इस्मत चुगताई जी का जन्म बदायूं के एक उच्च वर्गीय परिवार में हुआ . वंश परंपरा से वे मुग़ल खानदान से जुड़ी थीं. पिता जज थे सो आपा को कई शहरों में रहने का अनुभव मिला. छह भाइयों की बहन होने की वजह से इस्मत आपा का बचपन में ‘टाम ब्वाय ‘ व्यक्तित्व रहा. वही […]
मुझे देवीपुर गये पाँच दिन हो चुके थे, पर ऐसा एक दिन भी न होगा कि बौड़म की चर्चा न हुई हो। मेरे पास सुबह से शाम तक गाँव के लोग बैठे रहते थे। मुझे अपनी बहुज्ञता को प्रदर्शित करने का न कभी ऐसा अवसर ही मिला था और न प्रलोभन ही। मैं बैठा-बैठा इधर-उधर […]
चिट्ठी-डाकिए ने दरवाजे पर दस्तक दी तो नन्हों सहुआइन ने दाल की बटुली पर यों कलछी मारी जैसे सारा कसूर बटुली का ही है। हल्दी से रँगे हाथ में कलछी पकड़े वे रसोई से बाहर आईं और गुस्से के मारे जली-भुनी, दो का एक डग मारती ड्योढ़ी के पास पहुँचीं। ‘कौन है रे!’ सहुआइन ने […]
जिस समय मैंने कमरे में प्रवेश किया, आचार्य चूड़ामणि मिश्र आंखें बंद किए हुए लेटे थे और उनके मुख पर एक तरह की ऐंठन थी, जो मेरे लिए नितांत परिचित-सी थी, क्योंकि क्रोध और पीड़ा के मिश्रण से वैसी ऐंठन उनके मुख पर अक्सर आ जाया करती थी। वह कमरा ऊपरी मंजिल पर था और […]
हिंदबाद और बाकी दोस्तों के आ जाने के बाद सिंदबाद ने अपनी कहानी शुरू की. सिंदबाद ने कहा, दोस्तो, मैंने दृढ़ निश्चय किया था कि अब कभी जल यात्रा न करूँगा। मेरी अवस्था भी इतनी हो गई थी कि मैं कहीं आराम के साथ बैठ कर दिन गुजारता। इसीलिए मैं अपने घर में आनंदपूर्वक रहने […]
संध्या का समय था। डाक्टर चड्ढा गोल्फ खेलने के लिए तैयार हो रहे थे। मोटर द्वार के सामने खड़ी थी कि दो कहार एक डोली लिये आते दिखायी दिये। डोली के पीछे एक बूढ़ा लाठी टेकता चला आता था। डोली औषधालय के सामने आकर रुक गयी। बूढ़े ने धीरे-धीरे आकर द्वार पर पड़ी हुई चिक […]
सिंदबाद ने हिंदबाद और बाकी लोगों से कि आप लोग स्वयं ही सोच सकते हैं कि मुझ पर कैसी मुसीबतें पड़ीं और साथ ही मुझे कितना धन प्राप्त हुआ। मुझे स्वयं इस पर आश्चर्य होता था। एक वर्ष बाद मुझ पर फिर यात्रा का उन्माद चढ़ा। मेरे सगे-संबंधियों ने मुझे बहुत रोका किंतु मैं न […]
अगले दिन सब लोग फिर एकत्र हुए और भोजन के बाद सिंदबाद ने अपनी पाँचवीं यात्रा का वर्णन शुरू किया। सिंदबाद ने कहा कि मेरी विचित्र दशा थी। चाहे जितनी मुसीबत पड़े मैं कुछ दिनों के आनंद के बाद उसे भूल जाता था और नई यात्रा के लिए मेरे तलवे खुजाने लगते थे। इस बार […]
अगले दिन निश्चित समय पर सब लोग आए और भोजन के बाद सिंदबाद ने कहना शुरू किया. सिंदबाद ने कहा, कुछ दिन आराम से रहने के बाद मैं पिछले कष्ट और दुख भूल गया था और फिर यह सूझी कि और धन कमाया जाए तथा संसार की विचित्रताएँ और देखी जाएँ. मैंने चौथी यात्रा की […]