसीलिए कार्नेलिया भारत को मधुमय देश कहती है।

अनजान क्षितिज भारत आने वाले विदेशियों का प्रतीक है। भारत देश उन अनजान विदेशियों को न सिर्फ सहारा देता है, बल्कि उन्हें हृदय से अपना कर अपने साथ शामिल कर लेता है। कवि का इशारा समय-समय पर भारत आए विदेशियों से है, जो भारतीय संस्कृति में घुल मिल कर हमेशा के लिए इसके अंग हो गए।

रस से भरी तांबई चमक वाली (तांबे के जैसे लाल रंग वाली अर्थात् खनिज संपदा से परिपूर्ण) पृथ्वी पर पेड़ों की फुनगियाँ हवा के झोंकों के साथ नाच रही हैं।  इस लाल (खनिज संपदा के कारण) -हरी (पेड़ पौधों के कारण) धरती पर सूर्य की किरणें यूँ चमक रही हैं, जैसे किसी ने चारों ओर मंगल कुमकुम छिड़क दिया हो अर्थात् भारत भूमि सबके लिए मंगल दायिनी और शुभ है।

काव्यांश

लघु सुरधनु से पंख पसारे-शीतल मलय समीर सहारे।
 उड़ते खग जिस ओर मुँह किए-समझ नीड़ निज प्यारा।

शब्दार्थ

लघु: छोटा
सुरधनु: देवताओं का धनुष, इंद्रधनुष
शीतल: ठंडी
मलय समीर: मलय देश की ओर से आने वाली हवा
खग: पक्षी
नीड़: घोंसला
निज: अपना

व्याख्या

छोटे-छोटे इंद्रधनुषी रंग के पंख फैलाए पक्षी भी मलय की ओर से आने वाली ठंडी और चंदन की सुगंध लिए आने वाली हवा के साथ जिस देश को अपना प्यारा घोंसला समझ कर उड़ते हुए आ रहे, वह देश हमारा भारत वर्ष है। रंग-बिरंगे पक्षी विभिन्न देशों से भारत आने वाले विदेशियों के प्रतीक हैं, जो भारत को अपना देश मान यहीं बस जाते हैं।

काव्यांश

बरसाती आँखों के बादल-बनते जहाँ भरे करुणा जल।
 लहरें टकराती अनंत की पाकर जहाँ किनारा।

शब्दार्थ

करुणा जल: किसी दूसरे के दुख में बहने वाले आँसू
अनंत: जिसका अंत न हो, समुद्र (प्रस्तुत पंक्तियों के संदर्भ में उचित), ईश्वर

व्याख्या

जिस प्रकार बादल बरस कर तपती धरती और प्यासे जीव-जंतुओं की प्यास बुझाता है और सबकी तपन दूर करता है, उसी प्रकार दूसरों के दुखों और कष्टों को देखकर भारतीयों की आँखों से करुणा के बादल बरस पड़ते हैं, अर्थात् भारतीय दूसरों के दुखों से दुखी होकर उनके कष्टों को दूर करने की कोशिश करते हैं।

समुद्र की बेचैन लहरें भी भारत के तट पर आकर शांत हो जाती हैं, जैसे उन्हें किनारा मिल गया हो। अर्थात्, अशांत प्रदेशों से त्रस्त और परेशान होकर आने वाले विदेशी भारत की शांत भूमि पर आकर अपने कष्टों को भूल जाते हैं, मानो उन्हें अपनी मंजिल मिल गयी हो।

काव्यांश

 हेम कुंभ ले उषा सवेरे – भरती ढुलकाती सुख मेरे।
 मदिर ऊँघते रहते जब-जगकर रजनी भर तारा।

शब्दार्थ

हेम: सोना, ओस
कुंभ: घड़ा
हेम कुंभ: सोने का घड़ा, ओस से भरा घड़ा
उषा: प्रातः कालीन सूर्य
मदिर: नशे में
रजनी: रात

व्याख्या

सुबह-सुबह जब रात भर जागने के बाद तारे नींद के नशे में ऊँघ रहे होते हैं, जैसे कोई स्त्री  घड़े में जल लेकर जमीन पर छिड़कती है, वैसे ही उषा रूपी स्त्री सोने के घड़े में ओस भर कर चारों ओर सुखों के रूप में बिखेर देती है। सूर्य के लिए सोने के घड़े का रूपक दिया गया है।

कार्नेलिया का गीत- अरुण यह मधुमय देश हमारा!  : सारांश

‘कार्नेलिया का गीत’ जयशंकर प्रसाद के नाटक चन्द्रगुप्त से लिया गया है।

कार्नेलिया ग्रीक सेनापति सेल्यूकस की पुत्री है। सेल्यूकस सिकंदर के विजय अभियानों के लिए उसके साथ भारत के सीमा प्रदेश में आया है। कार्नेलिया उसके साथ है। सिंधु नदी के किनारे ग्रीक सेना का शिविर है, जहाँ रहते हुए कार्नेलिया को भारत के प्राकृतिक सौन्दर्य और भारतीय संस्कृति से प्यार हो जाता है। वह महर्षि दाण्ड्यायन के आश्रम में भारतीय दर्शन और संगीत की शिक्षा लेती है। यह गीत भी वह भारतीय संगीत के अभ्यास के क्रम में गाती है, लेकिन गीत की पंक्तियाँ भारत और भारतीयों से उसके लगाव को अभिव्यक्त करती हैं।

प्रसाद जी ने एक विदेशी युवती द्वारा भारत की प्रशंसा करा कर उसे भारत को अपना देश मानते दिखा कर भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठता सिद्ध करने की कोशिश की है।

कार्नेलिया का गीत- अरुण यह मधुमय देश हमारा!  : प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1: कार्नेलिया का गीत कविता में प्रसाद ने भारत की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया है?

उत्तर: प्रसाद जी ने भारत की इन विशेषताओं की ओर संकेत किया है-

  • भारत भूमि प्रेम की मिठास से भरी हुई है, अर्थात् भारतीय स्वभाव से ही मधुर व्यवहार वाले हैं।
  • यहाँ अंजान व्यक्तियों को भी आश्रय दिया जाता है।
  • यहाँ की धरती खनिज संपदा से परिपूर्ण और उपजाऊ है।
  • यहाँ के लोग दया, करुणा और सहानुभूति भावनाओं से भरे हुए हैं।
  • सूर्य की किरणें सुबह-सुबह भारत भूमि पर खुशहाली और समृद्धि बिखेर जाती हैं।

प्रश्न 2: ‘उड़ते खग’ और ‘बरसाती आँखों के बादल’ में क्या विशेष अर्थ व्यंजित होता है?

‘उड़ते खग’ का आशय विदेश से आने विभिन्न संस्कृतियों के लोगों से है, जो भारत को अपना देश मान कर यहाँ बस जाते हैं। ‘बरसाती आँखों के बादल’ से तात्पर्य दूसरों के दुखों को देखकर भारतीयों की आँखों में आने वाले आँसुओं से है। अर्थात् भारतीय इतने कोमल हृदय और दयालु होते हैं कि किसी अनजान को भी दुखी देख कर उनकी आँखों में आँसू आ जाते हैं और वो उस दुखी व्यक्ति के दुख को दूर करने की कोशिश करते हैं।

प्रश्न 3:  काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
हेम कुंभ ले उषा सवेरे-भरती ढुलकाती सुख मेरे
मदिर ऊँघते रहते जब-जगकर रजनी भर तारा।

भाव सौन्दर्य : प्रस्तुत काव्यांश में उषा का मानवीकरण कर उसे पानी भरने वाली स्त्री के रूप में चित्रित किया गया है। सुबह-सुबह जब रात भर जागने के बाद तारे नींद के नशे में ऊँघ रहे होते हैं, जैसे कोई स्त्री  घड़े में जल लेकर जमीन पर छिड़कती है, वैसे ही उषा रूपी स्त्री सोने के घड़े में ओस भर कर चारों ओर सुखों के रूप में बिखेर देती है।

शिल्प सौन्दर्य
(क) उषा और तारे का मानवीकरण ।
(ख)  जब-जगकर में अनुप्रास अलंकार।
(ग)  हेम कुंभ  में रूपक अलंकार।
(घ) तत्सम-प्रधान खड़ी बोली
(ङ) गेयता

 प्रश्न 4: ‘जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा’- पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

इसका तात्पर्य है कि जिनका कोई आश्रय नहीं होता है, भारत में उन्हें भी शरण मिल जाती है।

अनजान क्षितिज भारत आने वाले विदेशियों का प्रतीक है। भारत देश उन अनजान विदेशियों को न सिर्फ सहारा देता है, बल्कि उन्हें हृदय से अपना कर अपने साथ शामिल कर लेता है। कवि का इशारा समय-समय पर भारत आए विदेशियों से है, जो भारतीय संस्कृति में घुल मिल कर हमेशा के लिए इसके अंग हो गए।

 प्रश्न 5: कविता में व्यक्त प्रकृति-चित्रों को अपने शब्दों में लिखिए।

सुबह के सूर्य किरणों से मिठास से भरी भारत भूमि चमकने लगती है। हवा के झोंकों के साथ नाचती पेड़ों की चोटियों पर पड़ने वाली सूर्य की किरणें मनोहारी दृश्य उत्पन्न करती हैं। रंग-बिरंगे पक्षी अपने घोंसलों की ओर उड़े जाते हैं। खनिज और पेड़ पौधों से भरी भारत की लाल-हरी धरती पर जब सूर्य की किरणें पड़तीं हैं, तो ऐसा लगता है, जैसे किसी ने जीवन रूपी हरियाली पर मंगल कुमकुम छिड़क दिया हो।

सुबह-सुबह उषा रूपी स्त्री सूर्य रूपी सोने के घड़े से चारों ओर यूँ ओस बिखेर देती है, मानो भारतवासियों को सुखों का उपहार दे रही हो।

 

कवि/लेखक परिचय

जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी में 1889 ईस्वी में हुआ। आठवीं तक विद्यालयी शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद उन्होंने स्वाध्याय (Self Study) के द्वारा संस्कृत, पालि, अंग्रेज़ी और उर्दू भाषा के साहित्य का गहन अध्ययन किया। साहित्य के अतिरिक्त उन्होंने इतिहास, दर्शन शास्त्र और धर्म शास्त्रों का भी अध्ययन किया। प्रसाद जी छायावादी युग के चार स्तंभों में से एक थे। उनकी काव्य रचनाओं में कामायनी, लहर, आँसू, झरना आदि प्रमुख हैं। उन्होंने चन्द्रगुप्त, स्कंदगुप्त, ध्रुवस्वामिनी और अजातशत्रु जैसे नाटकों के द्वारा न सिर्फ ब्रिटिश शासन के विरुद्ध राष्ट्रीय चेतना जगाने की काम किया, बल्कि भारत के गौरवपूर्ण अतीत को भी सामने लेकर आए। उपन्यास: कंकाल और तितली उनके चर्चित उपन्यास हैं। इरावती उनका अपूर्ण उपन्यास है। आकाशदीप, पुरस्कार, गुंडा, छाया, इंद्रजाल आदि कहानियाँ हिंदी की श्रेष्ठ कहानियों में गिनी जाती हैं। 1937 में मृत्यु होने तक प्रसाद जी निरंतर साहित्य सेवा में जुटे रहे।

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