जूही की कली – सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
विजन-वन-वल्लरी पर सोती थी सुहाग-भरी–स्नेह-स्वप्न-मग्न– अमल-कोमल-तनु तरुणी–जूही की कली, दृग बन्द किये, शिथिल–पत्रांक में, वासन्ती निशा थी; विरह-विधुर-प्रिया-संग छोड़ किसी दूर देश में था पवन जिसे कहते हैं मलयानिल। आयी याद बिछुड़न से मिलन की वह मधुर बात, आयी याद चाँदनी की धुली हुई आधी रात, आयी याद कान्ता की […]