कानून में अच्छी सफलता प्राप्त कर लेने के बाद मिस पद्मा को एक नया अनुभव हुआ, वह था जीवन का सूनापन। विवाह को उन्होंने एक अप्राकृतिक बंधन समझा था और निश्चय कर लिया था कि स्वतंत्र रहकर जीवन का उपभोग करूँगी। एम. ए. की डिग्री ली, फिर कानून पास किया और प्रैक्टिस शुरू कर दी। […]
पंडित अयोध्यानाथ का देहांत हुआ तो सबने कहा, ईश्वर आदमी की ऐसी ही मौत दे। चार जवान बेटे थे, एक लड़की। चारों लड़कों के विवाह हो चुके थे, केवल लड़की क्वाँरी थी। संपत्ति भी काफ़ी छोड़ी थी। एक पक्का मकान, दो बग़ीचे, कई हज़ार के गहने और बीस हज़ार नकद। विधवा फूलमती को शोक तो […]
घर के कलह और निमंत्रणों के अभाव से पंडित चिंतामणिजी के चित्त में वैराग्य उत्पन्न हुआ और उन्होंने संन्यास ले लिया तो उनके परम मित्र पंडित मोटेराम शास्त्रीजी ने उपदेश दिया- मित्र, हमारा अच्छे-अच्छे साधु-महात्माओं से सत्संग रहा है। यह जब किसी भलेमानस के द्वार पर जाते हैं, तो गिड़-गिड़ाकर हाथ नहीं फैलाते और झूठ-मूठ […]
सुकिया के हाथ की पथी कच्ची ईंटें पकने के लिए भट्टे में लगाई जा रही थीं। भट्टे के गलियारे में झरोखेदार कच्ची ईंटों की दीवार देखकर सुकिया आत्मिक सुख से भर गया था। देखते-ही-देखते हजारों ईंटें भट्टे के गलियारे में समा गई थीं। ईंटों के बीच खाली जगह में पत्थर का कोयला, लकड़ी, बुरादा, गन्ने […]
मौसमे-बहार के फलों से घिरा बेहद नज़रफ़रेब गेस्टहाउस हरे-भरे टीले की चोटी पर दूर से नज़र आ जाता है। टीले के ऐन नीचे पहाड़ी झील है। एक बल खाती सड़क झील के किनारे-किनारे गेस्टहाउस के फाटक तक पहुँचती है। फाटक के नज़दीक वालरस की ऐसी मूँछोंवाला एक फ़ोटोग्राफ़र अपना साज़ो-सामान फैलाए एक टीन की कुर्सी […]
शाम को गोधूलि की बेला, कुली के सिर पर सामान रखवाये जब बाबू राधाकृष्ण अपने घर आये, तब उनके भारी-भारी पैरों की चाल, और चेहरे के भाव से ही कुंती ने जान लिया कि काम वहाँ भी नहीं बना। कुली के सिर पर से बिस्तर उतरवाकर बाबू राधाकृष्ण ने उसे कुछ पैसे दिए। कुली सलाम […]
इस ‘आज’, ‘कल’, ‘अब’, ‘जब’, ‘तब’ से सम्पूर्ण असहयोग कर यदि कोई सोचे क्या, खीज उठे कि इतना सब कुछ निगलकर – सहन कर इस हास्यास्पद बालि ने काल को क्यों बाँधा। इस ‘भूत’, ‘भविष्य’, ‘वर्तमान’ का कार्ड – हाउस क्यों खड़ा किया, हाँ, यदि सोचे क्या, खीज उठे कि कछुए के समान सब कुछ […]
बहार फिर आ गई। वसन्त की हल्की हवाएँ पतझर के फीके ओठों को चुपके से चूम गईं। जाड़े ने सिकुड़े-सिकुड़े पंख फड़फड़ाए और सर्दी दूर हो गई। आँगन में पीपल के पेड़ पर नए पात खिल-खिल आए। परिवार के हँसी-खुशी में तैरते दिन-रात मुस्कुरा उठे। भरा-भराया घर। सँभली-सँवरी-सी सुन्दर सलोनी बहुएँ। चंचलता से खिलखिलाती बेटियाँ। […]
‘‘ऐ मर कलमुँहे !’ अकस्मात् घेघा बुआ ने कूड़ा फेंकने के लिए दरवाजा खोला और चौतरे पर बैठे मिरवा को गाते हुए देखकर कहा, ‘‘तोरे पेट में फोनोगिराफ उलियान बा का, जौन भिनसार भवा कि तान तोड़ै लाग ? राम जानै, रात के कैसन एकरा दीदा लागत है !’’ मारे डर के कि कहीं घेघा […]