1 हमारे कस्बे के इनायत अली कल तक नौमुसलिम थे। उनका परिवार केवल सात वर्षों से खुदा के आगे घुटने टेक रहा था। इसके पहले उनके सिर पर भी चोटी थी, माथे पर तिलक था और घर में ठाकुरजी थे। हमारे समाज ने उनके निरपराध परिवार को जबर्दस्ती मन्दिर से ढकेलकर मसजिद में भेज दिया […]
जैनेंद्र कुमार आज तीसरा रोज़ है. तीसरा नहीं, चौथा रोज़ है. वह इतवार की छुट्टी का दिन था. सबेरे उठा और कमरे से बाहर की ओर झांका तो देखता हूं, मुहल्ले के एक मकान की छत पर कांओं-कांओं करते हुए कौओं से घिरी हुई एक लड़की खड़ी है. खड़ी-खड़ी बुला रही है, “कौओ आओ, कौओ […]
आर्द्रा नक्षत्र; आकाश में काले-काले बादलों की घुमड़, जिसमें देव-दुन्दुभी का गम्भीर घोष। प्राची के एक निरभ्र कोने से स्वर्ण-पुरुष झाँकने लगा था।-देखने लगा महाराज की सवारी। शैलमाला के अञ्चल में समतल उर्वरा भूमि से सोंधी बास उठ रही थी। नगर-तोरण से जयघोष हुआ, भीड़ में गजराज का चामरधारी शुण्ड उन्नत दिखायी पड़ा। वह हर्ष और […]
गर्मी के दिन थे। बादशाह ने उसी फाल्गुन में सलीमा से नई शादी की थी। सल्तनत के सब झंझटों से दूर रहकर नई दुलहिन के साथ प्रेम और आनन्द की कलोलें करने, वह सलीमा को लेकर कश्मीर के दौलतखाने में चले आए थे। रात दूध में नहा रही थी। दूर के पहाड़ों की चोटियाँ बर्फ […]
एक बार एक वन के पशुओं को ऐसा लगा कि वे सभ्यता के उस स्तर पर पहुँच गए हैं, जहाँ उन्हें एक अच्छी शासन-व्यवस्था अपनानी चाहिए | और,एक मत से यह तय हो गया कि वन-प्रदेश में प्रजातंत्र की स्थापना हो | पशु-समाज में इस `क्रांतिकारी’ परिवर्तन से हर्ष की लहर दौड़ गयी कि सुख-समृद्धि […]
किसी श्रीमान् जमींदार के महल के पास एक गरीब अनाथ विधवा की झोंपड़ी थी। जमींदार साहब को अपने महल का हाता उस झोंपड़ी तक बढा़ने की इच्छा हुई, विधवा से बहुतेरा कहा कि अपनी झोंपड़ी हटा ले, पर वह तो कई जमाने से वहीं बसी थी; उसका प्रिय पति और इकलौता पुत्र भी उसी झोंपड़ी […]
इन्दुमती अपने बूढ़े पिता के साथ विन्ध्याचल के घने जंगल में रहती थी। जब से उसके पिता वहाँ पर कुटी बनाकर रहने लगे, तब से वह बराबर उन्हीं के साथ रही; न जंगल के बाहर निकली, न किसी दूसरे का मुँह देख सकी। उसकी अवस्था चार-पाँच वर्ष की थी जबकि उसकी माता का परलोकवास हुआ […]
दिन-भर बैठे-बैठे मेरे सिर में पीड़ा उत्पन्न हुई : मैं अपने स्थान से उठा और अपने एक नए एकांतवासी मित्र के यहाँ मैंने जाना विचारा। जाकर मैंने देखा तो वे ध्यान-मग्न सिर नीचा किए हुए कुछ सोच रहे थे। मुझे देखकर कुछ आश्चर्य नहीं हुआ; क्योंकि यह कोई नई बात नहीं थी। उन्हें थोड़े ही […]
बडे-बडे शहरों के इक्के-गाड़ी वालों की जबान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गई है, और कान पक गये हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बम्बूकार्ट वालों की बोली का मरहम लगायें। जब बडे़-बडे़ शहरों की चौड़ी सड़कों पर घोड़े की पीठ चाबुक से धुनते हुए, इक्केवाले कभी घोड़े की नानी से अपना […]