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राघौ! एक बार फिरि आवौ। 

ए बर बाजि बिलोकि आपने बहुरो बनहिं सिधावौ।। 
जे पय प्याइ पोखि कर-पंकज वार वार चुचुकारे। 
क्यों जीवहिं, मेरे राम लाडिले ! ते अब निपट बिसारे।। 
भरत सौगुनी सार करत हैं अति प्रिय जानि तिहारे। 
तदपि दिनहिं दिन होत झावरे मनहुँ कमल हिममारे।। 
सुनहु पथिक! जो राम मिलहिं बन कहियो मातु संदेसो। 
तुलसी मोहिं और सबहिन तें इन्हको बड़ो अंदेसो।।

राघौ! एक बार फिरि आवौ – तुलसीदास (गीतावली) : प्रश्नोत्तर

कवि/लेखक परिचय

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