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भोजपुर की ठगी : अध्याय १३ : ठाकुरबाड़ी

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अध्याय १३ : ठाकुरबाड़ी

सबेरा हो गया है लेकिन अभी तक कहीं-कहीं अँधेरा है। इसी समय “सियाराम” – “सियाराम” कहकर प्रसिद्ध पुण्यात्मा हीरासिंह ने चारपाई से उठकर जमीन पर पैर रक्खा।

वह इधर-उधर घूमकर एक पत्थर की वेदी के पास आ खड़ा हुआ। देखा वेदी पर भोलाराय गुमसुम बैठा है। भोला आज मानों ब्रम्हाण्ड उलटा देख रहा है, उसे सब चीजें उदास मालूम होती हैं। सभी जहरीली, सभी भयानक जान पड़ती है। सबेरे की शीतल वायु उसके बदन में बिच्छू के डंक-सी लगती है। वह सोचता है – क्यों ऐसा कुकर्म किया? क्यों गूजरी की हत्या की? जिसके देखने से मेरे सब दुःख, सब कष्ट दूर हो जाते थे, उसको मैंने अपने हाथ से मार डाला। डरपोक की तरह, कायर की तरह उसको मार डाला। मैंने जवानी से ही कितने कुकर्म किये हैं क्या उन सबका प्रायश्चित है? न जाने किस कुसाइत में हीरासिंह से मेरी मुलाक़ात हुई थी। हीरा ही मेरे इस कष्ट का कारण है।

हीरा – “क्यों रायजी। यहाँ सी तरह क्यों बैठे हो? क्या हुआ है?”

भोला-“हट जाओ, मेरे सामने से, हट जाओ, मैं क्रोध सम्हाल नहीं सकूँगा। तुम अभी सामने से हट जाओ।”

हीरा-“अजी क्या हुआ है, कहो न।”

“तुम्हीं ने मुझे चौपट किया है। पाजी। आओ आज तुम्हारे लहू से होम करूँगा, तुम्हें मारकर पापयज्ञ की पूर्णाहुति दूंगा।” – यह कहकर गरजते हुए भोलारय ने शेर की तरह उछलकर हीरा सिंह का गला पकड़ा। हीरा झट उसे भेद की तरह जमीन पर पटक कर उसकी छाती पर चढ़ बैठा, बोला – “बाभन! तू शोख हो गया है कि मेरे बदन पर हाथ लगाता है?”

भोला-“हीरा। तुम्हारे पैर पड़ता हूँ, तू मुझे मार डाल, इस कष्ट से मेरा उद्धार कर।”

हेरा. – “पाजी, मैं ब्रह्म-हत्या करूँगा?”

भोला-“तेरे लिए मैंने स्त्री-हत्या की। जिसका मुँह देख कर कलेजा ठंढा होता था उसको मैंने अपने आहत से कुतिया की तरह जला डाला।”

इतने में ही एक घुड़सवार दौड़ा हुआ फुलवारी में आया। हीरा सिंह ने भोला को छोड़ दिया। भोला उठकर फिर वेदी पर जा बैठा। सवार हीरा सिंह के पास पहुंचकर घोड़े से उतरा; हीरा सिंह ने कहा –“क्यों दरोगा साहब! क्या खबर है।”

दरोगा – “हुजूर। खबर अच्छी नहीं है, अबिलाख बिन्द पकड़ा गया है।” – इसके बाद दरोगा ने नाव पर हुई घटना कह सुनाई।

भोला –“अने कि मक्खी मकड़ी के जाल में फंसी।”

हीरा – “मक्खी कौन है रे?”

भोला – “मक्खी हरप्रकाश लाल है और मकड़ी हीरा सिंह।”

हीरा – “अच्छा खूब बनाकर एक दरख्वास्त तो लिख लाओ। मैं आज बहुत काम में हूँ, सिर्फ दस्तखत कर दूंगा। दरोगा जी। आप इस वक़्त जाइए मैं अभी एक आदमी भेजता हूँ।”

दरोगा फ़तहेउल्ला चला गया। ठाकुरबाड़ी में शंख-घड़ियाल बजने लगे। हीरा सिंह भोला को दफ्तर में जाने को कहकर ठाकुर जी की आरती लेने गया लेकिन भोला कहीं गया नहीं, वहीँ चुपचाप बैठा रहा।

अध्याय १२ : गंगा की धारा

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