काला पत्थर (1979)

1979 में रिलीज हुई यशराज फिल्म्स की “काला पत्थर” सितारों से सजी उस समय की एक बहुचर्चित फिल्म थी जिसने उस समय तो बॉक्स ऑफिस पर औसत व्यवसाय किया था लेकिन बाद में सफलता के कई कीर्तिमान बनाए। बॉलीवुड में त्रासदियों पर बनी कुछ अच्छी फिल्मों में इस फिल्म का स्थान सर्वोपरि है।
27 दिसंबर 1975 में घटित धनबाद की “चासनाला खान दुर्घटना” से प्रेरित होकर यह फिल्म बनाई गई थी जिसमें लगभग 375 मजदूर खदान में पानी भर जाने के कारण असमय मृत्यु का शिकार हो गए थे। इस फिल्म की शूटिंग झारखंड (तत्कालीन बिहार राज्य) की गिद्दी खदानों में की गई थी।
भारत में 90 फ़ीसदी से अधिक कोयले का उत्पादन कोल इंडिया करती है। कुछ खदानें बड़ी कंपनियों को भी दी गई हैं, इन्हें कैप्टिव माइन्स कहा जाता है। इन कैप्टिव खदानों का उत्पादन कंपनियां अपने संयंत्रों में ही ख़र्च करती हैं। भारत दुनिया के उन पांच देशों में से एक है जहां कोयले के सबसे बड़े भंडार हैं। भारत में कोयले के खनन का इतिहास बहुत पुराना है। ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने 1774 में दामोदर नदी के पश्चिमी किनारे पर रानीगंज में कोयले का वाणिज्यिक खनन आरम्भ किया था।
खनिकों के शोषण और कोयला खदान के पूंजीपतियों के मनमाने रवैए को फिल्म के माध्यम से दर्शकों तक पंहुचाया गया है। जिस प्रकार से मजदूरों का शोषण किया जाता है और उनकी जान की परवाह नहीं की जाती, ये देखना आंखे खोलने वाला है।
शशि कपूर एक युवा अभियंता रवि मल्होत्रा के किरदार में है जिसकी नई नियुक्ति कोयला खदान में चल रहे एक नए प्रोजेक्ट के लिए की जाती है।
एक रास्ता है जिंदगी, जो थम गए तो कुछ नहीं
ये कदम किसी मुकाम पे जो जम गए तो कुछ नहीं
ओ जाते राही, ओ बांके राही
मेरी बाहों को इन राहों को
तू छोड़ के ना जा, तू वापस आ जा
वो हुस्न के जलवे हो, या इश्क की आवाजे
आज़ाद परिंदों की रुकती नहीं परवाजें
जाते हुए क़दमों से आते हुए कदमों से
भरी रहेगी राहगुज़र, जो हम गए तो कुछ नहीं
ऐसा गजब नहीं ढाना, पिया मत जाना बिदेसवा रे
ओ हमका भी संग लिए जाना, पिया जब जाना बिदेसवा रे
हो जाते हुए राही के साये में सिमटना क्या
इक पल के मुसाफिर के दामन से लिपटना क्या
जाते हुए क़दमों से आते हुए कदमों से
भरी रहेगी राहगुज़र, जो हम गए तो कुछ नहीं
जब इस प्रोजेक्ट का अध्ययन रवि मल्होत्रा करता है तो पाता है कि खदान मालिक धनराज पुरी (प्रेम चोपड़ा) अपने लालच के लिए मजदूरों की जान को जोखिम में डालने से नहीं हिचक रहा है, तो वह उसे चेतावनी देता है।
चाहे कोई रोके रे साथी
चाहे कोई तोके रे साथी
नव युग आएगा
नव युग आएगा
तानी हुयी बाहो का
रेला बढ़ता ही जायेगा
खून माटी के भंव
बिक नहीं पायेगा
खून माटी के भंव
बिक नहीं पायेगा
धूम मची धूम
आज की रैणा भोर
हुये तक जगे जवानी
धूम मची धूम
आज की रैणा भोर
हुये तक जगे जवानी
अमिताभ ने एक ऐसे कोयला मजदूर की भूमिका निभाई है जो पहले एक सम्मानित मर्चेंट नेवी ऑफिसर था। समुद्र में आए तूफान के कारण जब उसका जहाज डूबने की कगार पर होता है तो अपने सहायकों की बात मानकर वह जहाज के यात्रियों को अकेला छोड़ देता है यद्यपि वो ऐसा अपने सहायकों के साथ छोड़ कर चले जाने के बाद असहाय होकर करता है। बाद में पता चलता है कि जहाज को कोई नुकसान नहीं हुआ और सभी यात्री सुरक्षित रहे। लेकिन विजय पाल सिंह पर चले मुकदमे के कारण उसका कैरियर इस घटना के बाद अपमान और जिल्लत के साथ समाप्त हो जाता है। उसके माता पिता अपने बेटे के इस कायराना कृत्य को अपने सम्मानित परिवार पर एक धब्बा मानकर विजय का त्याग कर देते है।
कोयला खदान मजदूर के रूप में पश्चाताप भरी एक गुमनाम जिंदगी बिताते हुए वह किसी भी तरीके से अपने उस कृत्य का कलंक अपने माथे से दूर करना चाहता है। अमिताभ ने एक बार इस बात का खुलासा किया था कि फिल्मों में आने के बहुत पहले वे कुछ समय धनबाद की कोयला खदानों में नौकरी कर चुके थे। इस फिल्म में अमिताभ का चरित्र “जोसेफ कॉनराड” के उपन्यास “लॉर्ड जिम” के मुख्य किरदार से प्रेरित है।
डॉ सुधा सेन की गंभीर भूमिका में राखी गुलजार है जो मजदूरों की सेवा के उद्देश्य से वहां के हॉस्पिटल में आती है। वह कुछ मुलाकातों में विजय की पृष्ठभूमि को भांपकर उसके अंदर जीवन के प्रति उम्मीद जगाने में सफल हो जाती है। एक अलग प्रकार की प्रेम कहानी में राखी और अमिताभ की केमेस्ट्री परदे पर एक अनोखा प्रभाव उत्पन्न करती है।
इश्क़ और मुश्क़ कदे न छुपदे
ते चाहे लख छुपाइये
अखां लख झुकाके चलिये
पल्ला लख बचाइये
इश्क़ है सच्चे रब दी रहमत
इश्क़ तों क्यूँ शर्माइये
चढ़दे चंद ने चढ़के रहना
हो, चढ़दे चंद ने चढ़के रहना
कान्नू पर्दे पाइये, कान्नू पर्दे पाइये
जग्गेया जग्गेया जग्गेया, कदे
इश्क़ छुपण नैयों लगेया
कोयला खदान के मजदूरों को ताबीज और अंगूठियां बेचने के साथ-साथ मजदूरों की बस्ती में चूड़ियां बेचने वाली छन्नो जेल से फरार अपराधी मंगल सिंह से प्रेम करने लगती है। शत्रुघन सिन्हा ने इस फिल्म में जबरदस्त अभिनय किया है। ऐसा कहा जाता है कि इस फिल्म की शूटिंग देखने आए दर्शकों में सबसे ज्यादा उत्सुकता शत्रुघन सिन्हा को लेकर रहती थी। अपने दमदार अभिनय और कैची संवादों से उन्होंने परदे पर काफी वाहवाही लूटी है। अबे ओय ताश के तिरपनवे पत्ते …चौथे बादशाह हम है….., बदायूं के लल्ला…., , अरे मेरे मुन्ना……गटरपंचू…, अबे अर्थी के फूल हम अपनी लाइन खुद बनाते है……, मंगल का खून कोई लैमन सोडा नही, जिसे विजय जैसै औंगै पौंगै अपनी प्यास बुझाते फिरे……. जैसे उनके संवाद आज भी दर्शकों को लुभाते है।
कोयला खदान पर स्टोरी बनाने आई जर्नलिस्ट अनीता(परवीन बॉबी) को रवि मल्होत्रा से प्यार हो जाता है।
बाँहों में तेरी मस्ती के घेरे
साँसों में तेरी खुशबू के डेरे
बाँहों में तेरी मस्ती के घेरे, मस्ती के घेरे
साँसों में तेरी खुशबू के डेरे, खुशबू के डेरे
मस्ती के घेरों में, खुशबू के डेरों में
हम खोएँ जाते हैं
भारत में कोयले के सबसे बड़े भंडार झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र में हैं। झारखंड, 80,716 मिलियन टन कोयले के अनुमानित भंडारण के साथ देश में कोयला आरक्षित राज्यों की सूची में सबसे ऊपर है।
देश का सर्वाधिक कोयला रिजर्व (कुल कोयला रिजर्व का 40%) वाला राज्य झारखंड कोयला उत्पादन में देश का नंबर एक राज्य नहीं रहा है। पिछले छह वर्षों से झारखंड कोयला उत्पादन में पिछड़ता गया।
पहले नंबर पर छत्तीसगढ़ में स्थिति एसईसीएल, दूसरे नंबर पर ओडिशा में स्थिति एमसीएल तथा तीसरे नंबर पर यूपी/एमपी में स्थित एनसीएल है। चौथे स्थान पर झारखंड स्थित सीसीएल एवं बीसीसीएल का कुल उत्पादन मिलाने पर झारखंड आता है। हालांकि कोकिंग कोल के कारण झारखंड (झरिया कोयला क्षेत्र) अभी भी सबसे महत्वपूर्ण है।
शशि कपूर, शत्रुघ्न सिन्हा, नीतू सिंह, परवीन बाबी, राखी, प्रेम चोपड़ा, परीक्षित साहनी जैसे सितारों के बीच जिस कलाकार ने पूरी फिल्म का आकर्षण लूट लिया वो थे अमिताभ बच्चन जिन्होंने विजय पाल सिंह की भूमिका निभाई है। अमिताभ बच्चन ने ग्लानि और क्षोभ में डूबे हुए युवा के आक्रोश को जिस प्रकार अपनी आंखों के माध्यम से अभिनीत किया है वह लाजवाब है। जंजीर के एंग्री यंग मैन की ऐतिहासिक भूमिका के बाद , दीवार और त्रिशूल के बाद इस फिल्म में उनका किरदार उन्ही भूमिकाओं का विस्तार है।
फिल्म का एक और मुख्य पात्र अपराधी मंगलसिंह( शत्रुघ्न सिन्हा) है जो जेल से भाग कर इसी कोयला खदान में मजदूर बन कर अपनी फरारी काट रहा है। विजय और मंगल सिंह की प्रारंभ में नहीं बनती क्योंकि दोनों ही गुस्सैल है लेकिन मजदूरों के हितों के लिए रवि के साथ मिलकर खदान मालिकों के खिलाफ एक मोर्चा खोल लेते हैं।
मेरी दूरों से आयी बरात
मैया में तू पौन्नी
बालमा छेल छबीला मन को मोहे
जोड़ा रंग रंगीला फिरता तन पे सोहे
बालमा छेल छबीला मन को मोहे
मे तो वारी जाऊ बलिहारी जाऊ
पड़ा पौ यह किसका अंगन मैं
फिरता खिले फूल से
मेरे तन मन मैं
छूटा मैके की गलियों का साथ
फिरता मैया मैतु पौन्नी
मेरी दूरों से आयी बरात
मैया मेंतू पौन्नी
इस फिल्म के गीत साहिर ने लिखे थे जिन्हे सूरों में ढाला था राजेश रोशन ने। फिल्म का निर्देशन यश चोपड़ा ने किया था और फिल्म की कहानी लिखी थी सलीम जावेद ने। फिल्म का बैकग्राउंड संगीत तैयार किया था सलिल चौधरी ने।
फिल्म का गीत संगीत तो सुपरहिट हुआ ही था, फिल्म के बैकग्राउंड संगीत ने भी काफी वाहवाही बटोरी थी। किशोर कुमार, मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर, महेंद्र कपूर तथा अन्य गायकों द्वारा गाए गए गीत फिल्म के प्रवाह को गतिमान बनाए रखते है।
कोयला खदान में अनवरत खुदाई चल रही है ऊपर बस्ती में माहौल शांत है। लेकिन ये शांति कोयला खदान में आने वाली एक बड़ी तबाही के पहले की शांति है। जिस टनल में खुदाई चल रही है उसके सिरे से लगी हुई दूसरी टनल में लबालब पानी भरा हुआ है । एक दिन ऐसा आता है कि अंदर खुदाई करते-करते पानी वाली टनल फूट जाती है और उसका पूरा पानी इस टनल में भरने लगता है। खुदाई करने गए पूरे मजदूर टनल में फंस जाते है।
क्या होगा अंजाम इन मजदूरों का जो अपनी जान हथेली पर रखकर धनराज पुरी जैसे लालची लोगो के लिए काम कर रहे हैं?
क्या मजदूरों की बस्ती को फिर से मातम अपने काले साए के आगोश में ले लेगा?
कौन कौन जिंदा वापस आएगा और कितने मजदूरों की कब्रगाह अंदर ही बन जायेगी?
क्या कोयला श्रमिको की स्थितियां सुधरेगी?
रवि, विजय और मंगल अपनी हिम्मत और बुद्धिमानी से अंदर कितने मजदूरों को बचाएंगे?
क्या विजय अपने माथे पर लगे कलंक को मिटा पाएगा?
जानने के लिए देखिए एक शानदार फिल्म ‘काला पत्थर’