चित्रसेन चितउर गढ राजा । कै गढ कोट चित्र सम साजा ॥
तेहि कुल रतनसेन उजियारा । धनि जननी जनमा अस बारा ॥
पंडित गुनि सामुद्रिक देखा । देखि रूप औ लखन बिसेखा ॥
रतनसेन यह कुल-निरमरा । रतन-जोति मन माथे परा ॥
पदुम पदारथ लिखी सो जोरी । चाँद सुरुज जस होइ अँजोरी ॥
जस मालति कहँ भौंर वियोघी । तस ओहि लागि होइ यह जोगी ।
सिंघलदीप जाइ यह पावै । सिद्ध होइ चितउर लेइ आवै ॥
मोग भोज जस माना, विक्रम साका कीन्ह ।
परखि सो रतन पारखी सबै लखन लिखि दीन्ह ॥1॥
अर्थ: चितौड़ का राजा चित्रसेन था, उसने अपने किले को विचित्र परकोटों से सुसज्जित किया था. रत्नसेन ने उसके यहाँ जन्म लेकर उसके कुल को प्रकाशित कर दिया. ऐसे बालक को जन्म देने वाली माता भी धन्य है. पंडितों, विद्वानों और ज्योतिषियों ने उसके रूप और लक्षणों को देख कर उसके भविष्य के बारे में बताया. उनके अनुसार, यह बालक निर्मल रत्न के समान है. रत्न की ज्योति से इसका मस्तक प्रकाशित है. किसी पद्म के समान कन्या (पद्मावती की ओर संकेत) की जोड़ी निश्चित है. इनकी जोड़ी (रत्नसेन और पद्मावती) से सूर्य और चंद्र के समान प्रकाश फैलेगा. जैसे मालती के पुष्प के वियोग में भौंरा भटकता फिरता है, वैसे ही यह उस कन्या के लिए योगी बनेगा. उसे पाने के लिए यह सिंहल द्वीप जाएगा और उसे चितौड़ लेकर आएगा.
यह राजा भोज की तरह भोग करेगा और विक्रमादित्य की तरह पराक्रमी होगा. पंडितों ने बालक के लक्षण देख कर उसके बारे में ये सारी भविष्यवाणियाँ की.