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ये कैसी अजब दास्तां हो गयी-देव-सुरैया की नाकाम मुहब्बत

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बॉलीवुड में बहुत-सी प्रेम कहानियाँ बनीं। बहुत से किस्से परवान चढ़े। कई जोड़ियाँ बनीं, कई दिल टूटे। इन प्रेम कहानियों का जिक्र जब भी आएगा, देव आनंद और सुरैया की याद जरूर आएगी। देव-सुरैया की लव स्टोरी बॉलीवुड की सबसे चर्चित प्रेम कहानियों में से एक है, और शायद सबसे बदकिस्मत भी।
          देव-सुरैया की प्रेमकथा उनकी पहली फिल्म विद्या की शूटिंग के समय ही शुरू हो गई थी। देव उस समय न्यूकमर थे, जबकि सुरैया गायिका और अभिनेत्री दोनों रूपों में एक स्थापित कलाकार। देवआनंद सुरैया के साथ काम करने को लेकर जितने उत्साहित थे, उतने ही आशंकित। बाद में उन दिनों को याद करते हुए देव साहब ने लिखा- “वह बहुत अच्छी थीं, मैं उनके दोस्ताना व्यवहार से प्रभावित था। इतनी बड़ी स्टार होकर भी उनमें घमंड नहीं था।“ सुरैया को भी देव के आकर्षक व्यक्तित्व ने पहली बार में ही प्रभावित किया। एक इंटरव्यू में इस बारे में बात करते हुए सुरैया ने कहा-“देव पहले यंग और हैंडसम हीरो थे जिनके साथ मैंने काम किया था। यह कहना मुश्किल है कि वो एक चीज क्या थी जो मुझे उनमें अच्छी लगी क्योंकि मुझे उनकी पूरी पर्सनालिटी ही खास लगी थी। मुझे उनसे पहली मुलाकात याद है जो कि विद्या के सेट पर हुई थी। वह न्यूकमर थे और खासकर रोमांटिक सीन्स देने में बेहद नर्वस हो जाया करते थे।“
              दोनों के बीच नजदीकियाँ बढ़ती गईं। इन नजदीकियों को बढ़ाने में विद्या के सेट पर घटी एक घटना की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही। हुआ यूँ कि शूटिंग के दौरान एक नाव में सुरैया पर कुछ दृश्य फिल्माए जा रहे थे, कि तभी दुर्घटनावश नाव पलट गई। देव ने अपनी जान की परवाह न करते हुए पानी में कूदकर सुरैया को डूबने से बचाया और उन्हें बाहर निकाल लाए। इस हादसे के बारे में सुरैया बताती हैं- “विद्या की शूटिंग के दौरान हमारा एक नांव पर सीन फिल्माया जाना था लेकिन वह डूबने लगी और देव आनंद ने मुझे बचाया था। मैंने उनसे कहा था-अगर आपने मेरी जान न बचाई होती मैं जिंदा नहीं बचती।तब उन्होंने मुझे जवाब दिया था-अगर आपकी जिंदगी न बचती तो मैं भी जिंदा नहीं रहता,बस उसी दिन हमारा प्यार जाग उठा।” देव प्यार से सुरैया को नोजी (लंबी नाक के कारण) कहा करते थे। सुरैया ने देव को अपने पसंदीदा अभिनेता के नाम पर ग्रेगरी (ग्रेगरी पैक) कहना शुरू किया, लेकिन देव को किसी से अपनी तुलना पसंद नहीं थी, इसलिए सुरैया ने देव को नया नाम दिया- स्टीव। उन दिनों देव आनंद फिल्मों में पैर जमाने की जुगत में लगे थे। पैसे ज्यादा नहीं थे। देव बताते हैं कि वे चर्चगेट स्टेशन उतरकर पैदल सुरैया के घर मैरिन ड्राइव जाया करते थे। उनके साथ होते थे द्वारका दिवेचा (शोले तथा कई अन्य फिल्मों से जुड़े प्रख्यात सिनेमेटोग्राफर)। दिवेचा सुरैया की नानी बादशाह बेगम को बातों में लगाया करते थे और देव-सुरैया टेरेस पर घंटों बात किया करते थे। अपनी शादी की योजनाएं बनातें। अपने होने वाले बच्चों के नाम सोचते। सुरैया को बेटी पसंद थी और उन्होंने अपनी होने वाली बेटी का नाम भी सोच रखा था-देवीना।
              दो साल तक दोनों ने अपने प्रेम को दुनिया की निगाहों से छुपाये रखा, लेकिन कहते हैं इश्क़ और मुश्क छुपाये नहीं छुपते। 1950 में फिल्म अफसर की शूटिंग के समय तक दोनों की प्रेम कहानी न सिर्फ दुनिया के सामने उजागर हो गई, बल्कि उसके चर्चे भी फिल्मी दुनिया में होने लगे। इस प्रेम कहानी के सबसे खिलाफ थे, सुरैया के मामा और उनकी नानी। सुरैया और देव का मिलना बंद कर दिया गया। शूटिंग के समय भी सुरैया अपनी नानी की सख्त निगरानी में रहतीं। सुरैया की नानी ने इस प्रेम कहानी को सांप्रदायिक रंग दे दिया। सुरैया कहती हैं- “मेरी नानी हमें अलग करने में कामयाब हो गई थीं। देव इससे बेहद टूट गए थे,साथ ही मेरा हिम्मत न दिखाना भी उन्हें बेहद खला। मैं अपनी नानी से बेहद डरती थी इसलिए कोई कदम नहीं उठा सकी। मेरी नानी को इस बात से आपत्ति थी कि देव आनंद हिंदू थे। उन्हें हमारा मिलना, बात करना मंजूर नहीं था। हम छुप-छुपकर टेरेस पर मिलते थे।“
               देव तमाम कोशिशों के बावजूद सुरैया से मिल नहीं पा रहे थे। एक दिन उन्हें सुरैया की माँ मुमताज ने देव के पास सुरैया से मिलने के लिए सन्देशा भेजा। देव को लगा कि ये कोई चाल हो सकती है, लेकिन वो सुरैया से मिलना भी चाहते थे। अंततः वो गए। उनके एक पुलिस इन्स्पेक्टर मित्र ताराचंद पिस्तौल लेकर उनके साथ गए। ताराचंद ने देव को एक टॉर्च भी थी कि जरा सा भी खतरा होते ही टॉर्च जला कर उन्हें इशारा कर दें। खैर, ऐसा कुछ नहीं हुआ। देव और सुरैया की आखिरी मुलाकात हुई। सुरैया अपनी नानी ने खिलाफ नहीं जा पाईं। निराश और टूटे हुए देव वापस लौटे और अपने भाई चेतन आनंद के कंधों पर सर रख कर रात भर रोते रहे। खुद देव आनंद के शब्दों में- “उस रात घर जाकर चेतन के कंधे पर सिर रखकर खूब रोया और उन्हें अपनी सारी दास्तान सुना दी। यह मेरा स्वभाव नहीं है। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। लेकिन जीवन के उस दौर में हरेक के साथ ऐसा कुछ घटता है। आज मैं समझता हूँ, जो हुआ अच्छे के लिए हुआ।“
              देवआनंद ज़िंदगी में आगे बढ़ गए। उन्होंने मोना सिंह (कल्पना कार्तिक) से शादी कर ली। सुरैया ने देव के अतिरिक्त किसी और से विवाह करने से इंकार कर दिया और आजीवन अविवाहित रहीं। जब देव और कल्पना की बेटी हुई, तो देव ने उसका नाम देवीना रखा।
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