बहुत दिनों से नौवीं की छात्रा कलिका, स्टाफ- रूम में चर्चा का विषय बनी हुई है. शिक्षिकाएं एकमत हैं कि उसे कोई मानसिक समस्या जरूर है. सबको श्रीमती मीरा वर्मा का इंतजार है, जो अपने ढीली सेहत के चलते, लम्बी छुट्टी पर थीं और वापस स्कूल ज्वाइन करने वाली हैं. आठवीं में वे ही कलिका […]
मि. कानूनी कुमार, एम.एल.ए. अपने ऑफिस में समाचारपत्रों, पत्रिकाओं और रिपोर्टों का एक ढेर लिए बैठे हैं। देश की चिन्ताओं से उनकी देह स्थूल हो गयी है; सदैव देशोद्धार की फिक्र में पड़े रहते हैं। सामने पार्क है। उसमें कई लड़के खेल रहे हैं। कुछ परदे वाली स्त्रियाँ भी हैं, फेंसिंग के सामने बहुत-से भिखमंगे […]
1 कानपुर जिले में पंडित भृगुदत्त नामक एक बड़े जमींदार थे। मुंशी सत्यनारायण उनके कारिंदा थे। वह बड़े स्वामीभक्त और सच्चरित्र मनुष्य थे। लाखों रुपये की तहसील और हजारों मन अनाज का लेन-देन उनके हाथ में था; पर कभी उनकी नियत डाँवाडोल न होती। उनके सुप्रबंध से रियासत दिनोंदिन उन्नति करती जाती थी। ऐसे कत्तर्व्यपरायण […]
साधु-संतों के सत्संग से बुरे भी अच्छे हो जाते हैं, किन्तु पयाग का दुर्भाग्य था, कि उस पर सत्संग का उल्टा ही असर हुआ। उसे गाँजे, चरस और भंग का चस्का पड़ गया, जिसका फल यह हुआ कि एक मेहनती, उद्यमशील युवक आलस्य का उपासक बन बैठा। जीवन-संग्राम में यह आनन्द कहाँ ! किसी वट-वृक्ष […]
1 दफ्तर का बाबू एक बेजबान जीव है। मजदूरों को आंखें दिखाओ, तो वह त्योरियाँ बदल कर खड़ा हो जायेगा। कुली को एक डाँट बताओ, तो सिर से बोझ फेंक कर अपनी राह लेगा। किसी भिखारी को दुत्कारो, तो वह तुम्हारी ओर गुस्से की निगाह से देख कर चला जायेगा। यहाँ तक कि गधा भी […]
मैं हतप्रभ हूँ. उन आँखों की सदाबहार चमक, आंसुओं से धुंधला गयी है. वे जुझारू तेवर, वे हौसले, पहली बार पस्त पड़ गये हैं. मेरी परिचिता, प्रबुद्ध, जीनियस स्त्री कही जा सकती है. उसने कई बार, खुद को साबित किया है. जीवन – दर्शन को लेकर, वह संजीदा हो उठती है; वक्ता बनकर, श्रोता पर, […]
उसने अपनी छोटी- छोटी आंखें खोलीं । सामने मम्मी-पापा खड़े थे । उनको देखकर उसके चेहरे के भावों में कोई परिवर्तन नहीं आया । मानो कुछ ना हुआ हो । कुछ ना देखा हो । अगर कुछ देखा भी तो महत्वहीन । तभी बेड के किनारे खड़ी दादी पर उसकी नजर पड़ी। उनको देखते ही […]
“असतो माँ सद्गमय , तमसो माँ ज्योतिर्गमय मृत्योर माँ अमृतगमय…..!!” धुनकी अपने पोपले मुँह से कुछ भूले -बिसरे , आधे-पूरे मंत्रों और भजनों को गाये जा रही थी। आज वो बहुत खुश थी। हो भी क्यों न? आज उसके सभी अपने उससे मिलने जो आ रहे थे। बरसो से मन में ठान रखा था । […]
“मैं उसके बिना जिन्दा नहीं रह सकती!” उन्होंने फैसला किया। “तो मर जाओ!” जी चाहा कह दूँ। पर नहीं कह सकती। बहुत से रिश्ते हैं, जिनका लिहाज करना ही पड़ता है। एक तो दुर्भाग्य से हम दोनों औरत जात हैं। न जाने क्यों लोगों ने मुझे नारी जाति की समर्थक और सहायक समझ लिया है। […]