प्रेमचंद की कहानी फ़ातिहा पहली बार 1929 ई में ‘पांच फूल’ कहानी संकलन में प्रकाशित हुई . सरकारी अनाथालय से निकलकर मैं सीधा फौज में भरती किया गया। मेरा शरीर हृष्ट-पुष्ट और बलिष्ठ था। साधारण मनुष्यों की अपेक्षा मेरे हाथ-पैर कहीं लम्बे और स्नायुयुक्त थे। मेरी लम्बाई पूरी छह फुट नौ इंच थी। पलटन […]
आत्माराम उर्दू पत्रिका ‘ज़माना’ में 1920 में पहली बार प्रकाशित हुई . 1921 में ‘प्रेम पचीसी’ में इसका हिंदी रूप प्रकाशित हुआ. वेदी-ग्राम में महादेव सोनार एक सुविख्यात आदमी था। वह अपने सायबान में प्रातः से संध्या तक अँगीठी के सामने बैठा हुआ खटखट किया करता था। यह लगातार ध्वनि सुनने के लोग इतने अभ्यस्त […]
‘नमक का दारोगा’ प्रेमचंद की चर्चित कहानियों में से एक है . सर्वप्रथम यह कहानी अक्टूबर 1913 के ‘हमदर्द’ में उर्दू में प्रकाशित हुई थी . हिंदी में पहली बार यह 1917 में प्रेमचंद के कहानी संकलन ‘सप्त सरोज’ में प्रकाशित हुई .सच्चाई और ईमानदारी जैसे नैतिक मूल्यों को स्थापित करती यह कहानी मन पर […]
पण्डित मोटेराम जी शास्त्री को कौन नहीं जानता? आप अधिकारियों का रूख देखकर काम करते हैं। स्वदेशी आन्दोलन के दिनों में आपने उस आन्दोलन का खूब विरोध किया था। स्वराज्य आन्दोलन के दिनों में भी आपने अधिकारियों से राजभक्ति की सनद हासिल की थी। मगर जब इतनी उछल-कूद पर उनकी तक़दीर की मीठी नींद न […]
दोपहर को ज़रा आराम करके उठा था। अपने पढ़ने-लिखने के कमरे में खड़ा-खड़ा धीरे-धीरे सिगार पी रहा था और बड़ी-बड़ी अलमारियों में सजे पुस्तकालय की ओर निहार रहा था। किसी महान लेखक की कोई कृति उनमें से निकालकर देखने की बात सोच रहा था। मगर, पुस्तकालय के एक सिरे से लेकर दूसरे तक मुझे महान […]
सोज़े वतन यानि देश का दर्द …नवाब राय के इस इस कहानी संग्रह की सारी कहानियों में क्रांति की जो चिंगारी थी , उसने अंग्रेजी हुकूमत को विवश किया इस पर प्रतिबंध लगाने के लिए और नवाब राय को विवश किया प्रेमचंद बनने के लिए. उसी संग्रह की एक और कहानी ….. आज पूरे साठ […]
‘दुनिया का सबसे अनमोल रतन’ प्रेमचंद की पहली कहानी मानी जाती है. यह पहली बार 1907 में उर्दू पत्रिका ज़माना में प्रकाशित हुई थी. 1908 में यह सोजे वतन संकलन में प्रकाशित हुई, जिसे हमीरपुर के कलेक्टर के आदेश पर प्रतिबंधित कर दिया गया और सारी उपलब्ध प्रतियाँ जला दी गयीं. इसी घटना के बाद […]
1 हल्कू ने आकर स्त्री से कहा-सहना आया है । लाओं, जो रुपये रखे हैं, उसे दे दूँ, किसी तरह गला तो छूटे । मुन्नी झाड़ू लगा रही थी। पीछे फिरकर बोली-तीन ही रुपये हैं, दे दोगे तो कम्मल कहॉँ से आवेगा? माघ-पूस की रात हार में कैसे कटेगी ? उससे कह दो, फसल पर दे […]
पूर्ण स्वराज्य का जुलूस निकल रहा था। कुछ युवक, कुछ बूढ़ें, कुछ बालक झंडियां और झंडे लिये बंदेमातरम् गाते हुए माल के सामने से निकले। दोनों तरफ दर्शकों की दीवारें खड़ी थीं, मानो यह कोई तमाशा है और उनका काम केवल खड़े-खड़े देखना है। शंभुनाथ ने दूकान की पटरी पर खड़े होकर अपने पड़ोसी दीनदयाल से कहा-सब […]