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द थर्ड डिग्री

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“तू झूठ बोलता है, साले!” – सब इंस्पेक्टर दिनेश राठी के होठों से निकलता यह शब्द गौरव प्रधान के लिए किसी रिवाल्वर से निकली गोली के समान था।

“तूने ही अपने पिता का क़त्ल किया है। बता क्यूँ किया अपने बाप का खून, किसलिये किया, कैसे किया, बता।” – दिनेश राठी फिर चिल्लाया। उसकी आँखें गुस्से में लाल हो, गौरव प्रधान को देख रही थीं।

दिनेश राठी उस वक़्त, महरौली थाने में, पुलिस लॉक-अप में मौजूद था। इसे पुलिस लॉक-अप के स्थान पर एक अँधेरी कोठरी कहेंगे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। उस कोठरी में, १८ वाट का एक सी.एफ.एल., सीलिंग से आती हुई एक होल्डर के साथ लटका हुआ, जल रहा था लेकिन उसकी रोशनी इतनी काफी नहीं थी कि वह पूरी कोठरी में पर्याप्त प्रकाश कर सके। उस कोठरी का दरवाजा अन्दर से बंद था और ऐसा लग रहा था कि उस कोठरी के बाहर मौत का बसेरा हो, क्यूंकि जैसे ही कोठरी के अन्दर सन्नाटा पसरता, बाहर से किसी की चूं करने की आवाज भी नहीं हो रही थी। ऐसा महसूस होता था कि वह कोठरी किसी साउंड प्रूफ तकनीक का इस्तेमाल करके बनायी गयी हो। उस कोठरी के केंद्र में एक ९० के दशक के जमाने की कुर्सी थी, जिस पर गौरव प्रधान बैठा हुआ था। हालांकि उसके हाथ-पैर बंधे हुए नहीं थे लेकिन वो खौफ एवं डर से कुर्सी में घुसा जा रहा था।

दिनेश राठी के खाकी वर्दी के हिस्से में आने वाले शर्ट के ऊपर के दो बटन खुले हुए थे। उसके हाथ में चमकीले-गहरे-भूरे रंग का डंडा चमचमा रहा था, जिसे वह बार-बार दायें हाथ से ऊपर उठा कर बाएं हाथ की हथेली में मार रहा था। उसके सामने गौरव प्रधान नामक युवक था, जिसे उसके पिता के कत्ल के जुर्म में कुछ समय पहले लाया गया था। जैसे कि भारत के, हर मर्डर केस में होता है, अगर कोई सस्पेक्ट मिल जाए तो उसे इतना तोड़ो कि अगर उसने कत्ल न भी किया होगा तब भी कन्फेस कर ले कि उसने ऐसा किया था। कुछ ऐसा ही ट्रीटमेंट, दिनेश राठी, गौरव प्रधान पर कर रहा था। कर क्या रहा था, गौरव प्रधान के चेहरे को पढ़ कर साफ़ कहा जा सकता था कि काफी ट्रीटमेंट किया जा चुका था। वैसे पुलिस वालों की जुबां में कहा जाए तो गौरव प्रधान पर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया जा रहा था।

दिनेश राठी ने अपने हाथ में मौजूद लाठी से एक प्रहार गौरव के टांगों पर करते हुए चिल्लाकर कहा – “तूने ही अपने बाप की हत्या की, तूने ही उसे मारा है।”

“नहीं, मैंने नहीं मारा है।” – गौरव प्रधान ने जवाब दिया। काफी समय से जागते हुए, रोते हुए और मार खाते हुए, उसकी आँखें खून के रंग की तरह लाल हो चुकी थीं और उसका चेहरा ऐसा नज़र आ रहा था, जैसा किसी की मौत से पहले, मौत के खौफ से हो जाता हो।

“तू झूठ बोलता है, साले, तूने ही मर्डर किया है।” – दिनेश राठी तेज कदमों से चलते हुए कोठरी के एक कोने में गया और अँधेरे में ही वहां मौजूद किसी मेज पर से एक रिवाल्वर अपने हाथ में उठा कर, गौरव प्रधान की तरफ लौटते हुए बोला – “देख, यह वो मर्डर वेपन है, यह वो हथियार है, जिससे तूने अपने बाप को मौत के घाट उतार दिया था।” – गौरव प्रधान के सामने उस रिवाल्वर को लहराते हुए वह आगे बोला – “ तेरी अँगुलियों के निशान, इस रिवाल्वर पर पाए गए हैं और तुझे बता दूँ, हमने जान लिया है कि इस हथियार का मालिक, कोई और नहीं, तू ही है। ”

गौरव प्रधान के होठों के कोरों से खून की कुछ बूँदें निकल रही थी, जिसे उसे अपने जीभ को होठों के चारों ओर घुमाकर पोंछा। उसका पूरा शरीर डर के मारे कांप रहा था। उसके चेहरे की मांसपेशियां बार-बार बदल रही थी, जिससे लग रहा था कि वह अपने ऊपर सवार हो रही वहशत को कम करने की कोशिश कर रहा था। उसकी आँखों में आँसू उतर आए और वह अपने चेहरे को ऊपर करते हुए, अपने बनाने वाले से मन-ही-मन दुआ करने लगा – हे भगवान , क्या कभी इस अत्याचार का अंत होगा?

उसने बहुत मुश्किल से दिनेश राठी के इलज़ाम के प्रत्युत्तर में कहा – “मैंने अपने पिता का खून नहीं किया है।” – वह सिसकते हुए बोला – “खूनी ने मेरे कमरे में से मेरा रिवाल्वर चुरा लिया था। मैंने अपने पिता का…….”

दिनेश राठी ने अपने हाथ से डंडा छूट जाने दिया और खींच के एक थप्पड़ गौरव प्रधान के गाल पर जमाया। गौरव प्रधान का चेहरा एक झटके से दायीं और घुमा और स्प्रिंग की तरह बाई ओर वापिस आ गया।

“हरामजादे, तू पहले भी मुझे ये बकवास कहानी सुना चूका है। तू खुद जानता है कि तू झूठ बोल रहा है। तुझे जब से यहाँ लाया गया है, तब से सिवाय झूठ-पर-झूठ बोलने के अलावा तूने कुछ नहीं किया है। तू अपने पिता की हत्या का अपराधी है, तू ही असली मुजरिम है।”

“हे, भगवान, रुक जाइए, भगवान के लिए रुक जाइए!” – गौरव प्रधान ने अपनी आँखों में आंसुओं को भरकर दिनेश राठी से प्रार्थना करते हुए कहा – “प्लीज रुक जाइए! मैंने आपको बताया न कि मैंने अपने पिता का खून नहीं किया है। मेरे कमरे से मेरा रिवाल्वर जरूर उस व्यक्ति ने चुराया होगा, जिसने मेरे पिता का कत्ल किया है। आप लोग उस व्यक्ति को क्यूँ नहीं पकड़ते हैं।”

इतना सुनते ही, दिनेश राठी की आँखों में खून उतर आया। उसने उस कुर्सी पर एक लात जमाई जिस पर गौरव प्रधान बैठा हुआ था। गौरव प्रधान मुंह के बल फर्श पर गिरा और कुर्सी उछलती हुई एक ओर चली गयी। – “साले, हमें, हमारा काम सिखाता है।” – दिनेश राठी ने गौरव प्रधान को कंधे से पकड़ते हुए उठाया और एक क्षण के लिए उसने गौरव की आँखों में झांका। कई अपराधी उस पुलिस वाले की आँखों की भयानक चमक को देखकर भयभीत हो उठते थे। कोई भी आज तक उसके सामने, उसकी ठंढी, बेरहम, भूरी आँखों के सामने ज्यादा देर तक टिक नहीं पाता था।

दिनेश राठी, उसे घसीटता हुआ, कुर्सी के करीब ले गया और उस पर गौरव के शरीर को छोड़ दिया। गौरव का शरीर कुर्सी के दोनों ही हत्थों के बीच ज्यों ही पैवस्त हुआ, त्यों ही कुर्सी अपने स्थान से डगमगाई। लेकिन दिनेश राठी ने झुककर कुर्सी के दोनों हाथों को पकड़ा और खींच के एक जोरदार घूंसा गौरव के जबड़े पर जमाया।

दिनेश राठी, सीधा हुआ और अपने दायें हाथ को सहलाते हुए, उसके चेहरे पर एक क्रूर मुस्कान उभर कर आई, जो उसके लिए यह सन्देश था कि अब उसका कैदी सब कुछ बकने के लिए तैयार है।

“कट” – डायरेक्टर चिल्लाया और उस कोठरी में अचानक ही काफी प्रकाश हो गया, जैसे कि किसी अमावस्या की रात को अचानक कई कृत्रिम सूरज चमक उठे हों।

“बहुत ही शानदार काम किया, लड़कों।” – डायरेक्टर ने दोनों ही अभिनेताओं को बधाई देते हुए कहा – “ये सीन जब बड़े पर्दे पर आएगा तो कहर ढा देगा।”

समाप्त….

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विक्की

??? आप गज़ब लिखते हो

Amit Wadhwani

आखरी में ट्विस्ट अच्छा था, पर यह कहानी की जगह एक सीन मात्र लगा थोड़ी बड़ी कहानी पोस्ट कीजिये आप की लेखन शैली अच्छी है बड़ी कहानी पढ़ने में मजा आएगा।

राजीव रोशन

कोशिश रहेगी कि और कहानियां आपके लिए प्रस्तुत कर सकूँ|

Rajdeep Singh Shishodia

थोड़ा और बढाइये । केवल एक दृश्य की झलक ही मिली। अच्छा लिखा।
बधाई

राजीव रोशन

सर, यह कहानी यहीं तक सोची थी| अन्य कहानियों को विस्तृत रखने की कोशिश करूँगा|

धर्मेंद्र त्यागी

सुपर शानदार
अंत मे डायरेक्टर वाला सीन कुछ अलग लगा बाकी मिस्ट्री बढ़िया क्रिएट की लग रहा था कि कहानी आगे बढ़ेगी

सुनीत शर्मा

बढ़िया लिखा है भाई। अंत ट्विस्टिंग था जो कि मुझे बेहद पसंद है लेकिन ट्विस्ट का पटाक्षेप थोड़ा जल्दी हो गया। बहरहाल इस शानदार कहानी के लिये मुबारकबाद टिका लो। ????

राजीव रोशन

टिका ली| कोशिश रहेगी कि भविष्य की कहानियों में इन कमियों को दूर रख सकूँ|

सहर

बहुत समय बाद तुम्हारा लिखा कुछ ‘हट के’ पढ़ने को मिला। बढ़िया।

राजीव रोशन

आशा है, आगे भी कोशिश जारी रहेगी|

Gopal Girdhani

बहुत खूब राजीव ! मज़ा आ गया। लिखते रहा करो।

राजीव रोशन

गोपाल सर, जी जरूर|

Arvind kr shukla

जिस हिसाब से कहानी का शीर्षक थर्ड डिग्री है। थर्ड डिग्री का प्रकोप थोड़ा और वर्णित होना था।

राजीव रोशन

अरविन्द सर, आपके रिस्पांस के लिए धन्यवाद| मैं आपके सलाह से सहमत हूँ| लगता है, इस जगह चूक हो गयी|

आनंद

आपने बहुत अच्छा लिखा, कहानी नयी और हटकर है।
लेकिन मुझे इसके क्लाइमेक्स से ऐतराज है। जो क्लाइमेक्स की बजाय एंटी क्लाइमेक्स हो गया। आपने अपनी मेहनत से जो इमारत खड़ी की उसे आखिर में खुद ही बारूद से उड़ाया।
इस अंत के साथ कहानी फिर क्राइम फिक्शन नहीं रहेगी।
और अधिक कहानियों का इंतजार है।

राजीव रोशन

आनंद सर, कोशिश रहेगी की, भविष्य की कहानियों में ऐसी खामियों से दूरी बना कर रखूं।

sonu gujjar

अच्छी लगी??
आगे से थोड़ी लंबी कहानी लिखो ?

राजीव रोशन

जरूर। आगे से कुछ विस्तृत कंटेंट पढ़ने को मिलेगा, आपको।

Vikas Nainwal

अच्छी लघु-कथा। आखिर में ट्विस्ट बढ़िया था।

Mohit

Twist was awesome

राजीव रोशन

थैंक यू मोहित।

Tariq Ali Saifi

शानदार लिखा राजीव भाई बढ़िया???

राजीव रोशन

शुक्रिया

Navneet

राजीव जी कहानी बहुत अच्छी है, लेकिन खूनी का अंदाजा थोड़ा सा दिमाग लगाते ही हो जाता है ।। ?

राजीव रोशन

शुक्रिया। अगली कहानी में कोशिश रहेगी कि आपको दिमागी कसरत ज्यादा करवाया जाए।

Rammehar singh

बहुत ही बेहतरीन प्रयास सर कहानी थोड़ी लम्बी होती तो ओर भी मजा आता ।

राजीव रोशन

राममेहर सर, अगली कहानी में इस बात की भरपूर कोशिश रहेगी।

Chandan Kumar chhawindra

बहुत बढिया शॉर्ट कहानी…..
कहानी बहुत कसी हुई है , अौर अंत तो शानदार

राजीव रोशन

शुक्रिया एवं आभार, चंदन जी। भविष्य आप यहां क्राइम फिक्शन से संबंधित कई कहानियों को पढ़ पाएंगे।

chandan kumar

शानदार कहानी…‌ जबरदस्त. अंत

राजीव रोशन

शुक्रिया, चंदन जी।

Sameer

Is kahani mein sabse achhi baat ye hai ki isme “Samaapt” likha hua hai…

Shobhit Gupta

अच्छा लिखा है पर थोड़ा अधूरा सा लग रहा है कथानक..

puneet

इसे
कहानी नहीं कहते मज़ाक कहते है । चलो कोई बात नहीं शुरुवात अच्छी थी