परिंदे

परिंदे कहानी के केंद्र में है लतिका , एक पर्वतीय शहर के आवासीय गर्ल्स कान्वेंट स्कूल की वार्डन . लतिका मेजर गिरीश नेगी से प्रेम करती थी. लेकिन , यह प्रेम अपने अंज़ाम तक नहीं पहुँच पाता . मेजर गिरीश नेगी की मृत्यु हो जाती है . लतिका का प्रणय पुष्प असमय ही कुम्हला जाता है . तबसे लतिका अपने पूर्व प्रेम की स्मृतियों को धरोहर बनाये जिए जा रही है -अपने वर्तमान से आँखें चुराए . अतीत का हस्तक्षेप उसे वर्तमान को जीने नहीं दे रहा . अतीत का दबाव ही है , जिसके कारण लतिका अपने सहकर्मी ह्यूबर्ट के प्रेम से आँखे चुराती है . एक अन्य सहकर्मी डॉक्टर मुखर्जी लतिका को समझाने की कोशिश करते हैं –
” लेट द डेड डाई . मरने वाले के संग खुद थोड़े ही मरा जाता है . किसी चीज़ को न जानना यदि गलत है , तो किसी चीज़ को न भूलना , जोंक की तरह उससे चिपटे रहना – यह भी तो गलत है .”
लतिका भी जोंक की तरह चिपटी हुई है , गिरीश की स्मृतियों से . लतिका भी यह समझती है कि उसका अतीत उसे जीवन में आगे नहीं बढ़ने दे रहा है –
” ह्यूबर्ट ही क्यों, वह क्या किसी को चाह सकेगी, इस अनुभूति के संग, जो अब नहीं रही, जो छाया-सी मंडराती रहती है, न स्वयं गिरती है, न उसे मुक्ति दे पाती है.”
वह आगे बढ़ना चाहती है . अतीत के बोझ से मुक्त होना चाहती है . आकाश में उड़ते परिंदों को देखकर सोचती है –
“हर साल सर्दी की छुट्टियों से पहले ये परिन्दे मैदानों की ओर उड़ते हैं, कुछ दिनों के लिए बीच के इस पहाड़ी स्टेशन पर बसेरा करते हैं, प्रतीक्षा करते हैं बर्फ के दिनों की, जब वे नीचे अजनबी, अनजाने देशों में उड़ जायेंगे।”
ये परिंदे प्रतीक हैं जीवन से प्रेम के , वर्त्तमान से लगाव के . ये ऊष्मा की तलाश में अपने मुल्कों को छोड़कर अनजान देशों की ओर उड़ जाते हैं . इन्हें प्रेम है जिंदगी से. ज़िंदगी में ऊष्मा बनाए रखकर भी ये अतीत की स्मृतियों के प्रति ईमानदार हो सकते हैं. लतिका में भी परिवर्तन दिखाई देता है…
“अब वैसा दर्द नहीं होता, सिर्फ उसको याद करती है, जो पहले कभी होता था – तब उसे अपने पर ग्लानि होती है. वह फिर जान-बूझकर उस घाव को कुरेदती है, जो भरता जा रहा है, खुद-ब-खुद उसकी कोशिशों के बावजूद भरता जा रहा है…”
“शायद…कौन जाने..शायद जूली का यह प्रथम परिचय हो, उस अनुभूति से, जिसे कोई भी लड़की बड़े चाव से सँजोकर, सँभालकर अपने में छिपाए रहती है, एक अनिर्वचनीय सुख, जो पीड़ा लिए है, पीड़ा और सुख को डुबोती हुई, उमड़ते ज्वर की खुमारी….जो दोनों को अपने में समो लेती है…एक दर्द, जो आनंद से उपजा है और पीड़ा देता है..”
लतिका भी मुक्त होना चाहती है …अपनी स्मृतियों से ,अपने पूर्व प्रेम से . मुक्ति का यह प्रश्न उनके यहाँ नियति का प्रश्न बन जाता है .नामवर सिंह परिंदे कहानी को मुक्ति में प्रश्न से जोड़कर देखते है –“ एक तरह से देखा जाये तो परिंदे की लतिका की समस्या स्वतंत्रता या मुक्ति की समस्या है-अतीत से मुक्ति, स्त्री से मुक्ति, उस चीज से मुक्ति जो हमें चलाये चलती है और अपने रेले में हमें घसीट ले जाती है .” निर्मल वर्मा की कहानियाँ जटिल प्रेमानुभवों की कहानियाँ हैं. आरंभ में इन कहानियों में एक ताज़गी का अहसास होता है , लेकिन धीरे-धीरे ऐसा लगने लगता है कि निर्मल वर्मा एक ख़ास भाषा , एक ख़ास शिल्प और एक ख़ास अनुभूति के गुलाम बन गए हैं . उनकी कहानियां लगभग एक जैसा प्रभाव छोडती हैं .कहानियों से समाज नदारद है . समाज के नाम पर पार्क , बगीचे और हरी घास ही मिलते हैं.
अपनी कहानियों में निर्मल वर्मा ने संगीत का सुन्दर उपयोग किया है .उनके यहाँ संगीत का राग जीवन के राग से जुड़ जाता है . अलग -अलग सी दिखने वाली वस्तुएं पिघलकर संगीत के सुरों में समा जाती हैं और एक पृथक अविस्मरणीय प्रभाव की सृष्टि करती हैं.
August 12, 2017 @ 1:41 pm
बहुत खुब
August 12, 2017 @ 1:41 pm
धन्यवाद…
August 14, 2017 @ 7:55 pm
बहुत खुब
August 3, 2018 @ 4:48 pm
बहुत हद तक आप कहानी की मनः स्तिथि को छू पाये हैं thanks sir
August 3, 2018 @ 4:51 pm
धन्यवाद…