Skip to content

भोजपुर की ठगी : अध्याय 31 : पिंजड़े में चिड़िया

0 0 votes
Article Rating
“तुम मेरी तरफ घूर-घूरकर क्यों ताकते हो?” कहकर गूजरी ने दूसरी ओर मुँह फेर लिया।
फौजदार ने बिना कुछ सहमे कहा-“मैं एक बात सोचता था। लतीफन के इजहार में उसको बचाने वाली जिस काली, बिखरे बाल वाली हँसमुख औरत का जिक्र है और सामने जो मूर्ती देख रहा हूँ उससे मुझे विशवास होता है कि तुम्हीं ने लतीफन की जान बचाई है। अब तुमसे एक बात पूछता हूँ। लतीफन के इजहार में यह भी लिखा है, जब हीरासिंह उसको तंग कर रहा था उस समय एक नाटा-सा जवान वहाँ आया। उसे देखकर हीरा ने कहा-‘क्यों रे  दुखिया! क्या खबर है।’ उसने कहा-‘रेशम के गोदाम की चाबी चाहिये, रायजी ने कहा है।’ दुखिया कौन है? और रायजी कौन हैं?”
गूजरी ने कहा – “दुखिया हीरासिंह का खवास है और राय जी उसका पाला हुआ पंछी है।”
फौजदार ने चपरासी को पुकारकर कहा -“मेरा नाम लेकर हीरासिंह के खवास दुखिया को जरा बुला तो लाओ।” चपरासी के चले जाने पर उन्होंने गूजरी से पूछा-“भला यह तो बताओ कि तुम हीरासिंह का सर्वनाश करने पर क्यों उतारू हो?”
गूजरी ने कहा – “जिसने कितने ही आदमियों का सर्वनाश  किया है उसका सर्वनाश मैं नहीं करूँगी? महापापी का सर्वनाश नहीं करूँगी? जिसने मेरी जान बचाई है उसका सर्वस्व लूटकर उलटे उसी पर जिसने नालिस की है उसका सर्वनाश नहीं करूँगी।”
फौजदार-“किसने तुम्हारी जान बचायी?”
गूजरी-“मेरे घर में आग लगी थी मैं उसी में जल जाती, मुंशीजी ने मेरी जान बचाई।”
फौजदार ने कुछ देर चुप रहने के बाद गूजरी से कहा-“मुझे जो कुछ जानना था वह तुमने बता दिया और जो कुछ देखना था वह दिखा दिया। अब तुम्हारी बाबत कुछ जानने को जी चाहता है। तुम कौन हो?”
गू-“मेरा नाम गूजरी है।”
फौज- “तुम कौन जात हो?”
गू-“आजकल मेरी कोई जाति नहीं है। मैं घर से निकल आई हूँ। लेकिन उससे यह न समझ लेना कि मैं कुल्टा हूँ। पति ही मेरे सर्वस्व हैं, पति ही मेरे ईश्वर हैं।”
फौज- “यह बड़े ताज्जुब की बात है तब तुम घर से क्यों निकली?”
गू- “मेरे पति उड़ते फिरते हैं। उनको पकड़ने के लिए मैं उनके पीछे-पीछे घूमती हूँ। उनकी मति-गति फेरने के लिये ही मैं घर से बाहर हुई हूँ।”
इतने में ससुर के साथ मुंशीजी वहाँ आ पहुँचे। उनको देखकर फौजदार ने गूजरी से कहा-“चपरासी से कहना मैं जबतक न बुला भेजूँ तब तक वह दुखिया को बाहर बिठा रखे। और तुम भी अभी कहीं मत जाना।”
गूजरी से यह कहकर फौजदार साहब हरप्रकाशलाल और बलदेवलाल के साथ वहाँ से चले गये।
0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
सभी टिप्पणियाँ देखें