अध्याय १३ : ठाकुरबाड़ी सबेरा हो गया है लेकिन अभी तक कहीं-कहीं अँधेरा है। इसी समय “सियाराम” – “सियाराम” कहकर प्रसिद्ध पुण्यात्मा हीरासिंह ने चारपाई से उठकर जमीन पर पैर रक्खा। वह इधर-उधर घूमकर एक पत्थर की वेदी के पास आ खड़ा हुआ। देखा वेदी पर भोलाराय
अध्याय १२ : गंगा की धारा छठ की रात तीन घड़ी बीत गयी है। डोरा के पास जंगल की नाहर से एक छोटी सी नाव निकलकर गंगा जी में आई। हीरासिंह के डाकुओं में से अबिलाख बिन्द, सागर पांडे, बुद्धन मुसहर तथा और दो आदमी उस पर सवार हैं। सागर पांडे ने जम्हाई ली और […]
अध्याय ११: नौरत्न संध्या बीत गयी है, निर्मल आकाश में छठ का चन्द्रमा हँस रहा है। नौरत्न के पास के गाँव में रामलीला की धूम है। सारा गाँव रामलीला देखने को एकत्र हुआ है, सिर्फ गूजरी नहीं गयी है। वह अपनी झोपड़ी में बिछौना बिछाकर चिराग चलाये बैठी है। इतने में रामलीला के बाजे
अध्याय १०: मैदान में आकाश में न बादल हैं न चाँद, सिर्फ लाखों तारे चारों ओर चमक रहे हैं। मैदान सनसन कर रहा है। कहीं जीव-जंतु का नाम निशाँ नहीं मिलता। केवल पेड़ों पर जुगनू चकमक कर रहे हैं। रात बीत चली है। इसी अवसर पर भोला पंछी मैदान के रास्ते पंछी बाग़ की […]
अध्याय ९ : मुंशी जी का मकान मुंशी हर प्रकाशलाल अपने मकान पर पहुँच गए है। उनका मकान हीरा सिंह की इमारत की तरह आलीशान नहीं है और उनका न उतना ठाठ-बाट है परन्तु बहुत मामूली भी नहीं है। मकान खूब साफ़-सुथरा और देखने योग्य है। मकान के सामने रास्ता है,
अध्याय ८: हीरा सिंह का मकान हीरा सिंह एक बड़ा भारी जमींदार था। उसका धन-ऐश्वर्य अपार और दबदबा बेहद था। उन दिनों शाहाबाद जिले में उसकी जोड़ का कोई जमींदार नहीं था। हीरा सिंह दानी-मानी और आचारी था। सब तीर्थों में उसके बनाए मंदिर और बड़े-बड़े शहरों में उसकी कोठियां थी। वह मुरार में रहता […]
अध्याय ६: सलाह पार्वती उसी अटारी में पलंग पर बेहोश पड़ी है, हिलती है न डोलती है। विधवा बहु उसके पास बैठी सेवा-शुश्रूषा करती है। मुंशी जी दालान में बैठकर ससुर जी के जख्मों पर जल में भिंगो-भिंगो कर पट्टी बाँध रहे हैं। दलीप सिंह सीढ़ी के नीचे खड़ा होकर चिलम पी रहा है। सभी […]
अध्याय ५: ससुराल रात झन-झन कर रही है। चारों ओर सन्नाटा है। निशाचरी जानवरों के सिवा और सभी जीव सोये हुए हैं। ऐसी गहरी रात में वह कौन स्त्री अकेली इस अटारी की खिड़की में बैठी झाँक रही है? युवती क्या किसी की बाट देख रही है? या किसी असह्य मनोवेदना से अभी तक सुख […]
अध्याय ३: मैदान में मुंशी हरप्रकाश लाल लंबे-लंबे डेग मारते चले जा रहे थे। वे डर को कोई चीज नहीं समझते थे। उनके पीछे-पीछे भीम-देह दलीपसिंह एक संदूक पीठ पर बाँधे लम्बी लाठी कंधे पर लिए मतवाले हाथी की तरह झूमता जाता था। दोनों चुरामनपुर गाँव को जा रहे थे, जहाँ मुंशी जी की ससुराल […]