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जीवन नहीं मरा करता है.. – आनंद कुमार शुक्ल

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बचपन में जो मेलोडीज़ गुनगुनाते थे, साहित्यिक अभिरुचि जागने के बाद पता चला किन्हीं गोपाल दास ‘नीरज’ नाम के कवि ने उन्हें रचा है। साहित्य का विद्यार्थी होने पर तो नीरज जैसे मन में समा गए। लोकप्रिय साहित्य बनाम गंभीर साहित्य के विमर्श को आधुनिक कवियों में नीरज से ही सबसे ज्यादा चुनौती मिली। न तो उनकी लोकप्रियता कभी कमजोर पड़ी और न उनकी साहित्यिकता। रुपहले परदे के कन्धों पर साहित्य की स्नेहिल बाहें पसार कर ही उन्होंने अपना जीवन जिया। किसी ने क्या खूब कहा कि बाज़ार के बेतरतीब दबाव के बावजूद नीरज जी ने कभी अपने फ़िल्मी गीतों का स्तर नहीं गिराया।

बच्चन के हालावाद से नाक-भौं सिकोड़ते आलोचकों ने नीरज जी को बच्चन से कहीं ज्यादा उपेक्षित किया। हिंदी आलोचना के कुछ खेमों से बच्चन ने दोस्ती गाँठ रखी थी, लिहाजा इक्का दुक्का आलोचक कभी कभार बच्चन को याद भी कर लिया करते थे। लेकिन मजाल कि किसी दर्पशील आलोचक ने नीरज जी को छुआ भर भी हो। शायद आलोचकों को डर था कि नीरज को छूते ही उनके लेखों में फ़िल्मी कीड़े पड़ जाएँगे। नीरज को याद रखा तो केवल जनता ने। वे जियेंगे तो जन-कंठ में, किसी आलोचना की पुस्तक में नहीं।

फ़िल्मी कैरियर के कारण ही बहुतेरे गंभीर साहित्यिकों ने नीरज को प्रेम और श्रृंगार का कवि मन ही मन मान लिया। लोगों से बातचीत के दौरान और विभिन्न साक्षात्कारों में नीरज खुद को कविता के प्रेम पक्ष के साथ-साथ जीवन के अन्य पक्षों का रागात्मक कवि बताते रहे, किन्तु साहित्यिकों के मन में जो छवि एक बार धँस गयी सो धँस गयी-

ओढ़कर क़ानून का चोंगा खड़ी चंगेज़शाही
न्याय का शव तक कचहरी में, नज़र आता नहीं है।
मुश्किलों का खर्च इतना बढ़ गया है ज़िंदगी में,
जन्मदिन तक की खुशी, कोई मना पाता नहीं है।

जीवन की रागात्मिका वृत्ति से इतर, नीरज गहन विराग के भी कवि हैं| हर बदलाव कुछ छूट-से जाने का अहसास है| कुछ छूटते जाने का अहसास नीरज की कविता के मूल स्वरों में से है, ऊपर से ओढ़ा हुआ कुछ भी नहीं है-

पुंछ गया सिन्दूर, तार तार हुई चूनरी
और हम अजान से दूर के मकान से
पालकी लिए हुए कहार देखते रहे|
कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे|

और जीवन के गहनतम राग-विराग के मध्य नीरज नतनयन स्वस्फूर्त आशावाद के प्रतीक हैं| जीवन काल के गाल में समा जायेगा, किन्तु शब्दों के मध्य से निहारतीं वे चमकीली आँखें हमेशा कोई न कोई गीत रचती रहेंगी|

छिप-छिप अश्रु बहाने वालों !
मोती व्यर्थ बहाने वालों !
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है।

शत् शत् नमन् गोपाल दास ‘नीरज’!

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