जगदीशचन्द्र का उपन्यास आधा पुल

हिंदी में युद्ध कथाएँ काफी कम लिखी गई हैं, बावजूद इसके कि हिंदी कहानी की शुरुआत में ही गुलेरी जी ने ‘उसने कहा था’ जैसी सशक्त कहानी के माध्यम से युद्ध कथा का सूत्रपात् किया था.
ऐसे में, जगदीशचन्द्र की ‘आधा पुल’ हिंदी में युद्ध की पृष्ठभूमि पर लिखी गई एक महत्वपूर्ण रचना के रूप में सामने आती है. युद्ध और प्रेम के ताने – बाने से बुनी इस कथा के केन्द्र में है कैप्टन इलावत, जिसके चरित्र में शौर्य, प्रेम और खिलंदड़ेपन का मणि-कांचन संयोग है. अपने मित्रों, सैनिकों और अधिकारियों के परिवारों तक में लोकप्रिय कैप्टन इलावत के दो ही शौक हैं.. बढ़िया खाना और शर्त लगाना… उसकी शर्त भी एकदम फिक्स.. दो किलो बर्फ़ी…
ऐसे खुशमिजाज और यारबाश इलावत का दिल आ जाता है ब्रिगेडियर की साली सेमी पर…..
सेमी जिसकी शादी पहले ही किसी और से तय हो चुकी है. 1971 के युद्ध की घोषणा हो चुकी है. इलावत की टुकड़ी को मोर्चे पर जाना है. दो लड़ाइयां हैं इलावत के सामने….
उपन्यास की शुरुआत वस्तुतः कथा के अंतिम दृश्य के साथ होती है, लेकिन मैं अपनी चर्चा कथा की शुरुआत से ही शुरु करूँगा.
तो दोस्तो, कथा की शुरुआत होती है कथानायक कैप्टन इलावत की नये बटालियन में पोस्टिंग के साथ. नये बटालियन में आते ही इलावत अपनी कर्मठता, जिंदादिली और हाजिरजवाबी से सबको प्रभावित कर लेता है. बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल गिल के निवास पर आयोजित एक डिनर पार्टी में उसकी मुलाकात कमांडिंग ऑफिसर की साली सतेन्द्र ग्रेवाल उर्फ़ सेमी से होती है. पहली ही मुलाकात में सेमी को प्रपोज कर इलावत उसे अचंभित कर देता है. बौखलाई हुई सेमी कोई जवाब नहीं दे पाती, लेकिन इलावत के बुलेट स्टार्ट करने के पहले उसका बाहर आकर विदा के लिए हाथ हिलाना इलावत की उम्मीदों को पल्लवित कर जाता है.
कर्नल गिल बटालियन के रेजिंग डे के आयोजन की पूरी जिम्मेदारी इलावत को सौंप देता है. इलावत पूरी निष्ठा के साथ रेजिंग डे की तैयारियों में लग जाता है, लेकिन रेजिंग डे के दिन ही उसे पता चलता है कि सेमी के माता-पिता आयोजन में शामिल होने के लिए आए हैं और साथ में आया है तेजेंद्र, जिसे उन्होंने सेमी के लिए चुना है.
बटालियन का रेजिंग डे! सारी जिम्मेदारी कैप्टन इलावत के कंधों पर! वह इसे सफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता. सेमी के माता-पिता ने उसके लिए तेजेन्द्र को चुना है – इस खबर ने उसे थोड़ा दुखी अवश्य किया है, लेकिन अभी इस बारे में सोचने का वक्त नहीं है.. ड्यूटी फर्स्ट.
रेजिंग डे में वैसे तो बहुत से कार्यक्रम हैं, लेकिन हमारी कथा की दृष्टि से उल्लेखनीय दो कार्यक्रमों की चर्चा जरूरी है.. वेलफेयर फेट और आर्मी अफसरों के बीच का फुटबॉल मैच…
वेलफेयर फेट में बहुत सारे स्टॉल लगाए गए हैं, जिनसे प्राप्त सारी आय आर्मी वेलफेयर फंड में जानी है. ऐसे ही एक स्टॉल पर इलावत खुद मौजूद है.. ज्योतिषी की वेशभूषा में. सामने रखी हैं नंबर लिखी बहुत सारी पर्चियां, जिनके अंदर वह कीमत लिखी है, जो इस स्टॉल पर चुकानी है. यहाँ इलावत तेजेन्द्र को जो पर्ची देता है, उस पर कीमत 500 रूपये लिखी है, जबकि सेमी की पर्ची की कीमत है.. ‘स्टॉल मालिक के लिए सिर्फ़ एक मीठी मुस्कान’. सेमी की मुस्कान तेजेन्द्र को सब कुछ समझा देती है.
अब बात करते हैं फुटबॉल मैच की जो आर्मी ऑफिसर्स के बीच होना था. टीमें बाँटी गई थीं ऑफिसर्स की वैवाहिक स्थिति के आधार पर. यानि, एक टीम विवाहित अफसरों की और दूसरी अविवाहित अफसरों की. समस्या यह है कि विवाहित अफसरों की टीम में सात ही खिलाड़ी थे, जबकि अविवाहित पूरे ग्यारह. इलावत सुझाव देता है कि जिन ऑफिसर्स की सगाई हो गई है, वो भी विवाहितों की टीम से खेल सकते हैं. दो और आ गये. अभी दो खिलाड़ियों की जरूरत और है, विवाहित अफसरों की टीम को. इलावत फिर नयी घोषणा करता है कि जिन अफसरों की सगाई नहीं हुई है, लेकिन बात पक्की हो गई है, वे भी विवाहितों की ओर से खेल सकते हैं. एक और खिलाड़ी आ गया… फिर भी… एक कम.. तभी सेमी इलावत से कहती है : ‘तुम क्यों नहीं जाते’.. इलावत पूछता है : ‘चला जाऊँ?’
सेमी सहमति में सिर हिलाती है. इलावत विवाहितों की टीम में चला जाता है. साथी ऑफिसर इस सरप्राइज पर चकित होते हैं और बधाई देते हैं.
सेमी द्वारा इलावत को विवाहितों की ओर से खेलने के लिए कहना सीधे सीधे उसके प्रेम प्रस्ताव की स्वीकृति थी. इलावत जोश के साथ मैच खेलता है. इलावत के हर मूव पर उछल उछलकर तालियाँ बजाती सेमी तेजेन्द्र के क्रोध की अग्नि में घी डालती है. जला भुना तेजेन्द्र घर जाना चाहता है, लेकिन माँ बाप के कहने पर भी सेमी ‘ऐसे दिलचस्प मैच’ को छोड़कर जाने को राजी नहीं होती. शाम में समारोह खत्म होने के बाद जब कर्नल गिल घर लौटता है तो तेजेन्द्र अपना बोरिया बिस्तर बाँधे वापसी के लिए तैयार बैठा है. कर्नल उसे सुबह तक रुकने का अनुरोध करता है और रेजिंग डे डिनर में शामिल होने को कहता है. तेजेन्द्र डिनर में शामिल होने से इंकार कर देता है, क्योंकि वह दुबारा ‘उस बास्टर्ड इलावत की सूरत नहीं देखना चाहता’. कर्नल उसे भरोसा दिलाता है कि इलावत डिनर में नहीं रहेगा. डिनर से इलावत को दूर रखने के लिए कर्नल उसकी नाइट ड्यूटी कंट्रोल रूम में लगा देता है.
दूसरी ओर, कर्नल की बीबी चाहती है कि कर्नल इलावत पर दबाव डालकर उसे सेमी से दूर रहने को कहे, लेकिन कर्नल इंकार कर देता है. कर्नल अपने सास ससुर को सेमी को साथ ले जाने का सुझाव देता है कि शायद यहाँ से दूर जाकर उसका मन बदल जाए. अंततः यही तय होता है कि सेमी अपने माता-पिता के साथ सुबह-सुबह वापिस चली जाएगी. ड्यूटी रूम में तैनात इलावत को इन सब बातों का कुछ पता नहीं है.
कंट्रोल रूम में ही सुबह-सुबह इलावत के पास फोन कर सेमी अपने वापस जाने की सूचना देती है और उससे थोड़ी देर के लिए मिलने आने का अनुरोध करती है. इलावत ड्यूटी पर होने के कारण बुझे मन से मना कर देता है. सेमी चली जाती है. इलावत अकेला रह जाता है अपनी आशंकाओं और उलझनों के साथ. तभी, ड्यूटी रूम में कर्नल गिल इस सूचना के साथ आता है कि उनकी बटालियन को सीमा पर पहुँचने का आदेश दिया गया है. उसी दिन पूरी बटालियन सीमा के लिए कूच कर जाती है.
कहानी के इस हिस्से में हमें इलावत के दूसरे रूप के दर्शन होते हैं. एक खिलंदड़े नौजवान को हम अचानक एक जिम्मेदार सेना अधिकारी के रूप में देखते हैं.. जो अपने मातहतों के साथ मित्रवत् व्यवहार रखते हुए भी अनुशासन के मामले में हद दर्जे तक कठोर है. अपने रणनीतिक कौशल और चातुर्य से वह दुश्मन के हमले को नाकाम करने में सफल होता है.
यहाँ इलावत का मानवीय पक्ष भी सामने आता है, जब वह मारे गए दुश्मन सैनिकों को भी दफनाने का आदेश देता है.. बावजूद इसके कि दुश्मन ने उसके एक सैनिक का सर काट कर पेड़ पर लटका दिया था.
इलावत की वीरता की अधिकारियों द्वारा तारीफ़ होती है, लेकिन इलावत को चैन नहीं. एकांत होते ही सेमी की यादों में घिर जाता है. तभी, सिपाही उसे सेमी का पत्र लाकर देता है. पत्र में सेमी ने लिखा है कि, ‘उसने अपनी लड़ाई जीत ली और अब इलावत भी जल्दी से अपनी लड़ाई जीत ले’ . इलावत की सारी उलझनें शांत हो जाती हैं. वह दुबारा शेव करता है. स्नान कर के अपना पसंदीदा नीला सूट पहनता है और अपने मातहत लेफ्टिनेंट्स को ड्रिंक और डिनर की दावत देता है. दावत अभी शुरु ही हुई कि इलावत की कंपनी को दुश्मन पर आक्रमण करने का आदेश आ जाता है.
पार्टी अधूरी रह गई, लेकिन इलावत की खुशी में कोई कमी नहीं है. सेमी अपनी लड़ाई जीत चुकी है, अब इलावत की बारी है. उसे भी अपनी लड़ाई जीतनी है.. सेमी के लिए, खुद के लिए..
इलावत अपना पसंदीदा नीला सूट उतारकर सैनिक वर्दी पहनता है. ग्रेनेड बेल्ट बाँधता है. हेल्मेट, स्टेनगन… सेमी का पत्र और उसके जवाब में लिखा अपना अधूरा पत्र वर्दी की जेब में रखता है. अब वह तैयार है… अपने जीवन की पहली जंग के लिए.. जिसे वह और उसके साथी आखिरी बनाना चाहते हैं.
उपन्यासकार जगदीशचन्द्र लंबे समय तक भारतीय सेना में जनसंपर्क अधिकारी रहे हैं, जिसका प्रभाव युद्ध वर्णन में स्पष्ट दिखता है. रणक्षेत्र , व्यूह रचना आदि का वर्णन वास्तविकता के अत्यंत निकट लगता है.
सीमा पर एक नदी या यूँ कहें कि नदी ही दोनों देशों की सीमा है. नदी पर एक पुल और वह पुल दुश्मन के कब्ज़े में. पुल पर कब्ज़े के कारण शत्रु को इस क्षेत्र में रणनीतिक बढ़त हासिल है. कर्नल गिल की बटालियन को जिम्मेदारी दी गई है इस पुल पर कब्ज़ा करने की.. पहली कोशिश होती है, नदी पर बने बँध को काट कर टैंकों को पुल तक ले जाने की. कोशिश नाकाम होती है, क्योंकि टैंक नदी की दलदल में फंस जाते हैं. अब योजना में बदलाव किया जाता है. सैनिक टैंकों से उतरकर पैदल नदी पार करते हैं और दुश्मन की सीमा में प्रविष्ट हो जाते हैं. दुश्मन को भ्रमित करने के लिए दूसरी ओर से लगातार गोलाबारी की जाती है और इसी गोलाबारी की आड़ लेकर मेजर इलावत के नेतृत्व में उसकी कंपनी पुल पर चढ़ जाती है. इस त्वरित आक्रमण का दुश्मन के पास कोई जवाब नहीं था. इलावत की कंपनी पुल के अपनी ओर वाले सिरे पर अधिकार कर लेती है.. यानि आधा पुल….
इलावत कर्नल गिल को अपनी सफलता की सूचना देता है. गिल इलावत को बधाई देने स्वयं आता है. सारे सैनिक एकत्र हो गए हैं. जानमाल की क्षति का जायज़ा लिया जा रहा है… लेकिन इलावत? कैप्टन इलावत का कहीं कोई पता नहीं था….
पौ फटने पर कर्नल गिल ने इलावत की तलाश के लिए तीन पार्टियां भेजी. वह खुद भी पुल पर बने दुश्मन के कंक्रीट बंकरों के बीच इलावत को ढूँढता रहा. इलावत अंतत: मिला… ‘वह घुटनों पर झुका हुआ पड़ा था. उसका हेलमेट माथे से कुछ ऊपर उठा हुआ था और माथा कंक्रीट की दीवार के साथ टिका हुआ था…. उसकी छाती पर गोलियों के सात निशान थे.’
इलावत ने न सिर्फ़ अपनी लड़ाई जीत ली थी, बल्कि उसे अपनी आखिरी लड़ाई भी बना डाला था.
युद्ध खत्म हो गया. सरकार के निर्णय के अनुसार सेना को जीता हुआ पुल दुश्मन को वापस कर पीछे हटना पड़ा. पुल से कोई पचास गज पीछे भारतीय सीमा में एक पट्टिका जरूर लगी रह गयी, जिस पर लिखा था-‘यहाँ डोगरा बटालियन के परमवीर कैप्टन इलावत ने अपने प्राणों की आहुति देकर पुल की विजय को साकार बनाया था. उन्हें अपार वीरता दिखाने के लिए महावीर चक्र (मरणोपरांत) प्रदान किया गया’.
इलावत शहीद हो गया. सेमी बिना लड़े जंग की भेंट चढ़ गई. दोनों ने अपनी अपनी लड़ाइयाँ जीत ली थी मगर……