सगी
रात का सन्नाटा! हाथ में ब्लेड! कमरे में अँधेरा!
राधा बुत बनी कई मिनट तक खड़ी रही। कमरा जाना पहचाना होकर भी अजनबी लगने लगा। सारा गाँव सोया पड़ा था। ‘घर से भागने वाली लड़कियों को ट्रक वाले उठा के ले जाते हैं’ ऐसा उसकी माँ कहती थीं।
हाथ में ब्लेड लिए-लिए उसके ज़हन में अजीब-अजीब सवाल आने लगे।
न जाने माँ क्यों मर गयीं। अभी तो पचास की भी न हुईं थीं। कहती थी ‘जब तू अठरा की हो जायेगी तब तेरा ब्याह करना है। उससे पहले ईश्वर न उठाए बस।’
ईश्वर ने तो उठाया भी नहीं, वो तो इसी आंगन में पड़ी रह गयी थी जब उसे चार लोग उठा के घाट ले गए। वो भी घाट जाना चाहती थी पर किसी ने जाने न दिया। इससे तो ईश्वर ही उठा लेता, मोहल्ले वालों ने उठाया, उससे तो बेहतर होता।
तीन साल पहले ही मर गयी। मुझे अठरा का तो होने देती।
फिर उसे बाबूजी का ख्याल आया। माँ हमेशा कहती थीं ‘तेरे बाबूजी बहुत सीधे हैं, इनके भरोसे रहे तो खेत-खलियान सब दान हो जायेगा और हम गली-गली भिक्षा मांगेंगे।
पर बाबूजी ने तो उसका हमेशा ध्यान रखा। जब घर होते थे तब उसी के पास बैठे बतियाते रहते थे। कभी नहीं हुए तो कहो दो-दो दिन घर न आएं।
चाची कहती हैं ‘तेरा बाप पराई औरतों के चक्कर में लगा रहता है’, पर माँ कहती ‘थीं कि तेरे बाबूजी बहुत सीधे……’
माँ ये भी कहती थीं कि तेरी चाची तेज़ है,छप्पन छुरी है पूरी, इससे बच के रहियो। वो तो तेरा चाचा समझदार है, नेक है जो इससे निबाह किए हुए है।
पर उसे लगता था चाची ज़ुबान की भली-बुरी हो सकती हैं पर दिल की बुरी नहीं हैं। कभी ज्यादा काम नहीं करातीं। खुद भी हाथ बटवा देती हैं।
कहती हैं ‘अभी तू छोटी है न, बड़ी हो जायेगी तब अपनी अम्मा की तरह सारा घर तू ही देखियो।
उसका सिर तेजी से घूमा, एक अजीब सा दर्द हुआ सिर में, उसे याद आया जब वो चाचा के पास गई और पूछ बैठी “चाचा, हम बड़े कैसे होते हैं?”
“हाहाहा, किसने पूछ लिया तुझसे?” चाचा हँसने लगे थे।
“चाची बोलीं जब तू बड़ी हो जायेगी तब तुझे घर का सारा काम करने दूंगी, मैं कब बड़ी होउंगी चाचा?” राधा मासूमियत से बोली
चाचा फिर हँसने लगे “तू बिलकुल अपने बाप पर गयी है। तुझे स्कूल भी तो नहीं भेजते ये लोग कि तुझमें थोड़ी अक्ल आए। अरे बड़ी होने के लिए तुझे ब्याह करना पड़ेगा” चाचा ने पट्टी पढ़ाई
“ओह हाँ, माँ भी ब्याह कराने को कहती रहती थीं हमेशा!” उसे कुछ भूली बात याद आई थी।
“तुझे एक बात बताऊं? ब्याह से पहले भी बड़े हो सकते हैं।”
“वो कैसे चाचा?”
“बता दूं? डरेगी तो नहीं?”
“मैं नहीं डरती चाचा, आप बताओ तो?”
उसके बाद चाचा उसे अपने कमरे में ले गए। चाची बाज़ार गयी थीं।
उसे बहुत दर्द हुआ था उस रोज़, वो रोती रही, मना करती रही पर चाचा नहीं माने।
राधा जैसे किसी नींद से जागी। घड़ी चलने की आवाज़ भी उसे शोर लग रही थी।
उसने फिर ब्लेड की तरफ देखा। फिर चाचा का भयानक चहरा उसे याद आने लगा जो रोज़ उसे बड़ा करने के नाम पर खसोटता रहता था। उसे पता ही न चला कि कब एक महीने के अंदर-अंदर उसने इस ज़िल्लत से समझौता कर लिया।
उसके लिए अब ये सब दिनचर्या का हिस्सा बनने लगा। पर आज….
आज हद कर दी इस शैतान ने। उसे दोपहर के वक़्त अपने कमरे में बुलाया, वो रोज़ की तरह गयी लेकिन रोज़ की तरह वो अकेला न था।
उसके कुत्ते जैसे दोस्त ने उसे न जाने कितनी जगह भंभोड़ा।
कल शाम चाची पड़ोसन को बता रही थीं कि जिस लड़की को कोई शादी से पहले छू ले, उसे तो शर्म से मर ही जाना चाहिए।
आज दोपहर न जाने कैसे उसको सब समझ आ गया था।
क्या वाकई उसे मर जाना चाहिए था? क्या उसकी इज़्ज़त अब उसकी न रही थी? क्या उससे इतना बड़ा पाप हो गया था जिसकी सजा अब उसे खुद को देनी होगी? वो भी मर के?
उसने न में गर्दन हिलाई।
आज सुबह चाची मायके चली गयी। बाबूजी पिछली रात से ही घर नहीं आए थे।
चाचा चाहते थे कि वो आज पहली बार पूरी रात उन्हीं के साथ रहे, पर दिन में कुछ ऐसे ज़ख्म लग गए उसको कि चाचा ने इरादा बदल दिया।
उसने फिर खुद से सवाल किया “क्या मैं ठीक कर रही हूँ?”
उसके मन ने स्वीकृति दी।
उसने पलंग के पास पड़ी रस्सी को उठाया। उसके चार टुकड़े किए और अलग-अलग जगह बाँधने लगी।
जब बंध गए तब उसने दियासलाई से बत्ती जलाई।
फिर पलंग पर चढ़ गई। ब्लेड को मजबूती से पकड़ लिया कि कहीं छूट न जाए।
फिर एक लात चलाई।
चाचा हड़बड़ा के उठा। खुद को बंधा पाकर वो और सकपका गया।
“ये……ये…..ये क्या कर रही……” उसके मुँह से आवाज़ भी नहीं निकल रही थी।
राधा के बाल खुले थे। वो हाथ में ब्लेड लिए उसकी छाती पर बैठ गयी।
“मुझे खोल, मुझे खोल हरामजादी… खोल मुझे” चाचा चिल्लाया।
राधा कुछ न बोली।
उसने ब्लेड उसकी छाती पर चुभाया
वो चींखने लगा।
राधा मुस्कुराई।
फिर उसी ब्लेड को उसके पेट पर गड़ा कर फिराया। एक पल में पेट से बेतहाशा लहू बहने लगा।
“ये….क्या कर रही है तू, राधा पागल हो गयी है क्या….मुझे छोड़ दे, मैं तो तेरा सगा चाचा हूँ न?”
“इसी बात का अफ़सोस है चाचा कि तू सगा है” फिर राधा ने दोनों पैरों के बीच ब्लेड चलाया।
चाचा और तेज़ चिल्लाया।
“ये क्या हुआ है तुझे??” पागल हो गयी है क्या तू?”
“बड़ी हो गयी हूँ चाचा। यही तो करना चाहता था न?” इस बार ब्लेड उसकी गर्दन पर चला कर, लेकिन हटाया नहीं, वहीं गाड़ दिया उसने।
फिर पलंग से नीचे उतरी। चाचा की चींखें अब सिसकियों में बदलने लगी।
राधा ने एक झोला उठाया। जिसमें कुछ देर पहले उसने कुछ कपड़े और रूपए भरे थे।
जो ‘बाती’ जल रही थी उसे पलंग पर फेंक दिया।
और घर से बाहर निकल गयी।
बिस्तर जलने लगा।
चाचा की सिसकियाँ बाहर तक सुनाई देने लगीं।
उसे चाची ने बताया था कि उसकी माँ को जलाया गया था, कहते हैं जब तक आग न मिले तब तक आत्मा शांत नहीं होती।
वो अंतहीन दिशा की तरफ चल दी। ये देखने कि ‘क्या माँ ट्रक वालों के बारे में सच कहती थी या वो भी कोरी गप्प थी’ ये लोग उसके सगे जरूर थे लेकिन अपने नहीं.
July 15, 2020 @ 3:10 pm
Dunia ladki ko beti wali najar se dekh hi nahi sakti . Agar log apna najaria badal le to betiyan surakhit ho jaye magar jab rishte hi taar-taar ho jaye to betiyon ki ijjat kis aavaran se dhakaa jaye.