फंदा
हां , एक फंदा बनाया है मैने,
ये मजबूत है इतना
जितना उद्विग्न मैं
और जितनी अल्प मेरी जिजीविषा
आंसू धुली आंखों से
देख रहा हूं मैं
ऐसा ही एक फंदा
डोरी से बना, थोड़ा छोटा
मां ने अंगुली में, इसे है रख लपेटा
दूजा छोर इसका मेरे झूले से है बंधा
मैं तब भी रो रहा था
और अब भी
इस फंदे को पार कर
एक बार फिर
मां की गोद में है जाना मुझे
हां, कुछ नहीं सोचना अब और
बस मुझे जाना है
उस असीम शान्ति की ओर
जहां कृत्रिम मुस्कान नहीं अनिवार्य
परेशान मन रो सकता वहां
बेफिक्र हो, इत्मीनान से
जब तक की नहीं
अंतस का आवेग उतर जाए
बाढ़ के पानी की तरह
मेरे जीवन के गांव से …
September 4, 2020 @ 1:00 am
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